माओवादी सरेंडर से हिली नक्सली रणनीति
सुकमा में 40 लाख के इनामी 22 माओवादियों ने किया Dramatic आत्मसमर्पण
माओवादी सरेंडर ने माओवादियों की कमर तोड़ी, आत्मसमर्पण नीति बनी गेमचेंजर
राज्य डेस्क
सुकमा (छत्तीसगढ़)। माओवादी सरेंडर की बढ़ती घटनाओं ने नक्सली संगठनों की जड़ें कमजोर कर दी हैं। सुकमा जिले में शुक्रवार को हुए एक बड़े घटनाक्रम में कुल 22 माओवादियों ने सुरक्षाबलों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। आत्मसमर्पण करने वालों पर कुल 40 लाख रुपये का इनाम घोषित था। इस समूह में शामिल एक माओवादी दंपती पर 8-8 लाख रुपये और दो अन्य माओवादियों पर 5-5 लाख रुपये का इनाम था। माओवादी सरेंडर की यह घटना न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों की सफलता का प्रमाण है, बल्कि राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति की प्रभावशीलता को भी दर्शाती है।
माओवादी आत्मसमर्पण कार्यक्रम सुकमा में आयोजित किया गया, जिसमें जिला पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण और सीआरपीएफ डीआईजी आनंद सिंह राजपुरोहित प्रमुख रूप से मौजूद थे। 22 माओवादियों ने इन्हीं अधिकारियों के सामने हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटने की घोषणा की।
राज्य सरकार की नीति बनी निर्णायक ताकत
माओवादी सरेंडर की इस लहर के पीछे छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास और आत्मसमर्पण नीति को प्रमुख कारण माना जा रहा है। सरकार लगातार माओवादियों को मुख्यधारा में लौटने और समाज की भलाई के कार्यों में जुड़ने की अपील कर रही है। सरकार ने साफ किया है कि यदि माओवादी अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण करते हैं, तो उन्हें सुरक्षा, आर्थिक सहायता और पुनर्वास की गारंटी मिलेगी। माओवादी सरेंडर के इस ताजा मामले ने यह साबित कर दिया है कि नीति का असर जमीन पर साफ दिखाई दे रहा है।
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जनसमर्थन से भी टूट रही है माओवादी ताकत
स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों में भी माओवादी हिंसा के खिलाफ माहौल बदल रहा है। अब लोग विकास और शिक्षा की ओर झुकाव दिखा रहे हैं। माओवादी सरेंडर की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि अब नक्सली संगठन सामाजिक आधार खोते जा रहे हैं। सुरक्षा बलों का लगातार दबाव, गांव-गांव तक पहुंचती सरकारी योजनाएं और पुनर्वास पैकेज माओवादियों के लिए निर्णायक चुनौती बन चुके हैं।
महिला माओवादियों की भूमिका भी चर्चा में
माओवादी आत्मसमर्पण करने वालों में इस बार महिलाएं भी शामिल हैं। 8 लाख रुपये की इनामी महिला माओवादी और उनके पति ने हथियार छोड़ने का निर्णय लेकर यह संकेत दिया है कि अब संगठन के भीतर भी भय और भ्रम का माहौल हावी हो गया है। माओवादी सरेंडर की यह घटना सरकार और सुरक्षाबलों के लिए न केवल एक मनोबलवर्धक क्षण है, बल्कि यह एक रणनीतिक जीत भी है जो आने वाले दिनों में नक्सल विरोधी अभियानों को और सशक्त करेगी।
माओवादी सरेंडर का संदेशः डर नहीं, विकास चाहिए
माओवादी, जो कभी पुलिस और सरकार के नाम से कांपते थे, आज वही विकास की मुख्यधारा में लौटने की कोशिश कर रहे हैं। हथियार छोड़ने वालों में कई वर्षों से जंगल में सक्रिय और ग्रामीणों में खौफ का पर्याय बन चुके चेहरे भी शामिल हैं। अब वे शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता के जरिए जीवन की नई राह चुनना चाहते हैं। यह बदलाव केवल राज्य सरकार की नीति का परिणाम नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक आंदोलन का संकेत है।
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माओवादी सरेंडरः एक नजर में
कुल आत्मसमर्पण : 22 माओवादी
घोषित इनाम की कुल राशिः 40 लाख रुपए
सबसे अधिक इनामः 8-8 लाख (माओवादी दंपती पर)
राज्य की सफल नीतियों का परिणाम
माओवादी सरेंडर की यह घटना राज्य की नीतियों की सफलता का प्रमाण है। माओवादी सरेंडर से सुरक्षाबलों को रणनीतिक बढ़त मिली है। यह माओवादी सरेंडर का असर है कि ग्रामीण क्षेत्र अब खुलकर हिंसा के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। जब भी माओवादी सरेंडर करते हैं, एक सकारात्मक संदेश समाज में जाता है। महिला माओवादियों का माओवादी सरेंडर एक नया सामाजिक दृष्टिकोण दर्शाता है।

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