पिपलांत्रीःजहां पेड़ों को बांधी जाती है राखी

(रक्षाबंधन पर विशेष)

शालिनी सिंह

वैसे तो रक्षाबंधन का पर्व हमारे देश में भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती हैं। लेकिन राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गांव में इस त्योहार को मनाने का एक अनोखा और प्रेरणादायक तरीका है, जहां पर बहनें सिर्फ अपने भाइयों को ही नहीं, बल्कि पेड़ों को भी राखी बांधती हैं। यह गांव पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता और सामुदायिक सशक्तीकरण के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक मिसाल बन चुका है। पिपलांत्री की कहानी हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने त्योहारों को एक नए और सार्थक रूप में मना सकते हैं। आइए, इस गांव की अनोखी कहानी को विस्तार से जानते हैं।

रक्षाबंधन और पेड़

पिपलांत्री गांव की महिलाएं हर साल रक्षाबंधन पर पेड़ों को राखी बांधती हैं। यह अनोखी परंपरा पिछले 15 सालों से चली आ रही है और यह पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके अटूट समर्पण का प्रतीक है। जब गांव के पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बेटी की मौत हुई, तो उन्होंने उसकी याद में यह पहल शुरू की। इससे न केवल उनकी बेटी की याद को जीवित रखा गया, बल्कि पूरे गांव को हरा-भरा बनाने का संकल्प भी लिया गया।

बेटी के जन्म पर पौधे लगाने की परंपरा

पिपलांत्री गांव में बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाना एक अनिवार्य परंपरा है। यह न केवल बेटी के जन्म का स्वागत करता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस परंपरा के चलते आज गांव में ढाई लाख से भी अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं, जो अब पूरे गांव को हरा-भरा बनाते हैं।

पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता

इस गांव की कहानी सिर्फ पेड़ लगाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पेड़ों की सुरक्षा और उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी उठाती है। यहां के लोग अपनी बेटियों की परवरिश के साथ-साथ उन पौधों की देखभाल भी करते हैं, जो उन्होंने बेटी के जन्म पर लगाए थे। इससे बेटियों की वृद्धि और पेड़ों की बढ़त के बीच एक गहरा संबंध बनता है। संरक्षण, लैंगिक समानता और सामुदायिक सशक्तीकरण के मूल्यों को साथ जोड़कर पिपलांत्री गांव ने एक नई मिसाल कायम की है।

आर्थिक और सामाजिक क्रांति

पिपलांत्री गांव में वित्तीय सुरक्षा के लिए भी खास पहल की गई है। बेटी के जन्म पर समुदाय सामूहिक रूप से 21,000 रुपये का योगदान देता है और माता-पिता से 10,000 रुपये लेकर, इसे एक निश्चित खाते में जमा कर दिया जाता है। इसके अलावा, शिक्षा और कानूनी उम्र तक शादी को प्राथमिकता देने के लिए माता-पिता से हलफनामे पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं।

अर्थ व्यवस्था में सुधार के प्रयास

इस पहल का स्थानीय अर्थ व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। पेड़ों की रक्षा के लिए उनके आसपास एलोवेरा के पौधे लगाए गए, जिनका उपयोग ग्रामीण जूस और जेल जैसे उत्पादों को बनाने और बेचने के लिए करते हैं। इससे उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है और गांव की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली है।

डेनमार्क में अध्ययन का विषय

पिपलांत्री की कहानी न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुकी है। डेनमार्क में इस गांव की कहानी स्कूलों में पढ़ाई जाती है। वहां के बच्चे पिपलांत्री के अनोखे पर्यावरण संरक्षण और लैंगिक समानता की पहल से प्रेरणा लेते हैं।

रेडियो मित्र का संदेश

इस रक्षाबंधन पर मैं आप सभी से यह निवेदन करती हूँ कि हम अपने भाइयों के साथ-साथ अपनी धरती माता को भी इस पर्व का हिस्सा बनाएं। पेड़ों को राखी बांधें, उन्हें भी अपने भाई की तरह सहेजें और उनकी सुरक्षा का वचन दें। यही हमारी धरती को हरा-भरा बनाए रखने और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या हमारे देश की सारी बहनें ऐसा कर सकती हैं? क्या हर भाई, हर सरपंच, हर नेता, हर मंत्री अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुरूप रक्षा का वचन पिपलांत्री के सरपंच की तरह देने को तैयार हैं? अगर हाँ, तो न सिर्फ हमारी बेटियाँ सशक्त और सुरक्षित होंगी, बल्कि हमारी पृथ्वी भी संरक्षित होगी। पिपलांत्री गांव की इस प्रेरणादायक पहल से सीख लेते हुए, हम भी अपने आसपास के पर्यावरण को संवारने में अपनी भूमिका निभाएं। रक्षाबंधन की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आइए, इस पर्व को एक नए और खास रूप में मनाएं।

(लेखिका लखनऊ निवासी रेडियो जॉकी व आकाशवाणी एंकर हैं।)

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