जानकी शरण द्विवेदी
वर्ल्ड नो टोबैको डे हर साल 31 मई को मनाया जाता है, लेकिन क्या सच में हम इससे कुछ सीख रहे हैं? या यह दिन महज एक तारीख बनकर रह गया है? वर्ल्ड नो टोबैको डे के मौके पर यह सवाल इसलिए और ज़्यादा जरूरी हो जाता है क्योंकि भारत जैसे देश में तंबाकू की लत एक सामाजिक आपदा बन चुकी है। आंकड़े बताते हैं कि तंबाकू से हर साल 13.5 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। यह आंकड़ा डराने वाला है।
वर्ल्ड नो टोबैको डे पर खुलती है भयावह हकीकत की परतें
भारत दुनिया में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। लेकिन यह गर्व की बात नहीं, बल्कि शर्म और चिंता का विषय है। वर्ल्ड नो टोबैको डे हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे तंबाकू हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को खोखला कर रहा है। धूम्रपान और बिना धुएं वाले तंबाकू उत्पादकृदोनों ही घातक हैं। गुटखा, पान मसाला, खैनी और जर्दा जैसी चीजें आम हो चुकी हैं, लेकिन इनके दुष्परिणामों की जानकारी अब भी आम नहीं हो पाई है।
खतरनाक भ्रमः ई-सिगरेट सुरक्षित नहीं
तंबाकू के सेवन के नए और मॉडर्न रूप, जैसे ई-सिगरेट, वर्ल्ड नो टोबैको डे पर एक और बड़ी चुनौती पेश करते हैं। भारत सरकार ने 2019 में ई-सिगरेट्स पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इसका गैरकानूनी इस्तेमाल अब भी जारी है। इन्हें सुरक्षित विकल्प मानना एक खतरनाक भ्रम है। इनमें निकोटिन, केमिकल और प्लास्टिक तत्व पाए जाते हैं जो न सिर्फ शरीर बल्कि पर्यावरण के लिए भी घातक हैं। वर्ल्ड नो टोबैको डे हमें इन आधुनिक खतरों की भी याद दिलाता है।
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वर्ल्ड नो टोबैको डे के पीछे छिपा है जीवन बदलने का संदेश
विशेषज्ञ कहते हैं कि तंबाकू छोड़ने का फैसला ज़िंदगी बदल सकता है। और वर्ल्ड नो टोबैको डे यही संदेश देता है। तंबाकू छोड़ने के महज 20 मिनट बाद ही शरीर में सुधार शुरू हो जाता है। ब्लड प्रेशर और हार्टरेट सामान्य होने लगते हैं। कुछ हफ्तों में फेफड़े बेहतर काम करने लगते हैं। एक साल के भीतर हार्ट अटैक का खतरा आधा हो जाता है। और बीस साल बाद आप उतने ही स्वस्थ हो सकते हैं जितना कोई कभी तंबाकू का सेवन न करने वाला व्यक्ति।
डॉक्टर्स की चेतावनीः तंबाकू से नाता तोड़ें, नहीं तो ज़िंदगी से हाथ धो बैठेंगे
वर्ल्ड नो टोबैको डे पर डॉक्टर्स की राय अहम है। तंबाकू के कारण होने वाली बीमारियों में मुंह का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, सीओपीडी, हृदय रोग, और मूत्राशय का कैंसर प्रमुख हैं। इन बीमारियों से निपटने का सबसे असरदार तरीका है तंबाकू से दूरी। हर बार जब कोई मरीज डॉक्टर के पास जाए, उसे तंबाकू छोड़ने की सलाह दी जानी चाहिए।
सामाजिक और पारिवारिक सहयोगः तंबाकू से लड़ाई में सबसे बड़ी ताकत
कई बार लोग तंबाकू की लत से बाहर निकलना चाहते हैं, लेकिन साथ नहीं मिलता। वर्ल्ड नो टोबैको डे पर यह समझना ज़रूरी है कि परिवार, समाज और सरकारी संस्थाओं की भूमिका इसमें निर्णायक होती है। अगर घर, ऑफिस और अस्पतालों में लगातार सकारात्मक प्रोत्साहन दिया जाए, तो इस लत से छुटकारा पाया जा सकता है।
वर्ल्ड नो टोबैको डे पर लें जीत का संकल्प
तंबाकू सिर्फ व्यक्तिगत समस्या नहीं है। यह समाज के हर तबके को प्रभावित करता है। वर्ल्ड नो टोबैको डे पर यह संकल्प लेना जरूरी है कि हम न सिर्फ खुद इससे बचेंगे, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी तंबाकू से दूर रखने की प्रेरणा देंगे। यही असली जीत होगी।

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