पटना उच्च न्यायालय के आदेश से खलबली, प्रशासन की चूक पड़ी भारी
15 दिन में 4.17 करोड़ का भुगतान न करने पर नीलाम करना होगा मधुबनी कलेक्टर कार्यालय
राज्य डेस्क
पटना। मधुबनी कलेक्टर कार्यालय नीलामी को लेकर जिले में सनसनी फैल गई है। न्यायालय के आदेश के बाद समाहरणालय परिसर की नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने की चेतावनी ने पूरे प्रशासन को हिला कर रख दिया है। मामला 1996-97 के एक पुराने वाणिज्यिक विवाद से जुड़ा है, जिसमें न्यायिक आदेशों की अनदेखी की कीमत अब सरकारी परिसंपत्ति की नीलामी के रूप में चुकानी पड़ रही है।
सरकारी आदेशों की अनदेखी बनी गंभीर संकट की वजह
पटना उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार मधुबनी समाहरणालय की संपत्ति को नीलाम करने का आदेश केवल इसलिए जारी हुआ क्योंकि 4.17 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान तय समयसीमा में नहीं किया गया। यदि अगले 15 दिनों में यह राशि नहीं चुकाई गई, तो प्रशासनिक मुख्यालय की यह संपत्ति नीलाम कर दी जाएगी। मधुबनी कलेक्टर कार्यालय नीलामी जैसे असामान्य घटनाक्रम ने पूरे बिहार में प्रशासकीय संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा कर दिया है।
क्या है मधुबनी कलेक्टर कार्यालय नीलामी का मूल विवाद?
इस मामले की जड़ें 1996-97 में हैं, जब मेसर्स राधा कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और पंडौल कोऑपरेटिव सूता मिल के बीच एक अनुबंध हुआ था। पंडौल मिल सरकारी निगरानी में थी, लेकिन संचालन बंद हो गया था। कोलकाता की कंपनी ने इसे पुनर्जीवित करने के लिए पूंजी और कच्चा माल उपलब्ध कराया, जबकि मिल का प्रबंधन और मजदूरों की व्यवस्था सरकार के जिम्मे थी।
हालांकि यह करार विवादों में बदल गया और अंततः 2014 में पटना हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति घनश्याम प्रसाद ने आर्बिट्रेशन प्रक्रिया के तहत फैसला सुनाया। फैसले में केडिया की कंपनी को 28.90 लाख एडवांस, 2 लाख क्षतिपूर्ति, 70 हजार मुकदमा व्यय और 1.80 लाख आर्बिट्रेटर शुल्क का भुगतान तय किया गया। साथ ही यह भी आदेश था कि यदि राशि समय से न दी जाए तो 18 फीसद वार्षिक ब्याज लागू होगा।
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अदालती अवमानना ने बढ़ाई प्रशासन की मुश्किलें
हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद, सरकार ने समय से भुगतान नहीं किया। फलस्वरूप 2016 में केडिया ने मधुबनी जिला न्यायालय में याचिका दाखिल की। वर्षों की अनदेखी और प्रशासनिक निष्क्रियता के कारण अब मामला इतना गंभीर हो चुका है कि न्यायालय ने मधुबनी कलेक्टर कार्यालय के नीलामी का आदेश दे दिया है। नीलामी की सूचना समाहरणालय परिसर और एसपी कार्यालय की दीवारों पर चिपकाने का निर्देश भी कोर्ट ने दिया है।
लोक प्रशासन की साख पर सवाल
यह घटनाक्रम प्रशासन की लापरवाही और न्यायिक आदेशों के पालन में गंभीर चूक का उदाहरण बन गया है। एक ओर जहां सरकार ‘सुशासन’ का दावा करती है, वहीं मधुबनी कलेक्टर कार्यालय नीलामी जैसा मामला उसकी व्यवस्था की कमजोरी उजागर करता है। यह केवल एक परिसंपत्ति की नीलामी नहीं, बल्कि व्यवस्था के प्रति जनता के विश्वास की भी परीक्षा है।
क्या यह देश का पहला ऐसा मामला है?
यह पहला अवसर है जब किसी सरकारी समाहरणालय के नीलाम होने की नौबत आई हो। सरकारी परिसंपत्तियां अक्सर जनता की सेवा के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं, लेकिन मधुबनी कलेक्टर कार्यालय नीलामी जैसी मिसाल ने शासन की संवेदनशीलता पर चोट की है।
प्रशासन को चेतने की आवश्यकता
मामला चाहे जितना भी पुराना हो, लेकिन सरकारी आदेशों की अवहेलना और न्यायिक निर्देशों की अवज्ञा की सजा अंततः जनता और प्रशासन दोनों को भुगतनी पड़ती है। यदि अगले 15 दिनों में भुगतान नहीं हुआ, तो यह नीलामी केवल मधुबनी की नहीं, बल्कि देश की प्रशासनिक प्रतिष्ठा की नीलामी बन जाएगी।
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