रेप पीड़िता केस में हाईकोर्ट का फैसला

रेप को लेकर हाईकोर्ट का अप्रत्याशित फैसला

कहा-सहमति से बनाया गया यौन संबंधं नहीं हो सकता रेप!

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रेप पीड़िता पर कमेंट कर आरोपी को किया बरी

निचली अदालत ने रेप का दोषी मानते हुए आरोपी को सुनाई थी सजा

राज्य डेस्क

बिलासपुर। रेप पीड़िता को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का एक अप्रत्याशित फैसला सामने आया है, जिसने समाज और कानून दोनों को झकझोर कर रख दिया है। एक रेप पीड़िता के केस में निचली अदालत द्वारा आरोपी को दोषी ठहराने और सजा सुनाने के बावजूद हाईकोर्ट ने उसे बरी कर दिया। यह फैसला न केवल कानूनी बहस का विषय बन गया है बल्कि संवेदनशील समाज में पीड़ितों की न्यायिक सुरक्षा को लेकर भी गहन प्रश्न खड़े करता है।

ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा
रेप पीड़िता के मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(द) और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी मानते हुए सजा दी थी।
मूल मामला जुलाई 2018 का है, जब पीड़िता के पिता ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी अचानक घर से लापता हो गई है। लड़की अपनी दादी से मिलने के लिएं निकली थी, लेकिन वहां नहीं पहुंची। पड़ोसियों के मुताबिक, लड़की को आरोपी युवक के साथ देखा गया था। दोनों को 10 दिन बाद एक साथ बरामद किया गया।

कोर्ट ने मार्कशीट को नहीं माना पर्याप्त प्रमाण
रेप पीड़िता की उम्र को लेकर न्यायालय ने संदेह जताया। ट्रायल कोर्ट ने ‘फर्स्ट क्लास मार्कशीट’ को नाबालिग साबित करने का आधार माना था। उसमें पीड़िता की जन्मतिथि 10 अप्रैल 2001 दर्ज थी। हाईकोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि यह प्रमाण अकेले पर्याप्त नहीं है। अदालत ने माना कि पीड़िता की आयु और सहमति दोनों विवादास्पद हैं, और इस आधार पर आरोपी पर रेप पीड़िता के आरोपों को खारिज किया जा सकता है।

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मेडिकल रिपोर्ट बनी निर्णायक आधार
रेप पीड़िता की मेडिकल जांच को भी अदालत ने अपने निर्णय में प्रमुख स्थान दिया। डॉक्टर की रिपोर्ट में कहा गया कि पीड़िता के शरीर और निजी अंगों पर कोई बाहरी या आंतरिक चोट नहीं पाई गई। इसके साथ ही, यह भी उल्लेख किया गया कि पीड़िता के सेकेंडरी सेक्सुअल ऑर्गन्स पूरी तरह से विकसित थे, जिससे यह संकेत मिला कि वह पहले भी यौन संबंधों की आदी हो सकती है। यह निष्कर्ष हाईकोर्ट के फैसले का महत्वपूर्ण स्तंभ बना और अदालत ने इसे सहमति का संकेत मानते हुए आरोपी को बरी कर दिया।

आरोपी को छह साल बाद मिली राहत
अदालत ने माना कि पीड़िता और आरोपी के बीच संबंध आपसी सहमति से बने थे। ऐसे में यह रेप पीड़िता का मामला नहीं बनता। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी पहले ही लगभग छह वर्षों की सजा काट चुका है और ऐसे में उसे और दंडित करना न्याय संगत नहीं होगा। यह निर्णय कई महिला अधिकार संगठनों के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इससे रेप पीड़िता के मामलों में आगे जाकर न्याय की राह और कठिन हो सकती है।

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यह मामला बना संवैधानिक विमर्श का विषय
रेप पर हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर उस बड़ी बहस को जन्म दे दिया है कि रेप पीड़िता के मामलों में सहमति का निर्धारण कैसे हो। खासकर तब जब पीड़िता की उम्र विवादित हो और प्रमाण अस्पष्ट हों। कई कानूनी विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि इस तरह के फैसले समाज में रेप पीड़िता की आवाज को कमजोर कर सकते हैं और ऐसे आरोपियों को बढ़ावा मिल सकता है, जो सबूतों की कमी का लाभ उठाकर बच निकलते हैं।

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