रविशंकर सिंह राष्ट्रीय संगोष्ठी में संबोधित करते हुए

प्रो. रविशंकर सिंह ने महाकुंभ को कहा राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक

भारतीय संस्कृति की जीवंत अभिव्यक्ति है महाकुंभ-प्रो. रविशंकर सिंह

प्रो. रविशंकर सिंह की अध्यक्षता में हुआ आयोजन, राष्ट्रीय एकता पर हुआ गहन विमर्श

जानकी शरण द्विवेदी

गोंडा। मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय बलरामपुर के प्रथम कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह की अध्यक्षता में श्री लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के हिंदी विभाग और आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में ‘वसुधैव कुटुम्बकम का महाविज्ञान : राष्ट्रीय एकता का प्रतिबिंब’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी भारतीय संस्कृति की समग्रता और महाकुंभ 2025 की वैश्विक भूमिका पर केंद्रित रही।संगोष्ठी के केंद्रीय सूत्रधार नैक समन्वयक और भौतिकी विभागाध्यक्ष प्रो. जितेंद्र सिंह थे।

कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह के दीप प्रज्ज्वलन के साथ संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। प्राचार्य प्रो. रवीन्द्र कुमार ने संगोष्ठी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए इसे महाकुंभ 2025 के राष्ट्रीय प्रभाव का बौद्धिक मूल्यांकन बताया। मुख्य अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने व्याख्यान में कहा कि कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की अद्वितीय धरोहर है। यह “पाप, ताप और शाप से मुक्ति का माध्यम” है और इसकी परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

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विशिष्ट अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. पवन अग्रवाल ने कहा कि महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक समावेशन का उदाहरण है। उन्होंने इसमें एआई, जीपीएस, ड्रोन आदि के प्रयोग को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। हम भारतीय परंपरा की संवाहक है। इसके संरक्षण और संवर्द्धन का कार्य होते रहना चाहिए।

रविशंकर सिंह ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में महाकुंभ को बताया सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक
कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह को प्रतीक चिन्ह भारत का संविधान भेंट करते प्राचार्य व अन्य।

प्रो. रविशंकर सिंह ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति पुनर्नवा है और महाकुंभ उसकी जीवंत अभिव्यक्ति है। उन्होंने बताया कि इस बार 74 देशों के प्रतिनिधियों ने कुंभ स्नान में भाग लेकर भारत की सांस्कृतिक शक्ति को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने इसे राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक बताया।

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कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह के प्रति आभार व्यक्त करते हुए संगोष्ठी संयोजक व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने प्रो. दीक्षित को महागुरु की संज्ञा दी और उन्हें भारतीय ज्ञान परंपरा का वैश्विक प्रतिनिधि बताया। डॉ. मुक्ता टंडन ने मंच संचालन किया और प्रो. अमन चंद्रा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. अमन चंद्रा ने की, जिसमें देशभर के शोधार्थियों ने महाकुंभ, वसुधैव कुटुम्बकम और राष्ट्रीय एकता पर शोध पत्र प्रस्तुत किए।

कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी में प्राध्यापक डॉ. जनमेजय तिवारी, डॉ. नीरज पांडेय, डॉ. शालिनी शुक्ला, प्रो. जयशंकर तिवारी, प्रो. बी. पी. सिंह, प्रो. रंजन शर्मा, प्रो. वी. सी. एच. एन. के. श्रीनिवास राव, प्रो. संदीप श्रीवास्तव, प्रो. शिव शरण शुक्ला, प्रो. मंशाराम वर्मा, डॉ. रेखा शर्मा, डॉ. चमन कोर, डॉ. ओमप्रकाश यादव, डॉ. शैलेष कुमार, डॉ. वंदना भारतीय, डॉ. पूजा यादव, डॉ. हरीश कुमार शुक्ल, अच्युत शुक्ल आदि उपस्थित रहेः। यह संगोष्ठी राष्ट्रीय संवाद की प्रतिबद्धता और महाविद्यालय की बौद्धिक सक्रियता का परिचायक बनी।

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संगोष्ठी में उपस्थित प्राध्यापक गण व छात्र छात्राएं।

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