प्रादेशिक डेस्क
लखनऊ। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा हैरतअंगेज क्षण दर्ज है, जब एक व्यक्ति केवल 31 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बना और फिर सत्ता से बेदखल हो गया। यह नाम है जगदंबिका पाल, जो साल 1998 में उत्तर प्रदेश की सियासत में तूफान की तरह उभरे और पलभर में बिखर भी गए। इस पूरे घटनाक्रम ने भारतीय राजनीति में सत्ता, विरोध और संवैधानिक जटिलताओं की एक अविश्वसनीय कहानी रच दी।
मायावती और मुलायम की चाल, कल्याण की सत्ता पर वार
फरवरी 1998 की बात है। उस वक्त उत्तर प्रदेश में भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार थी, और मुख्यमंत्री थे कल्याण सिंह। लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन से समर्थन वापस लेने का एलान कर दिया। यही नहीं, समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी उनके निर्णय को समर्थन देकर सत्ता संकट को और गहरा कर दिया।
21 फरवरीः देर रात खेला गया बड़ा सियासी दांव
उसी दिन रात करीब 2 बजे मायावती ने तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी से मुलाकात की और जगदंबिका पाल को विधायक दल का नेता घोषित कर उन्हें सीएम पद की सिफारिश की। रात 10.30 बजे आनन-फानन में जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई।
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कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने का मौका भी नहीं मिला
जब यह घटनाक्रम चल रहा था, कल्याण सिंह उस वक्त गोरखपुर में चुनाव प्रचार कर रहे थे। जैसे ही उन्हें सूचना मिली, वो सुबह 5 बजे लखनऊ पहुंचे और सीधे राजभवन जाकर बहुमत साबित करने का समय मांगा, लेकिन राज्यपाल ने इंकार कर दिया।
दो मुख्यमंत्री, एक राज्यः सत्ता का सबसे विचित्र दृश्य
22 फरवरी को लखनऊ में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी थी। उससे ठीक पहले लखनऊ सचिवालय में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि दो व्यक्ति खुद को मुख्यमंत्री बता रहे थे! एक ओर थे जगदंबिका पाल, दूसरी ओर कल्याण सिंह। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस असंवैधानिक निर्णय के विरोध में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया।
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31 घंटे में सत्ता हाथ से गई
22 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीजेपी नेता नरेंद्र सिंह गौड़ की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्यपाल के आदेश को रद्द कर दिया और कल्याण सिंह सरकार को बहाल कर दिया। अदालत ने उन्हें तीन दिनों में विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया।
शक्ति परीक्षण में पलटी बाजी
25 फरवरी 1998 को विधानसभा में शक्ति परीक्षण हुआ। कल्याण सिंह को 225 और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले। इस तरह इतिहास में दर्ज हो गया कि जगदंबिका पाल सिर्फ 31 घंटे तक यूपी के मुख्यमंत्री रह पाए।
जगदंबिका पाल का सियासी सफर
वह 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बने। 1988 से 1999 तक राज्य मंत्री के रूप में काम किया।
1998 में मात्र 31 घंटे के लिए मुख्यमंत्री बने। 2009 में कांग्रेस से डुमरियागंज से सांसद चुने गए। 2014 में भाजपा जॉइन की और फिर से जीत हासिल की। 2019 और 2024 में डुमरियागंज से लोकसभा पहुंचे। जगदंबिका पाल का नाम अब एक राजनीतिक प्रतीक बन चुका है। सत्ता के शिखर तक पहुंचकर भी पल में हाथ से फिसल जाने वाली अस्थिरता और विडंबना का प्रतीक।
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