Wednesday, July 9, 2025
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Supreme Court ने संवैधानिक पदों पर आरक्षण किया खारिज

न्यायाधीशों की नियुक्तियों में आरक्षण की नीति लागू नहीं हो सकती-Supreme Court

नेशनल डेस्क

नई दिल्ली : भारत के Supreme Court ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि संवैधानिक पदों, विशेष रूप से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में आरक्षण की नीति लागू नहीं हो सकती। इस फैसले में Supreme Court ने जोर देकर कहा कि जज जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर नियुक्ति केवल योग्यता, अनुभव और उपयुक्तता के आधार पर होगी। यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली में योग्यता को प्राथमिकता देने और निष्पक्षता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

फैसले का पृष्ठभूमि और संदर्भ
Supreme Court का यह फैसला एक याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें संवैधानिक पदों पर आरक्षण लागू करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को संवैधानिक पदों पर प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण नीति का विस्तार किया जाना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि संवैधानिक पदों की प्रकृति ऐसी है कि इन पर नियुक्ति के लिए योग्यता और निष्पक्षता सर्वोपरि है।

जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 124 (सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति) और अनुच्छेद 217 (उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति) का हवाला देते हुए कहा कि इन पदों पर नियुक्ति के लिए योग्यता, अनुभव और चरित्र को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। Supreme Court ने यह भी स्पष्ट किया कि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है, लेकिन न्यायिक पदों पर इस नीति को लागू करने से न्यायिक प्रणाली की गुणवत्ता और स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

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कोर्ट का तर्क और कानूनी आधार

Supreme Court ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:
न्यायिक स्वतंत्रता और योग्यता: Supreme Court ने कहा कि संवैधानिक पद, विशेष रूप से जजों के पद, देश की न्यायिक प्रणाली की रीढ़ हैं। इन पदों पर नियुक्त व्यक्ति को न केवल कानूनी ज्ञान में निपुण होना चाहिए, बल्कि उसे निष्पक्षता, स्वतंत्रता और नैतिकता के उच्चतम मानकों को भी पूरा करना चाहिए। आरक्षण नीति लागू करने से योग्यता पर आधारित चयन प्रक्रिया कमजोर हो सकती है।

संवैधानिक ढांचा: Supreme Court ने संविधान के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनुच्छेद 124 और 217 में जजों की नियुक्ति के लिए कोई प्रावधान नहीं है जो आरक्षण को अनिवार्य करता हो। इसके विपरीत, इन अनुच्छेदों में योग्यता और अनुभव को प्राथमिकता दी गई है।

सामाजिक समानता बनाम न्यायिक दक्षता: Supreme Court ने माना कि आरक्षण नीति सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने का एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन इसका उपयोग उन क्षेत्रों में नहीं किया जा सकता जहां दक्षता और स्वतंत्रता सर्वोच्च प्राथमिकता है।

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फैसले का प्रभाव

इस फैसले का भारतीय न्यायिक प्रणाली और समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। कुछ प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:
कोलेजियम प्रणाली को मजबूती: यह फैसला कोलेजियम प्रणाली को और मजबूत करता है, जिसमें जजों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के वरिष्ठ जजों द्वारा की जाती है। कोलेजियम प्रणाली पहले से ही योग्यता और अनुभव पर आधारित है, और यह फैसला इस प्रणाली की वैधता को और पुष्ट करता है।

न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता: इस फैसले से न्यायिक नियुक्तियों में योग्यता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि केवल योग्य और उपयुक्त व्यक्ति ही संवैधानिक पदों पर नियुक्त हों।

सामाजिक बहस को बढ़ावा: यह फैसला सामाजिक समानता और योग्यता के बीच संतुलन को लेकर एक नई बहस को जन्म दे सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए प्रतिनिधित्व की मांग को प्रभावित कर सकता है, जबकि अन्य इसे न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के रूप में देखते हैं।

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विशेषज्ञों और समाज की प्रतिक्रिया
इस फैसले पर समाज के विभिन्न वर्गों और कानूनी विशेषज्ञों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता और दक्षता को बनाए रखने में मदद करेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, “यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक नियुक्तियां योग्यता पर आधारित रहें, जो एक मजबूत और निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली के लिए आवश्यक है।”

वहीं, कुछ सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि संवैधानिक पदों पर आरक्षण की अनुपस्थिति सामाजिक रूप से वंचित समुदायों के लिए प्रतिनिधित्व की कमी को और बढ़ा सकती है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “हालांकि योग्यता महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिले।”

Supreme Court का यह फैसला न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह सामाजिक समानता और योग्यता के बीच संतुलन को लेकर एक नई बहस को भी जन्म देता है। यह फैसला कोलेजियम प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां केवल योग्यता और उपयुक्तता के आधार पर हों। हालांकि, यह फैसला सामाजिक समावेशिता और प्रतिनिधित्व के सवालों को भी उठाता है, जिस पर भविष्य में और चर्चा की आवश्यकता होगी।

Supreme Court के इस फैसले के दीर्घकालिक प्रभावों को देखने के लिए समाज और कानूनी बिरादरी की नजरें अब कोर्ट की अगली कार्रवाइयों और सरकार की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं। यह निश्चित रूप से भारतीय संविधान और न्यायिक प्रणाली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज होगा।

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