खौफ के साए में पहलगाम!
पहलगाम में आतंकी हमले ने फिर उठाए कश्मीर की सुरक्षा और पर्यटन पर सवाल
जानकी शरण द्विवेदी
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम जैसे शांत, सुरम्य और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध स्थल पर हालिया आतंकी हमले ने एक बार फिर घाटी की नाजुक सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर इस घटना में भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता की निर्मम हत्या हुई, वहीं दूसरी ओर इसने अमरनाथ यात्रा से पहले सुरक्षा व्यवस्था की तैयारियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता गहरा दी है।
पहलगाम, जिसे आमतौर पर ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाता है, साल दर साल लाखों पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह अमरनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव भी है। लेकिन इसी पहलगाम में आतंकी संगठन द्वारा अंजाम दिए गए इस लक्षित हमले ने न केवल एक राजनीतिक हत्या को जन्म दिया, बल्कि यह दर्शाया कि आतंकी संगठन अब टूरिज़्म हब को भी निशाना बना रहे हैं ताकि व्यापक प्रभाव और भय का वातावरण बनाया जा सके।
अमरनाथ यात्रा से पहले सुरक्षा पर खतरा
घटना की गंभीरता इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह उस समय हुई है जब कुछ ही हफ्तों में वार्षिक अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। इस यात्रा में हर साल लाखों श्रद्धालु देशभर से आते हैं और पहलगाम उसका मुख्य मार्ग है। इस इलाके में आतंकी गतिविधि से न केवल यात्रा की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है बल्कि पर्यटन पर भी व्यापक असर पड़ेगा।
सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह एक चेतावनी है कि अब पारंपरिक ‘हॉट ज़ोन’ के अलावा शांत समझे जाने वाले पर्यटन स्थलों पर भी आतंकी संगठन हमला करने की योजना बना सकते हैं। इसके पीछे उनकी मंशा केवल किसी एक व्यक्ति को निशाना बनाना नहीं बल्कि पूरे इलाके की छवि को नुकसान पहुंचाना है।

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पहलगाम के स्थानीय निवासियों पर असर
यह हमला केवल राजनीतिक नहीं है; इसका सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी गहरा है। पहलगाम और आस-पास के इलाके पर्यटन पर आश्रित हैं। होटल मालिकों, टूर ऑपरेटरों, दुकानदारों, गाइड्स और टैक्सी चालकों के लिए यह समय आमदनी का होता है। लेकिन अगर ऐसी घटनाएं दोहराई जाती हैं, तो बाहरी पर्यटक और श्रद्धालु डर के मारे इस क्षेत्र से दूरी बनाने लगते हैं।
स्थानीय निवासी अब खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। वहीं, कई परिवारों ने अपने बच्चों को बाहर भेजने की बात कही है क्योंकि वे घाटी में अब भविष्य नहीं देख पा रहे।
TRF और लक्षित हिंसा की रणनीति
पुलिस और खुफिया एजेंसियों को शक है कि पहलगाम हमले के पीछे आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) का हाथ हो सकता है। TRF को लश्कर-ए-तैयबा का ही एक नया चेहरा माना जाता है, जो विशेष रूप से लक्षित हमलों में माहिर हो चुका है। 2022 से अब तक TRF द्वारा घाटी में 40 से अधिक लक्षित हत्याओं को अंजाम दिए जाने की पुष्टि हो चुकी है। इनमें गैर-स्थानीय मजदूर, कश्मीरी पंडित, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य और राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि TRF जैसी संस्थाएं अब केवल उग्रवाद की पुरानी शैली पर निर्भर नहीं हैं।
आतंकवाद की बदलती रणनीति
हालिया घटनाएं बताती हैं कि आतंकवाद की रणनीति अब व्यापक भय के निर्माण की ओर बढ़ रही है। पहले जहां केवल सुरक्षाबलों पर हमले होते थे, अब ‘soft targets’ जैसे राजनीतिक कार्यकर्ता, अध्यापक, अल्पसंख्यक और टूरिज़्म हब को निशाना बनाया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि सरकार की ‘सामान्य हालात’ वाली रणनीति को झुठलाया जाए। विश्लेषकों का मानना है कि यह हमले सुरक्षा एजेंसियों की खुफिया विफलता भी उजागर करते हैं। पहलगाम जैसे हाई-प्रोफाइल स्थान पर हमला होना इस बात का संकेत है कि आतंकी नेटवर्क अब कहीं अधिक गहराई और चुपके से काम कर रहे हैं।

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राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
पहलगाम घटना के बाद केंद्र और राज्य सरकार दोनों की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘कायरतापूर्ण हमला’ बताते हुए कहा कि भारत इस तरह की साजिशों से डरने वाला नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करते हुए दोषियों को कड़ी सज़ा देने की बात कही। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे विरोधी दलों ने भी इस घटना की निंदा की है लेकिन साथ ही सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘सामान्य स्थिति’ के दावों की पोल खुल चुकी है।
अमरनाथ यात्रा पर संभावित असर
घाटी में हालात सुधरने के बाद अमरनाथ यात्रा एक तरह से शांति का संकेत मानी जाती रही है। लेकिन इस तरह की घटनाएं प्रशासन और सेना दोनों के लिए चुनौती खड़ी कर देती हैं। यात्रा के मार्ग में सुरक्षा व्यवस्था, मोबाइल नेटवर्क, निगरानी ड्रोन, और चौकियों की संख्या में बढ़ोत्तरी की संभावना है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या ऐसी घटनाएं यात्रा को स्थगित करने की वजह बन सकती हैं?
रास्ता क्या है?
पर्यटन और तीर्थाटन को घाटी में शांति और समृद्धि लाने का एक बड़ा माध्यम माना जाता रहा है। लेकिन जब पर्यटन स्थल ही आतंकी हमलों का शिकार बनने लगें, तो यह स्पष्ट है कि केवल सैन्य समाधान पर्याप्त नहीं है। सरकार को ज़मीनी स्तर पर काम करना होगा, रोजगार, शिक्षा, और संवाद के ज़रिए युवाओं को आतंक के रास्ते से दूर रखना होगा। घाटी में विश्वास की बहाली सबसे बड़ी चुनौती है। स्थानीय लोगों को भरोसा दिलाना, सुरक्षा बलों की जवाबदेही सुनिश्चित करना और सभी पक्षों को साथ लेकर चलना अब अनिवार्य हो गया है।
पहलगाम में हुआ यह हमला केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक है जो कश्मीर में डर और अविश्वास को फिर से ज़िंदा करना चाहती है। ऐसे में ज़रूरत है केवल प्रतिक्रियाओं की नहीं, बल्कि संवेदनशील, दूरदर्शी और समावेशी रणनीति की, ताकि घाटी में वास्तविक शांति की स्थापना हो सके।

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