एनआईए की टीम घाटी में सम्हाले है जांच और तलाशी अभियान का जिम्मा
पहलगाम हमला को लेकर अब तक 3000 से ज्यादा लोगों से पूछताछ कर चुकी है एनआइए
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। पहलगाम हमला 22 अप्रैल, 2025 को तब हुआ, जब बायसरन घाटी में तीन आतंकी जंगल से निकलकर आए। उन्होंने टूरिस्ट्स को निशाना बनाया और धर्म पूछकर 15 मिनट तक अंधाधुंध गोलीबारी की। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई, जिसमें ज्यादातर पर्यटक थे। हमले के बाद आतंकी जंगलों में गायब हो गए। सुरक्षा बलों ने तुरंत इलाके की घेराबंदी की, लेकिन आतंकियों का कोई सुराग नहीं मिला। इस घटना ने पहलगाम जैसे शांत पर्यटन स्थल की सुरक्षा पर सवाल उठाए।
पहलगाम हमला : 113 गिरफ्तार, फिर भी खाली हाथ
गृह मंत्रालय के आदेश पर पहलगाम हमला की जांच 27 अप्रैल को एनआइए ने आधिकारिक तौर पर अपने हाथ में लिया। एनआइए चीफ सदानंद दाते इसकी निगरानी कर रहे हैं। जांच में अब तक 3,000 से ज्यादा लोगों से पूछताछ हुई और 113 संदिग्धों को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया। इसके बावजूद आतंकी आदिल, मूसा और अली का कोई सुराग नहीं मिला।
23 अप्रैल को अनंतनाग पुलिस ने एक पोस्टर जारी किया, जिसमें हमले से जुड़ी जानकारी देने वालों को 20 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की गई। अगले दिन तीन आतंकियों अनंतनाग के आदिल हुसैन ठोकर, पाकिस्तानी हाशिम मूसा उर्फ सुलेमान और अली उर्फ तल्हा भाई के स्केच और नाम जारी किए गए। इनमें मूसा पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप का पूर्व कमांडो है।
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जंगल और लोकल सपोर्ट की आड़ में बच रहे आतंकी
पहलगाम हमला के बाद आतंकियों के जंगलों में छिपे होने की आशंका है। जांच एजेंसियों का मानना है कि आतंकी दो या तीन ओवरग्राउंड वर्कर्स के संपर्क में हैं, जो उन्हें जरूरी सामान पहुंचा रहे हैं। ये सीमित और भरोसेमंद नेटवर्क के जरिए काम कर रहे हैं, जिससे आतंकियों की लोकेशन ट्रेस करना मुश्किल हो रहा है। आतंकी जंगलों, गुफाओं और पहाड़ी इलाकों में बने हाइडआउट्स में छिपे हैं। घरों में बने हाइडआउट्स का इस्तेमाल नहीं हो रहा, क्योंकि इनकी जानकारी लीक होने का खतरा रहता है। सूत्रों के अनुसार, आतंकी रात में अपनी लोकेशन बदलते रहते हैं, जिससे उनकी तलाश और मुश्किल हो जाती है।
लोकल नेटवर्क की भूमिकाः आतंकियों का सहारा
जम्मू कश्मीर में काम कर रही सुरक्षा एजेंसियों और जम्मू-कश्मीर पुलिस का कहना है कि पहलगाम हमला के बाद भी आतंकियों को लोकल नेटवर्क का समर्थन मिल रहा है। यह नेटवर्क इतना गोपनीय है कि सीमित लोग ही आतंकियों से संपर्क में हैं। इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए एनआइए और पुलिस ने 3,000 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की, लेकिन अब तक कोई ठोस सुराग नहीं मिला।
13 मई को साउथ कश्मीर के पुलवामा, शोपियां और त्राल में उर्दू में पोस्टर लगाए गए। इनमें आतंकी अली की फोटो थी, जो दिसंबर 2024 में मारे गए आतंकी जुनैद अहमद के फोन से मिली थी। चश्मदीदों और पीड़ित परिवारों ने अली की पहचान की, लेकिन उसकी सटीक लोकेशन अब तक नहीं मिली।
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हेल्पलाइन और लगातार सर्च ऑपरेशन
पहलगाम हमला की जांच में एनआइए ने सात मई को हेल्पलाइन नंबर जारी किए। लोगों से हमले से जुड़े फोटो, वीडियो या सूचनाएं साझा करने की अपील की गई। हालांकि, एनआइए ने अनंतनाग पुलिस के स्केच या आतंकियों के नाम से जुड़ी कोई अतिरिक्त जानकारी नहीं मांगी। सूत्रों का कहना है कि एनआइए हर पहलू की नए सिरे से जांच कर रही है, जिसके चलते उसने अपने स्केच जारी नहीं किए।
पहलगाम हमला की जांच में शामिल आइजी, डीआइजी और एसपी रैंक के अधिकारी लगातार पहलगाम और आसपास के इलाकों में तलाशी अभियान चला रहे हैं। बायसरन घाटी में काम करने वाले जिप लाइन ऑपरेटर मुज्जमिल और घोड़े वालों से रोज पूछताछ हो रही है। एक वीडियो में मुज्जमिल को हमले के दौरान अल्लाह-हू-अकबर कहते सुना गया, जिसके बाद उससे गहन पूछताछ की गई।
लोकल कश्मीरियों से ही मिलेगा सुराग
रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत का मानना है कि पहलगाम हमला के आतंकियों को पकड़ने के लिए लोकल कश्मीरियों का भरोसा जीतना जरूरी है। उनसे ही सटीक इंटेलिजेंस मिल सकता है। दुलत के अनुसार, आतंकियों का नेटवर्क तोड़ने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग जरूरी है, जो आसान नहीं है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद सुरक्षा बलों ने साउथ कश्मीर में कई ऑपरेशन चलाए। 13 मई को शोपियां के केलर में लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी संगठन टीआरएफ के तीन आतंकी मारे गए। 15 मई को त्राल में जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकियों को ढेर किया गया। ये ऑपरेशन सटीक सूचनाओं के आधार पर हुए, लेकिन आदिल, मूसा और अली अब भी फरार हैं।
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चुनौतियां और भविष्य की रणनीति
पहलगाम हमला ने सुरक्षा व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है। आतंकियों का सीमित नेटवर्क और जंगलों में छिपने की रणनीति जांच को मुश्किल बना रही है। एनआइए और सुरक्षा बल अब ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन घने जंगल और पहाड़ी इलाके इसे चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। सूत्रों का कहना है कि आतंकियों की सटीक लोकेशन पाने के लिए लोकल इंटेलिजेंस को और मजबूत करना होगा। साथ ही, ओवरग्राउंड वर्कर्स के नेटवर्क को तोड़ने के लिए और सख्ती की जरूरत है।
पहलगाम हमला का सबक
पहलगाम हमला एक बार फिर आतंकवाद के खिलाफ जंग में नई चुनौतियों को दर्शाता है। 26 बेगुनाहों की जान लेने वाले आतंकी अब भी आजाद हैं, जो सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय है। लोकल सपोर्ट और जंगलों की आड़ में छिपे आतंकियों को पकड़ने के लिए व्यापक रणनीति और स्थानीय लोगों का सहयोग जरूरी है।

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