माओवादी संगठन का शीर्ष कमांडर नंबाला केशव राव उर्फ बसवा राजू भी हुआ ढे़र
माओवादी आंदोलन का ’मस्तिष्क’ माना जाता था नक्सली ऑपरेशन में ढे़र बसवा राजू
राज्य डेस्क
रायपुर। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार का नक्सली ऑपरेशन जारी है। बीते 24 घंटे के दौरान नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ में 27 नक्सली मारे गए। इसमें माओवादी संगठन के महासचिव और और शीर्ष रणनीतिकार नंबाला केशव राव उर्फ बसवा राजू भी शामिल हैं, जिस पर एक करोड़ का इनाम था। यह ऑपरेशन सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी सफलता मानी जा रही है।
नक्सली ऑपरेशन में मारे गए बसवा राजू, माओवादी संगठन के महासचिव थे। उन्होंने 2018 में गणपति के बाद यह पद संभाला था। वह 2010 के दंतेवाड़ा हमले और 2013 के झीरम घाटी नरसंहार जैसे कई बड़े नक्सली हमलों के मास्टरमाइंड रहे हैं। उनकी मौत माओवादी आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है। राज्य के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए इसे सुरक्षाबलों की बड़ी कामयाबी बताया है।
नक्सली ऑपरेशन : सुरक्षा बलों की रणनीतिक सफलता
यह नक्सली ऑपरेशन 72 घंटे तक चला, जिसमें सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ सटीक और योजनाबद्ध कार्रवाई की। इस दौरान मारे गए नक्सलियों में कई शीर्ष कमांडर शामिल थे। इस नक्सली ऑपरेशन से माओवादी संगठन की कमर टूट गई है। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), छत्तीसगढ़ पुलिस और विशेष माओवादी विरोधी दस्ते डीआरजी की संयुक्त टीम ने अत्यंत गोपनीयता और रणनीति के साथ अभियान को अंजाम दिया। मुठभेड़ में कुल 27 नक्सली ढेर हुए, जिनमें कई वांछित कमांडर और रणनीतिकार शामिल थे।
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बसवाराजूः संगठन की रीढ़ की हड्डी
नक्सली आंदोलन की कमान संभाल रहे बसवाराजू की गिनती देश के सबसे खूंखार और रणनीतिक सोच रखने वाले उग्रवादियों में होती थी। आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के रहने वाले नंबाला केशव राव ने छात्र राजनीति से अपने आंदोलन की शुरुआत की और धीरे-धीरे माओवादी संगठन में शीर्ष पद तक पहुंचे। उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी और छात्र जीवन में ही वह वामपंथी विचारधारा की ओर आकर्षित हो गए थे।
नक्सली ऑपरेशन में मारे गए बसवाराजू ने वर्ष 2018 में गणपति के बाद जब महासचिव का पद संभाला, तब से लेकर अब तक संगठन की रणनीति को पुनर्गठित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। उनके नेतृत्व में माओवादी संगठन ने कई राज्यों में पुनः सक्रियता दिखाई थी। दंतेवाड़ा (2010) और झीरम घाटी (2013) जैसे घातक हमलों में उनकी भूमिका को लेकर पहले ही सुरक्षा एजेंसियों को पुख्ता सूचना थी। उस पर एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित था।
नक्सली ऑपरेशन की रणनीति और सफलता
सूत्रों के अनुसार, हाल के हफ्तों में सुरक्षा एजेंसियों को माओवादियों की उच्च स्तरीय बैठक की खुफिया जानकारी मिली थी, जो अबूझमाड़ क्षेत्र में आयोजित की जा रही थीं। इस जानकारी के आधार पर केंद्रीय एजेंसियों और राज्य पुलिस ने एक संयुक्त योजना बनाई और गहन जंगलों में इस बैठक स्थल तक पहुंच बनाई। अत्यंत गोपनीयता के साथ घेराबंदी की गई, जिसके बाद मुठभेड़ हुई।
नक्सली ऑपरेशन में सुरक्षा बलों ने न केवल माओवादियों को मार गिराया, बल्कि उनके कब्जे से भारी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद, विस्फोटक और दस्तावेज भी बरामद किए। बरामद हथियारों में एके-47, इंसास राइफलें, लाइट मशीन गन, ग्रेनेड और वायरलेस सेट शामिल हैं। इससे यह भी स्पष्ट हुआ है कि माओवादी अब भी सैन्य दृष्टि से खुद को सशक्त बनाए हुए थे।

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एक सुरक्षा कर्मी शहीद, एक जख्मी
राज्य के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने बताया कि यह मुठभेड़ अबूझमाड़ और इंद्रावती नदी के मध्य स्थित दुर्गम जंगलों में हुई। नक्सली ऑपरेशन के तहत निकली डीआरजी की संयुक्त टीम पर घात लगाकर हमला किया गया था, जिसके जवाब में सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभालते हुए 26 से अधिक नक्सलियों को ढेर कर दिया। इस दौरान एक सुरक्षाकर्मी शहीद हुआ, जबकि एक अन्य जवान घायल हुआ है।
सियासी प्रतिक्रिया और रणनीतिक मायने
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सली ऑपरेशन में बसवा राजू समेत 26 नक्सलियों के मारे जाने की घटना को माओवादी आंदोलन के अंत की दिशा में निर्णायक कदम बताया है। उन्होंने कहा कि बसवाराजू की मौत से माओवादी संगठन नेतृत्वविहीन हो गया है और उनका नेटवर्क अब कमजोर पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नक्सली ऑपरेशन में शामिल सभी सुरक्षा बलों को बधाई दी और इसे देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक मील का पत्थर बताया।
आदिवासी क्षेत्रों में असर और जनसहभागिता
अबूझमाड़ जैसे क्षेत्रों में दशकों से माओवादियों का प्रभाव रहा है। आदिवासी बहुल इस इलाके में सरकार की विकास योजनाएं माओवादियों की हिंसा और डर के कारण लंबे समय से रुकी पड़ी थीं। पिछले दिनों से मुख्यमंत्री द्वारा चलाए जा रहे नक्सली ऑपरेशन की लगातार सफलता के बाद प्रशासन ने क्षेत्र में पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत ढांचे के विकास पर फोकस बढ़ा दिया है। स्थानीय लोगों ने भी इस ऑपरेशन की सराहना की है और उम्मीद जताई है कि अब क्षेत्र में स्थायी शांति लौटेगी।
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क्या यह निर्णायक क्षण है?
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सली ऑपरेशन में बसवाराजू की मौत न केवल संगठनात्मक स्तर पर माओवादियों को कमजोर करेगी, बल्कि इससे उनके मनोबल पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। हालांकि विशेषज्ञ यह भी चेतावनी देते हैं कि माओवादी संगठन अब बदले की रणनीति अपना सकते हैं और उनके शेष गुट अधिक आक्रामक हो सकते हैं। ऐसे में सुरक्षा बलों को अधिक सतर्कता और तकनीकी रूप से उन्नत निगरानी तंत्र की जरूरत होगी।
सरकार की भावी रणनीति
राज्य और केंद्र सरकारों ने संकेत दिए हैं कि माओवाद प्रभावित जिलों में नक्सली ऑपरेशन और तेज़ किए जाएंगे। जंगल वारफेयर कॉलेज, ड्रोन तकनीक, उपग्रह निगरानी और मानव खुफिया तंत्र को अब और बेहतर किया जा रहा है। सुरक्षा बल अब केवल मुठभेड़ तक सीमित न रहकर, समग्र रणनीति के तहत जनसहभागिता, पुनर्वास और मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर भी काम कर रहे हैं। अबूझमाड़ की यह मुठभेड़ माओवादी आंदोलन के इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट मानी जा सकती है।

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