वन गमन पर कौशल्या ने राम को दिया था यह आशीष
डा. माधव राज द्विवेदी
रामायण के मार्मिक प्रसंगों में रामवनगमन के समय कौशल्या द्वारा राम के कल्याणार्थ किया गया स्वस्तिवाचन अतिशय हृदय स्पर्शी और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। हमें विदित है कि रामायण स्वभाव और आचरण की भव्यता और दिव्यता का महाकाव्य है। इसीलिए इसे शीलप्रधान महाकाव्य कहा जाता है। इस तथ्य का संकेत कौशल्या के स्वस्तिवाचन के प्रथम वाक्य से ही मिल जाता है। वे कहती हैं कि पुत्र तुम सत्पुरुषों के मार्ग पर चलोगे, धर्म का पथ तुम्हारा पथ होगा ,तुम्हारा आचरण ही सर्वत्र तुम्हारी रक्षा करेगा। ऐसा कहकर कौशल्या एक बहुत बड़े सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देती हैं कि मनुष्य का रक्षक, उसके अभय का स्रोत उसका शील ही है। अपने स्वस्तिवाचन में वे यह नहीं कहती हैं कि भगवान् तुम्हारी रक्षा करें, बल्कि वे कहती हैं कि पुत्र तुम्हारा शील तुम्हारी रक्षा करे, तुम्हारी उपासना का पुण्य तुम्हारी रक्षा करे और तुम्हारी अर्जित अस्त्र विद्या तुम्हारी रक्षा करे। शील, उपासना और विद्या ये तीन ही व्यक्ति के प्रथम रक्षक हैं। इसके बाद आती है देवताओं की कृपा या करुणा। रामायण वीरगाथा है, अतः आशीर्वाद के प्रारम्भ में ही पौरुषवाद की स्थापना कर दी गई। परन्तु शील और उपासना के बिना किया गया पौरुष दिव्य या भव्य नहीं होता। शील निरपेक्ष और उपासना निरपेक्ष विद्या बल, अस्त्र बल और पौरुष उस मंगल की भूमि से नहीं जुड़ पाता जो राम कथा का अभिप्रेत है। वाल्मीकि का नायक जिस पौरुष योग या पुरुषार्थ योग का प्रतीक है, वह प्रत्येक स्तर पर शील और उपासना से जुड़ा हुआ है। कौशल्या शील, उपासना और विद्या का संकेत करके स्वस्ति वाचन में तत्कालीन देवमण्डल से अपने पुत्र की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। उनके द्वारा किया गया देव स्तवन कई दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है और रामायण कालीन धार्मिक चेतना पर प्रकाश डालता है। यह प्रार्थना इस तथ्य की द्योतक है कि रामायण की रचना पौराणिक युग के पूर्व और वैदिक युग के बाद सम्भवतः ब्राह्मण काल में हुई होगी। पुराणों की वरेण्य उपासना मूर्तियों शिव, विष्णु, दुर्गा, लक्ष्मी आदि का इसमें स्तवन नहीं है। इस प्रार्थना की प्रकृति मूल रूप से वैदिक है और वैदिक लोकायत धर्म के देवता ही इसमें मुख्य रूप से आते हैं। लोकायत धर्म जो आर्य और आर्येतर जन समाज का विमिश्र लोक धर्म था मुख्य रूप से वृक्ष पूजा, नदी पूजा, ऋतु पूजा, संवत्सर की शक्तियों, ग्रह नक्षत्र आदि की पूजा से जुड़ा था। आर्य लोक धर्म में वेदी, कुशा, होमाग्नि आदि भी देव प्रतीक थे। इन सब के प्रति राम माता कौशल्या साश्रुकण्ठ से पुत्र के कल्याण की प्रार्थना करती हैं। वे कहती हैं कि हे पुरुषोत्तम, ऋषियों की होमाग्नि तुम्हारी रक्षा करे, उनकी कुशा, उनकी होमवेदी और उनके आहूत देवता तुम्हारी रक्षा करें। सारे पर्वत, सारे जलाशय, सारे वृक्ष, कीट, पतंग, हाथी, सर्प और सिंह तुम्हारी रक्षा करें।
हे राम, सघन वन में दिशाओं के लोकपाल तुम्हारी रक्षा करें, षड् ऋतुओं के अभिमानी देवता तुम्हारी रक्षा करें। दिवस, मास, संवत्सर आदि कालखण्डों के देवता तुम्हारी रक्षा करें, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्रों की कलाएं, ग्रहों की कक्षाएं तुम्हारी रक्षा करें, सप्तर्षि तुम्हारी रक्षा करें, विविध नक्षत्र मण्डलों के देवता तुम्हारी रक्षा करें, व्योम के ज्योतिष्क चक्र की सारी गतियां, आकृतियां और सम्पूर्ण काल चक्र ही तुम्हारी रक्षा करता चले। मैं कुमार कार्तिकेय, इन्द्र और वृहस्पति से प्रार्थना करती हूं कि वे तुम्हारी रक्षा करें। मैं वरुण, कुबेर और दिशाओं के अधिपतियों से, सारे सिद्ध गणों से तुम्हारी रक्षा की भीख मांगती हूं। शुक्र, चन्द्र, सूर्य, ग्रह गण तुम्हारी रक्षा करें। मृत्यु के अभिमानी देवता यम तुम्हारी रक्षा करें। हे पुरुषसिंह, पृथ्वी, आकाश, पवन, चर और अचर जीव गण तुम्हारी रक्षा करें। घोर अरण्य में घूमते हुए अपदेवता और पिशाच गण तुम्हें न सताएं। वानर, विच्छू, सर्प, हाथी, सिंह, वृक, वाराह, मच्छर और तीक्ष्ण सींगों वाले महिष तुमको पीड़ा न दें। ये सब मेरे द्वारा पूजित हों, इनके नियामक देव गण मेरे द्वारा पूजित हों। मैं इन सब की आराधना करती हूं, ये तुम्हें पीड़ा न दें। हे राम, जल में स्नान करते हुए ऋषियों के अघमर्षण मन्त्रों में जो बल है, सुगन्धित होम में जो बल है, वायु और अग्नि में जो बल है, वे सारे बल तुम्हारी रक्षा करें। सर्व भूतों के कर्ता, सब लोकों के प्रभु प्रजापति तथा ऋषिकुल तुम्हारी रक्षा करें। अन्त में मेरा आशीर्वाद है कि तुम्हारे द्वारा पढ़ा गया समस्त आगम शास्त्र तुम्हारा कल्याण करे, तुम्हारा पराक्रम सिद्ध हो, वन में तुम्हें ऐश्वर्य प्राप्त हो, तुम्हारा पथ कल्याणमय हो।
(लेखक एमएलके पीजी कालेज बलरामपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे हैं।)
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