BIMSTEC 2025

BIMSTEC में भारत की भूमिका अब अपरिहार्य

BIMSTEC सिर्फ क्षेत्रीय सहयोग नहीं, बल्कि रणनीतिक ज़रूरत बन चुका है

BIMSTEC की अध्यक्षता तय करने की प्रणाली और भारत की दो बार की अध्यक्षता

भारत के लिए BIMSTEC का अपरिहार्य महत्व: जानिए क्यों अब कोई विकल्प नहीं

जानकी शरण द्विवेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिम्सटेक में हिस्सा लेने थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक पहुंच चुके हैं। । थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में आयोजित BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) के छठे शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति एक बार फिर इस संगठन में भारत की खास भूमिका को रेखांकित करती है। BIMSTEC अब केवल एक क्षेत्रीय संगठन नहीं रहा, बल्कि भारत की विदेश नीति का अपरिहार्य हिस्सा बन गया है। BIMSTEC की स्थापना 6 जून 1997 को बैंकॉक डिक्लेरेशन के जरिए की गई थी। इसका मूल उद्देश्य बंगाल की खाड़ी से जुड़े देशों के बीच बहुआयामी सहयोग को बढ़ावा देना है। वर्तमान में BIMSTEC के सात सदस्य देश हैं – भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड। संगठन का स्थायी सचिवालय बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है, जिसे वर्ष 2014 में स्थापित किया गया था। भारत इस सचिवालय की गतिविधियों के लिए कुल बजट का 32% योगदान देता है, जिससे भारत की इस संगठन में वित्तीय और कूटनीतिक भागीदारी स्पष्ट होती है।

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BIMSTEC का लक्ष्य न केवल व्यापार और तकनीकी सहयोग बढ़ाना है, बल्कि यह संगठन सदस्य देशों को क्षेत्रीय चुनौतियों से मिलकर निपटने, शिक्षा और विज्ञान में प्रगति, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं पर एकजुट होकर काम करने का अवसर भी देता है। आज की वैश्विक व्यवस्था में BIMSTEC का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि दुनिया की लगभग 22% जनसंख्या इन देशों में निवास करती है और इनकी कुल GDP करीब 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। बंगाल की खाड़ी से दुनिया के कुल व्यापार का लगभग एक-चौथाई हिस्सा होकर गुजरता है, जो इस संगठन को वैश्विक व्यापार में भी एक अहम स्थिति प्रदान करता है।

BIMSTEC सम्मेलन में भारत की अपरिहार्य भूमिका को दर्शाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री मोदी BIMSTEC सम्मेलन में, जहां भारत की भूमिका अपरिहार्य मानी जा रही है।

भारत BIMSTEC को अपनी ‘Neighbourhood First’ और ‘Act East’ नीतियों के तहत एक प्रमुख उपकरण मानता है। इसके अंतर्गत भारत पूर्वोत्तर राज्यों के विकास और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत कर रहा है। कुछ प्रमुख परियोजनाएं जैसे कि भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, और BBIN मोटर वाहन समझौता BIMSTEC सहयोग का हिस्सा हैं। ये परियोजनाएं भारत के रणनीतिक और व्यावसायिक हितों को सुरक्षित करने के साथ-साथ क्षेत्रीय संपर्क को भी बढ़ावा देती हैं। इसके साथ ही चीन के Belt and Road Initiative के मुकाबले भारत BIMSTEC को एक जवाबी विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।

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BIMSTEC की अध्यक्षता वर्णमाला क्रम (Alphabetical Order) में सदस्य देशों को दी जाती है। भारत अब तक दो बार इसकी अध्यक्षता कर चुका है। बीते साल नई दिल्ली में 6 से 8 अगस्त तक पहला BIMSTEC व्यापार शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें व्यापार और निवेश को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस वर्ष, BIMSTEC का 6वां सम्मेलन थाईलैंड में आयोजित किया गया, जिसमें सदस्य देशों के प्रमुख शामिल हुए। इससे पहले पांचवां सम्मेलन मार्च 2022 में श्रीलंका और चौथा सम्मेलन 2018 में नेपाल के काठमांडू में हुआ था। विदेश मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों की नियमित बैठकें भी संगठन की सक्रियता को दर्शाती हैं।
BIMSTEC भारत के लिए महज एक क्षेत्रीय संगठन नहीं, बल्कि कूटनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण मंच बन चुका है। पाकिस्तान को शामिल न करने वाला यह संगठन SAARC की तुलना में अधिक प्रासंगिक होता जा रहा है, विशेषकर जब भारत अपने पूर्व और दक्षिणी पड़ोसी देशों से सहयोग को प्राथमिकता दे रहा है। बंगाल की खाड़ी में चीन की बढ़ती उपस्थिति और उसके विस्तारवादी मंसूबों को देखते हुए BIMSTEC भारत के लिए एक शक्तिशाली मंच है, जहां वह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बनाए रखते हुए अपने हितों को सुरक्षित रख सकता है।

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