विवादों के बीच वक्फ संशोधन विधेयक पास
लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है वक्फ संशोधन विधेयक, बनेगा कानून
सरकार का दावा – पारदर्शिता और कुशल प्रबंधन लाना है उद्देश्य, विपक्ष ने बताया मुस्लिम विरोधी
विपक्ष का आरोप – जेपीसी में सुझावों की अनदेखी, वक्फ संशोधन विधेयक से मुस्लिम समाज हाशिए पर जाएगा
वक्फ संशोधन विधेयक पर कई विपक्षी संशोधन ध्वनिमत से खारिज, डीएमके का एक संशोधन गिरा
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। केंद्र सरकार के बहुचर्चित वक्फ संशोधन विधेयक – उम्मीद (Unification for Management, Empowerment, Efficiency and Development) को गुरुवार देर रात राज्यसभा से भी पारित कर दिया गया। इस विधेयक पर राज्यसभा में करीब 13 घंटे तक चली लंबी बहस के बाद सुबह 2:30 बजे मतदान हुआ, जिसमें विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 मत पड़े। इससे पहले बुधवार रात लोकसभा में यह विधेयक 288 के मुकाबले 232 मतों से पारित हो चुका है। राज्यसभा में विपक्ष के सभी संशोधन प्रस्तावों को ध्वनिमत से खारिज कर दिया गया, जबकि डीएमके के तिरुचि शिवा का प्रस्ताव 125 के मुकाबले 92 मतों से अस्वीकृत हो गया। विधेयक अब राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा, जिसके बाद इसे अधिसूचित कर कानून का रूप दे दिया जाएगा।
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सरकार द्वारा इसे यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एम्पावरमेंट एफिशिएंसी एंड डवलपमेंट (उम्मीद) नाम दिया गया है, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और दक्षता लाना है। चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई। कांग्रेस, सपा, राजद, डीएमके समेत विपक्षी दलों के नेताओं ने विधेयक को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों में हस्तक्षेप बताते हुए विरोध किया, जबकि भाजपा ने इसे व्यवस्थागत सुधार की दिशा में बड़ा कदम बताया।
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विधेयक पर चर्चा का उत्तर देते हुए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय वक्फ काउंसिल में गैर मुस्लिमों का बहुमत नहीं होगा। उन्होंने कहा कि 20 सदस्यीय राष्ट्रीय निकाय में पदेन अध्यक्ष सहित चार से अधिक गैर मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते, जबकि राज्य निकायों में अधिकतम तीन गैर मुस्लिम सदस्य ही होंगे। रिजिजू ने बताया कि विधेयक के मूल मसौदे की तुलना में इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव विपक्ष के सुझावों पर किए गए हैं। उन्होंने कहा कि पहले से पंजीकृत वक्फ संपत्तियों में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती और यह संशोधन संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में विपक्ष के सुझाव पर ही शामिल किया गया। इसी प्रकार, गैर पंजीकृत वक्फ ट्रस्टों के लिए पंजीकरण की समय-सीमा छह महीने तक बढ़ाई गई है।

विपक्ष की ओर से कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे, सपा के रामगोपाल यादव, राजद के मनोज झा, डीएमके के तिरुचि शिवा, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और अन्य नेताओं ने विधेयक पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह मुस्लिमों को हाशिए पर डालने वाला और धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने वाला कदम है। विपक्ष का आरोप था कि जेपीसी में उनके संशोधनों को नजरअंदाज किया गया और सरकार मुस्लिमों के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है।
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कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि सरकार ने सदन में यह कहकर गुमराह किया कि वक्फ न्यायाधिकरण के फैसलों को चुनौती नहीं दी जा सकती, जबकि वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 83(9) के तहत ऐसे फैसलों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। सपा सांसद रामगोपाल यादव ने सरकार पर वक्फ संपत्तियों को लेकर लापरवाही का आरोप लगाया और कहा कि अब तक यह पता नहीं था कि वक्फ के पास कितनी संपत्ति है। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।
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वहीं सत्ता पक्ष की ओर से जेपी नड्डा, सुधांशु त्रिवेदी, राधामोहन अग्रवाल और अन्य नेताओं ने विधेयक का समर्थन किया। जेपी नड्डा ने कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के रखरखाव और पारदर्शी संचालन की दिशा में एक बड़ा सुधार है। उन्होंने कहा कि भ्रम फैलाकर मुस्लिम समुदाय को भड़काने की कोशिश की जा रही है, जबकि विधेयक का उद्देश्य केवल प्रशासनिक सुधार है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए स्पष्ट किया कि जिन राज्यों में हिंदू संस्थानों के पास लाखों एकड़ जमीन है, उनका प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारें करती हैं। उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियों के मामलों में निर्णय लेने वाली संस्थाओं में गैर मुस्लिमों की न्यूनतम भागीदारी विवाद निपटारे में सहायक होगी, क्योंकि वक्फ विवाद केवल मुस्लिमों के बीच नहीं, बल्कि अन्य समुदायों के साथ भी होते हैं। केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने विपक्ष द्वारा लगाए गए इस आरोप को खारिज किया कि सरकार मुस्लिमों के मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश ने सरकार चलाने का जनादेश दिया है और यह विधेयक उसी दिशा में उठाया गया एक लोकतांत्रिक कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष अब भी मुस्लिम समुदाय का स्वघोषित ठेकेदार बना रहना चाहता है, जबकि इस विधेयक का उद्देश्य समाज में समरसता और न्याय सुनिश्चित करना है।
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