जानकी शरण द्विवेदी
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) या AI, 21वीं सदी की सबसे प्रभावशाली तकनीकी खोजों में से एक है। AI तकनीक जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रही है, उसी गति से इसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। इसलिए गोपनीयता और साइबर सुरक्षा नियमों का पालन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक नैतिक और कानूनी आवश्यकता है, जिससे तकनीक का सही, सुरक्षित और सामाजिक रूप से जिम्मेदाराना उपयोग सुनिश्चित हो सके। इस आलेख में हम जानने का प्रयास करेंगे कि AI उपकरणों का प्रयोग कितना हितकारी है और किस हद तक यह नुकसानदेह हो सकता है।
AI के लाभ: प्रगति का नया इंजन
- स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांति
AI ने हेल्थकेयर सेक्टर में अद्भुत बदलाव लाए हैं। कैंसर, हृदय रोग या न्यूरोलॉजिकल समस्याओं की त्वरित और सटीक पहचान अब मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म की सहायता से संभव हो गई है। चिकित्सा अनुसंधान, दवा की खोज, रोगी की निगरानी और सर्जरी में रोबोट का इस्तेमाल अब आम होता जा रहा है। - शिक्षा में वैयक्तिकरण
AI आधारित लर्निंग प्लेटफॉर्म विद्यार्थियों की क्षमता और रुचि के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं। शिक्षा अब ‘वन-साइज-फिट्स-ऑल’ से आगे बढ़कर ‘पर्सनलाइज्ड लर्निंग’ की दिशा में अग्रसर है। छात्रों के प्रदर्शन का विश्लेषण कर उन्हें बेहतर फीडबैक दिया जा रहा है। - कृषि और जलवायु के क्षेत्र में सहायक
स्मार्ट सेंसर्स, सैटेलाइट इमेजिंग और AI मॉडल के जरिये फसलों की सेहत, सिंचाई की आवश्यकता और कीट प्रबंधन की सटीक जानकारी मिल रही है। इससे किसानों की उत्पादकता बढ़ी है और जोखिम कम हुए हैं। - उद्योग और व्यापार में दक्षता
कंपनियों ने ग्राहक सेवा, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और वित्तीय विश्लेषण में AI का उपयोग कर न केवल लागत घटाई है, बल्कि ग्राहक संतुष्टि में भी सुधार किया है। चैटबॉट्स, वॉयस असिस्टेंट और डेटा एनालिटिक्स एआई आधारित व्यापार संचालन की रीढ़ बन चुके हैं। - यह भी पढें: IAS तबादला : 4 DM समेत 14 अफसर बदले

AI के खतरे: अनदेखे संकट
- निजता और डेटा सुरक्षा का संकट
AI को प्रशिक्षित करने के लिए विशाल मात्रा में व्यक्तिगत डेटा की आवश्यकता होती है। ऐसे में लोगों की व्यक्तिगत जानकारी, बिना उनकी सहमति के संग्रहित, विश्लेषित और उपयोग की जा रही है। यह निजता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। - नौकरी छिनने का डर
स्वचालन (Automation) ने अनेक पारंपरिक नौकरियों को समाप्त कर दिया है। विशेषकर निर्माण, ग्राहक सेवा और डेटा एंट्री जैसे क्षेत्रों में इंसानों की जगह मशीनें ले रही हैं। विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट के अनुसार, AI के कारण 2025 तक करीब 8.5 करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं, हालांकि इतनी ही नई भूमिकाएं भी बन सकती हैं। - पक्षपाती एल्गोरिद्म और भेदभाव
यदि AI को प्रशिक्षण के दौरान भेदभावपूर्ण या पक्षपाती डेटा दिया गया है, तो वह निर्णयों में भी पक्षपात करता है। अमेरिका में रंगभेद आधारित गिरफ्तारी या नौकरी में असमानता से जुड़ी रिपोर्टों ने यह दिखाया है कि AI भी निष्पक्ष नहीं होता। - गलत सूचना और गहरी नकल
डीपफेक वीडियो, फर्जी ऑडियो और AI जनित झूठी सूचनाएं अब राजनीतिक प्रचार, चरित्र हनन और सामाजिक भ्रम फैलाने का साधन बन रही हैं। इससे लोकतंत्र और समाज दोनों खतरे में हैं। - यह भी पढें: दानिश से सम्बंधों पर Jyoti Malhotra चुप्प!
नीतिगत पहलू और सरकारी दृष्टिकोण
भारत सरकार सहित कई देशों ने AI के नैतिक और कानूनी उपयोग पर मंथन शुरू कर दिया है। ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों में एआई को केंद्रीय भूमिका दी जा रही है। लेकिन इससे जुड़े जोखिमों को देखते हुए निम्न उपायों की आवश्यकता है:
डाटा सुरक्षा कानून का कड़ाई से पालन
AI आधारित निर्णयों की पारदर्शिता
मानव निगरानी की अनिवार्यता
डीपफेक और फर्जी कंटेंट के खिलाफ सख्त कानून
नौकरी छिनने की आशंका को देखते हुए पुनः कौशल प्रशिक्षण
भारत में अगस्त 2023 में ‘डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल’ संसद में पारित हुआ था, जो AI संचालित प्लेटफॉर्म पर व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। परंतु यह कानून कितना प्रभावी है, यह इसके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा।

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सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
AI का बढ़ता प्रभाव मनुष्य की निर्णय क्षमता, आत्मविश्वास और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित कर रहा है। युवा वर्ग अब चैटबॉट्स और एआई-जनित उत्तरों पर इतना निर्भर हो गया है कि उनके विश्लेषणात्मक कौशल क्षीण हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर एल्गोरिद्म आधारित फीड लोगों को ‘इको चैंबर’ में सीमित कर रहा है, जहां केवल उनकी सोच के अनुरूप सामग्री ही परोसी जाती है, जिससे वैचारिक असहिष्णुता बढ़ती है।
क्या AI का प्रयोग पूरी तरह रोका जा सकता है?
तकनीकी प्रगति को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उसके लिए उपयुक्त दिशा, नैतिक मर्यादा और वैधानिक दायरे तय किए जा सकते हैं। जैसे परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग संभव है, वैसे ही AI भी समाज के कल्याण हेतु सीमित और सतर्क रूप में प्रयुक्त हो सकता है।
एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक
AI उपकरण न तो शत्रु हैं और न ही तारणहार। वे केवल औजार हैं जिनका उपयोग हम कैसे करते हैं, वही तय करेगा कि वे मानवता के हित में हैं या अनिष्ट के। आवश्यकता इस बात की है कि तकनीक की प्रगति को अपनाते हुए, उसके सामाजिक, नैतिक और कानूनी प्रभावों पर भी निरंतर विमर्श और निगरानी रखी जाए।
AI की शक्ति को यदि नियंत्रित और उत्तरदायी ढंग से प्रयुक्त किया जाए, तो यह मानव सभ्यता की सबसे बड़ी शक्ति बन सकती है। किंतु अगर इसे मुनाफे, दुरुपयोग या राजनीति के औजार के रूप में देखा गया, तो इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

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