न्यायपालिका की भूमिका पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़

न्यायपालिका नहीं दे सकती राष्ट्रपति को निर्देश

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका की भूमिका पर उठाए सवाल

न्यायमूर्ति वर्मा के घर से नकदी मिलने पर न्यायपालिका की चुप्पी पर भी उठाए सवाल

नेशनल डेस्क

नई दिल्ली। न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर एक बार फिर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के रवैये को लेकर तीखी टिप्पणियां करते हुए कहा कि न्यायपालिका ‘सुपर संसद’ नहीं बन सकती और उन्हें लोकतांत्रिक संस्थाओं पर परमाणु मिसाइल की तरह वार करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकती और ऐसा करना संवैधानिक मर्यादा के विरुद्ध है। धनखड़ ने यह टिप्पणी राज्यसभा के प्रशिक्षु अधिकारियों के छठें बैच को संबोधित करते हुए की। उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रपति से संबंधित एक निर्णय पर समय सीमा तय करने के आदेश को लेकर गंभीर आपत्ति जताई और कहा कि यह न्यायपालिका की सीमाओं का अतिक्रमण है।

अनुच्छेद 142 बना ‘परमाणु मिसाइल’
न्यायपालिका को संविधान में अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त अधिकार को लेकर उपराष्ट्रपति ने विशेष चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद न्यायपालिका को ‘पूर्ण न्याय’ करने का अधिकार देता है, लेकिन इसका ऐसा इस्तेमाल लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए घातक हो सकता है। उन्होंने इसे न्यायपालिका के हाथ में चौबीसों घंटे उपलब्ध ‘परमाणु मिसाइल’ बताया जो लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ दागी जा सकती है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश अब कानून बना रहे हैं, कार्यपालिका का काम कर रहे हैं और खुद को संसद से ऊपर मान रहे हैं, जबकि उनके ऊपर कोई सीधी जवाबदेही नहीं है।

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राष्ट्रपति को निर्देश देना संविधान के खिलाफ
धनखड़ ने सीधे शब्दों में कहा कि न्यायपालिका भारत के राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकती। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का पद न केवल देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, बल्कि वे संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं। जबकि न्यायपालिका का अधिकार केवल संविधान की व्याख्या तक सीमित है, वह भी अनुच्छेद 145(3) के अंतर्गत। उन्होंने सवाल उठाया कि न्यायपालिका किस आधार पर राष्ट्रपति जैसे संस्थानों को निर्देश दे सकती है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसी प्रवृत्ति जारी रही तो इससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी और जवाबदेही का सिद्धांत ध्वस्त हो जाएगा।

Credit : News 18

न्यायमूर्ति वर्मा के घर से नकदी मिलने पर सवाल
उपराष्ट्रपति ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास से नकदी बरामद होने की घटना पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि 14 और 15 मार्च की रात जो घटना हुई, उसकी जानकारी पूरे एक सप्ताह तक नहीं दी गई। उन्होंने पूछा कि इतनी गंभीर घटना को लेकर देरी क्यों हुई और क्या यह माफ करने योग्य है? जब किसी आम नागरिक के खिलाफ कार्रवाई में देर नहीं की जाती, तो एक न्यायाधीश के मामले में क्यों एफआईआर दर्ज नहीं की गई? उन्होंने कहा कि संविधान ने सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपाल को अभियोजन से छूट दी है, फिर न्यायपालिका को यह विशेष छूट किस आधार पर मिली?

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विशेष अनुमति की अनिवार्यता पर भी सवाल
उपराष्ट्रपति ने न्यायाधीशों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए विशेष अनुमति की अनिवार्यता पर गंभीर प्रश्न उठाए। उन्होंने कहा कि यह विशेषाधिकार न तो संविधान में है, और न ही संसद द्वारा पारित किसी कानून में। उन्होंने पूछा कि न्यायाधीश के आवास से नकदी मिलने के मामले में जांच के लिए बनाई गई तीन सदस्यीय समिति को कौन-सी संवैधानिक अथवा कानूनी स्वीकृति प्राप्त है?

अपने दायरे में रहें लोकतांत्रिक संस्थाएं
न्यायपालिका को आइना दिखाते हुए धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र को सशक्त बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने सीमित क्षेत्रों में कार्य करें। किसी एक संस्था द्वारा दूसरी संस्था के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। उन्होंने कहा कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है, लेकिन यदि कार्यपालिका के कार्यों का संचालन न्यायपालिका करने लगे, तो जवाबदेही किससे मांगी जाएगी? उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका की जवाबदेही का कोई स्पष्ट ढांचा नहीं है, जो लोकतांत्रिक संतुलन को बिगाड़ता है।

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उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पूछा कि जज पर क्यों नहीं हुई एफआइआर!

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