Saturday, June 14, 2025
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पंडित रविशंकर : सितार के साधक की अनसुनी कहानियां

मनोरंजन डेस्क

भारत की पवित्र नगरी वाराणसी में जन्मे पंडित रविशंकर का पूरा नाम रविंद्र शंकर चौधरी था। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत के ऐसे दिव्य चरित्र हैं जिन्होंने अपनी संगीत यात्रा में न केवल असीमित संघर्ष किए, बल्कि अपार समर्पण और नवाचार से भारतीय संगीत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। आज हम उनके जीवन के उन पहलुओं पर विस्तार से नजर डालेंगे, जिन्होंने उन्हें एक अमर सितार वादक और अंतरराष्ट्रीय संगीत दूत के रूप में प्रतिष्ठित किया।
बचपन से लेकर सितार के उन्मुक्ति तक
पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को वाराणसी के एक बंगाली परिवार में हुआ था। बचपन में उन्होंने डांस की दुनिया में कदम रखा और मात्र 13 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई उदय शंकर के डांस ग्रुप में शामिल हो गए। इस समय, भारतीय संगीत की पारंपरिक धरोहर के साथ-साथ विदेशी संगीत की झलक भी उनके जीवन में प्रवेश कर गई। पेरिस और अन्य यूरोपीय शहरों में अपने डांस ग्रुप के साथ यात्रा करते हुए रविशंकर ने विभिन्न वाद्ययंत्रों का अनुभव लिया। इस दौरान उन्होंने जैज़ समेत अन्य संगीत शैलियों के बारे में भी जाना, जिसने आगे चलकर उनकी संगीत यात्रा में गहरा प्रभाव डाला। उनकी शुरुआती दिनचर्या में डांस, संगीत और विदेशी संस्कृति का मिश्रण था, जिससे उनके मन में संगीत के प्रति एक अलग तरह की लगन पनपी। इस समय के दौरान, उन्होंने संगीत की दुनिया में प्रवेश की नींव रखी, जो आगे चलकर उन्हें सितार की दुनिया में उन्मुक्ति प्रदान करेगी।
उस्ताद अलाउद्दीन खां के साथ तीक्ष्ण प्रशिक्षण
1934 में, जब उनके भाई उदय शंकर ने मैहर घराने के मशहूर संगीतकार उस्ताद अलाउद्दीन खां को सुना, तो यह मिलन पंडित रविशंकर के जीवन में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। उस समय रविशंकर ने नृत्य के साथ-साथ वाद्य यंत्रों का अभ्यास भी किया था, लेकिन सितार के प्रति उनका आकर्षण धीरे-धीरे गहरा होता चला गया। उस्ताद अलाउद्दीन खां के सामने अपनी संगीत प्रतिभा को साबित करने के लिए रविशंकर ने नृत्य की दुनिया को पीछे छोड़ने का साहसिक निर्णय लिया। 1938 में, मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा और समय सितार की शिक्षा में लगा दिए। सात वर्षों तक की कठोर और तीक्ष्ण प्रशिक्षण अवधि में, उन्होंने शास्त्रीय संगीत के विभिन्न आयाम दृ द्रुपद, ख्याल, थुमरी आदि दृ को भी सीखा। यह प्रशिक्षण उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जहाँ उन्होंने अपने आप में अनगिनत संघर्ष और विफलताओं का सामना करते हुए अंततः सितार वादन में महारत हासिल की।

पंडित रविशंकर
तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से पुरस्कार प्राप्त करते पंडित रविशंकर

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विश्व स्तर पर संगीत की बागडोर
1960 के दशक में पंडित रविशंकर का संगीत केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह विश्व मंच पर एक नए अंदाज में चमकने लगे। लंदन, पेरिस, न्यूयॉर्क समेत कई बड़े शहरों में उनके कार्यक्रमों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी अद्वितीय शैली और गूंजती हुई धुनें विश्वभर के संगीत प्रेमियों के दिलों में घर कर गईं। बीटल्स के गिटारिस्ट जॉर्ज हैरिसन समेत कई पश्चिमी संगीतकारों ने भी उनके संगीत से प्रेरणा ली। जॉर्ज हैरिसन ने तो सीधा भारत आने का निश्चय किया और पंडित रविशंकर के घर में सितार वादन की बारीकियाँ सीखीं। इस सहयोग ने भारतीय और पश्चिमी संगीत के बीच की दूरी को पाटते हुए एक नए संगीत युग का प्रारंभ किया। इस वैश्विक सफर ने पंडित रविशंकर को न केवल एक संगीत दूत के रूप में प्रतिष्ठित किया, बल्कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का गर्व भी बनाया।
फिल्मों में सफलताः संघर्ष और समर्पण की मिसाल
सिर्फ शास्त्रीय संगीत तक सीमित न रहकर पंडित रविशंकर ने फिल्मी दुनिया में भी अपनी छाप छोड़ी। सत्यजीत रे की ’अपू ट्रिलॉजी’ और रिचर्ड एटनबर्ग की ’गांधी’ जैसी फिल्मों के लिए उनके द्वारा तैयार किया गया संगीत अद्वितीय था। 1983 में ’गांधी’ फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट ओरिजिनल स्कोर की श्रेणी में ऑस्कर नामांकन मिला। यह नामांकन भारतीय संगीतकारों के लिए गर्व का विषय था, हालांकि वे इस प्रतिष्ठा को ऑस्कर जीतने के लिए नहीं बदल सके। फिल्मी संगीत में उनके योगदान ने यह साबित कर दिया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत का दायरा कितना व्यापक है और यह आधुनिक फिल्मों के साथ भी पूरी तरह से तालमेल बिठा सकता है। फिल्मों में उनके संगीत ने न केवल दर्शकों का मनोरंजन किया बल्कि भारतीय संस्कृति और संगीत की गहराई को भी उजागर किया।

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दूरदर्शन और राष्ट्रीय पहचान : संगीत के मधुर सुर
भारतीय दूरदर्शन की थीम धुन, जिसे हर घर में सुना जाता है, पंडित रविशंकर के संगीत कौशल का एक और अद्भुत नमूना है। दूरदर्शन की इस धुन ने भारतीयों के दिलों में राष्ट्रीय एकता और गर्व की भावना को जगाया। रविशंकर की इस रचना ने दूरदर्शन को एक पहचान दी और यह आज भी लोगों को भारतीय सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाती है। उनकी संगीत रचनाओं में न केवल तकनीकी दक्षता थी, बल्कि उनमें भावनाओं का अद्वितीय संगम भी देखने को मिलता था। इस धुन ने दूरदर्शन के शुरुआती दिनों से लेकर आज तक, हर पीढ़ी को प्रभावित किया है। यह निश्चय ही पंडित रविशंकर की संगीत प्रतिभा का एक स्थायी प्रतीक है।
व्यक्तिगत जीवन की चुनौतियांः प्यार, विवाद और जटिल रिश्ते
पंडित रविशंकर का व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही जटिल और चर्चा का विषय रहा जितना कि उनकी संगीत यात्रा। 1941 में, उन्होंने अपने गुरु उस्ताद अलाउद्दीन खां की बेटी अन्नपूर्णा देवी से विवाह किया, जो उस समय भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक उच्च स्थान रखती थीं। विवाह के पहले कुछ वर्षों में दोनों का साथ बेहद मधुर रहा। हालांकि, समय के साथ-साथ व्यक्तिगत मतभेद और पेशेवर चुनौतियों ने उनके संबंधों में दरारें डाल दीं। 1962 में अन्नपूर्णा देवी से अलग होने के बाद, रविशंकर के जीवन में विभिन्न महत्वपूर्ण महिलाओं का प्रवेश हुआ। कमला देवी, जिनके साथ उनका लिव-इन रहा, ने कुछ वर्षों तक उनके साथ सहयोग किया, लेकिन बाद में उनके बीच भी मतभेद उत्पन्न हो गए। न्यूयॉर्क में रहने वाले कॉन्सर्ट प्रोड्यूसर सू जोन्स के साथ उनका संबंध भी चर्चा में रहा, जिसके दौरान उनकी बेटी नोराह जोन्स का जन्म हुआ। 1981 में, दूसरी शादी सुकन्या राजन से हुई, जिनकी बेटी अनुष्का शंकर बाद में संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी हैं। इन रिश्तों के बावजूद, पंडित रविशंकर ने कभी भी अपने संगीत से समझौता नहीं किया। उनके व्यक्तिगत जीवन में उठे-गिरे सभी उतार-चढ़ाव ने उन्हें और भी परिपक्व और संवेदनशील बनाया। ये सभी घटनाएँ उनके संगीत में झलकती हैं, जो आज भी उनके चाहने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

पंडित रविशंकर
पंडित रविशंकर

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पुरस्कार, सम्मान और विरासतः पंडित रविशंकर का अमर संगीत
पंडित रविशंकर के योगदान को देश और दुनिया ने अनेक बार मान्यता दी। 1967 में उन्हें पद्म भूषण, 1981 में पद्म विभूषण, और 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। साथ ही, उन्हें तीन ग्रैमी पुरस्कार भी प्राप्त हुए और 1992 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया। इन पुरस्कारों ने उनकी संगीत प्रतिभा और समर्पण को प्रमाणित किया। उनकी रचनाएँ आज भी संगीतकारों और छात्रों के लिए एक आदर्श हैं। न सिर्फ भारतीय शास्त्रीय संगीत की विरासत, बल्कि उन्होंने वैश्विक संगीत परिदृश्य में भी भारतीय संगीत को स्थापित किया। उनके द्वारा रचित धुनें, संगीत के विविध आयाम और उनकी अनूठी शैली ने संगीत की दुनिया में एक अमर छाप छोड़ी है। उनकी विरासत न केवल संगीत प्रेमियों के लिए, बल्कि सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आज भी उनकी संगीत शिक्षाएँ, उनके द्वारा दिखाया गया संघर्ष और समर्पण, आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो रहे हैं।
विवादास्पद पहलुओं और आलोचनाओं का सामना
जितना कि उनकी संगीत यात्रा अद्भुत और प्रेरणादायक रही, उतना ही उनका व्यक्तिगत जीवन विवादों और आलोचनाओं से रहित नहीं था। जब भी किसी महान हस्ती की जिंदगी में ऐसे उतार-चढ़ाव आते हैं, तो समाज और मीडिया की निगाहें हर छोटे-मोटे पहलू पर रहती हैं। पंडित रविशंकर के भी निजी जीवन और विवाह संबंधी निर्णयों पर समय-समय पर प्रश्न उठते रहे। हालांकि, उन्होंने इन सभी आलोचनाओं का साहसपूर्वक सामना किया और अपने संगीत पर ध्यान केंद्रित रखा। उनकी इस दृढ़ता और संघर्षशीलता ने उन्हें एक प्रेरणास्पद व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया। विशेषकर तब, जब उनकी संगीत प्रतिभा के साथ-साथ उनके व्यक्तिगत रिश्तों में भी जटिलताएँ देखने को मिलीं, तब उन्होंने अपने प्रशंसकों को यह संदेश दिया कि सफलता और संघर्ष दो अलग-अलग पहलू हैं। आलोचनाओं और विवादों के बीच भी उन्होंने कभी अपनी रचनात्मकता और समर्पण को खोने नहीं दिया।

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संगीत की धारा में निरंतरताः आज के संगीतकारों के लिए प्रेरणा
पंडित रविशंकर ने न केवल अपने समय में, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। आज के युवा संगीतकार उनके द्वारा स्थापित उच्च मानकों को अपना कर भारतीय शास्त्रीय संगीत को नयी दिशा दे रहे हैं। उनकी धुनों में निहित भावनाएँ, संघर्ष और समर्पण की कहानियाँ आज भी संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। उनकी रचनाएँ और संगीत शिक्षाएँ विश्वविद्यालयों, संगीत विद्यालयों और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नियमित रूप से प्रस्तुत की जाती हैं। उनके योगदान ने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत केवल एक कला नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है, जिसे आत्मसात कर व्यक्ति न केवल अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
एक अमूल्य धरोहर की कहानी
पंडित रविशंकर का जीवन संघर्ष, समर्पण और नवाचार का एक अद्भुत मिश्रण रहा है। उनके जीवन के हर पहलू में बचपन की शुरुआत से लेकर सितार की उन्नति, वैश्विक मंच पर सफलता, फिल्मी संगीत में योगदान, दूरदर्शन की थीम धुन, व्यक्तिगत रिश्तों की जटिलताएँ और विवादास्पद घटनाओं ने उन्हें एक ऐसा अद्वितीय संगीत दूत बनाया जिसने भारतीय संस्कृति और संगीत को विश्व भर में प्रतिष्ठित किया।
उनकी धुनों में जीवन के प्रत्येक दर्द, खुशी, संघर्ष और सफलता की कहानी छिपी हुई है। पंडित रविशंकर ने न केवल अपने संगीत से बल्कि अपने जीवन से यह संदेश दिया कि कठिनाइयाँ और विफलताएँ केवल आपकी मंजिल तक पहुँचने के रास्ते में आने वाली बाधाएँ हैं, जिन्हें पार कर आप सफलता की ऊँचाइयों को छू सकते हैं। आज जब हम पंडित रविशंकर की 105वीं जयंती मना रहे हैं, तो यह न केवल उनके जीवन का उत्सव है, बल्कि उन सभी अनसुनी कहानियों और संघर्षों का भी स्मरण है जो उन्हें एक अमर सितार वादक के रूप में स्थापित करती हैं। उनकी विरासत आज भी संगीत प्रेमियों और आने वाले संगीतकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है, और उनकी धुनें हमेशा उनके नाम की अमर गाथा का हिस्सा रहेंगी।

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पंडित रविशंकर का संगीत न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा को संरक्षित करता है, बल्कि यह वैश्विक संगीत परिदृश्य में भी एक सजीव उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति के समर्पण और जुनून से दुनिया बदल सकती है। उनकी जीवन यात्रा ने हमें यह सिखाया कि संगीत के माध्यम से न केवल भावनाओं को व्यक्त किया जा सकता है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान भी स्थापित की जा सकती है।इस प्रकार, पंडित रविशंकर की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें जीवन के प्रत्येक मोड़ पर अपने सपनों के पीछे डटकर चलना चाहिए, चाहे रास्ते में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएँ। उनकी अद्भुत संगीत यात्रा, उनके संघर्ष और उनकी उपलब्धियाँ, आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा एक अमूल्य धरोहर रहेंगी।

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