गोंडा से उठी राष्ट्रीय चेतना को बुलंद करने की आवाज़
संघ के शताब्दी वर्ष में पंच परिवर्तन को लेकर आगे बढेगा ABVP Gonda-कौशल जी
संवाददाता
गोंडा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP Gonda) के अवध प्रांत अभ्यास वर्ग के अंतिम दिन पंच परिवर्तन की दिशा में जो राष्ट्रचिंतन प्रस्तुत किया गया, उसने सामाजिक बदलाव की एक नई धारा को जन्म दिया है। परिषद के कार्यकर्ता अब इस पंचशील के पाँच स्तंभों सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और नागरिक कर्तव्य को लेकर समाज के बीच सघन अभियान चलाएंगे।
ABVP Gonda की धरती पर आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए प्रांत प्रचारक ने स्पष्ट किया कि पंच परिवर्तन का यह संकल्प न केवल संगठन की रणनीति है, बल्कि समग्र समाज की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से देश में एकल परिवार की प्रवृत्ति बढ़ रही है, वैसे ही संस्कृति, पर्यावरण और समरसता जैसे मूलभूत मूल्यों में गिरावट आई है। ऐसे में पंच परिवर्तन कार्यक्रम एक ऐसी धुरी बनकर उभरा है जो भविष्य के भारत को संस्कारित, समरस और समृद्ध बना सकता है।
प्रांत प्रचारक ने जोर देकर कहा कि स्व के बोध से व्यक्ति न केवल अपने अधिकारों को बल्कि अपने कर्तव्यों को भी पहचान सकेगा। यह पंच परिवर्तन की आत्मा है नागरिक जब अपने दायित्वों को ईमानदारी से निभाएगा, तभी राष्ट्र बलवान बनेगा।
सामाजिक समरसता पर विशेष बल
परिषद का मानना है कि अस्पृश्यता पाप है और इसके खिलाफ निरंतर विमर्श खड़ा करना समय की मांग है। पंच परिवर्तन का यह पहला आयाम सामाजिक समरसता के लिए भारत भर में सक्रिय है। जाति-पांति, ऊंच-नीच के भेद को समाप्त करने के लिए परिषद ‘सामाजिक समरसता गतिविधि’ के तहत व्यापक संवाद चला रही है।
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पर्यावरण संरक्षण — जीवन के लिए संघर्ष
प्राकृतिक असंतुलन के बीच पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली का संदेश भी पंच परिवर्तन में प्रमुखता से शामिल है। केवल वृक्षारोपण ही नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा अनुसार प्रकृति के साथ सहजीवन पर आधारित सोच का प्रसार इसमें निहित है।
परिवार प्रबोधन से संस्कारों की पुनर्स्थापना
कार्यक्रम में ज़ोर दिया गया कि पंच परिवर्तन का तीसरा आयाम परिवार प्रबोधन आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक है। तेजी से बढ़ते एकल परिवारों के इस युग में पारिवारिक मूल्य, सहजीवन, और बच्चों में भारतीय संस्कारों का समावेश आवश्यक है।

स्वदेशी और ‘स्व’ की भावना
सिर्फ वस्त्र, भोजन या उत्पाद में ही नहीं, बल्कि विचार, आचरण और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वदेशी को अपनाना जरूरी है। पंच परिवर्तन स्वभाविक रूप से इस चेतना का विस्तार करता है। यदि प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करे, तो भारत को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। पंच परिवर्तन का अंतिम लेकिन सबसे निर्णायक आयाम नागरिक कर्तव्यों के पालन पर सामाजिक जागरूकता फैलाना है।
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चिंतन नहीं, अब आचरण की बारी
श्री कौशल जी ने स्पष्ट किया कि यह कोई अकादमिक या वैचारिक बहस का विषय मात्र नहीं है, बल्कि यह व्यवहार में उतरने का विषय है। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे अपने-अपने क्षेत्र में पंच परिवर्तन के इन आयामों को ले जाकर समाज में व्यावहारिक परिवर्तन का माध्यम बनें।
कार्यक्रम के समापन पर यह भी स्पष्ट हुआ कि परिषद के सभी आगामी कार्यक्रमों, बैठकों एवं अभियानों में पंच परिवर्तन को केंद्रीय विषय बनाया जाएगा। यह केवल विद्यार्थी परिषद का नहीं, बल्कि भारत के प्रत्येक सजग नागरिक का उत्तरदायित्व है कि वह इस आंदोलन में सहभागी बने।
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