ऑनर किलिंग पर सुप्रीम कोर्ट का Power-Packed फैसला
कहा-ऑनर किलिंग साफ-साफ हत्या है, गैर इरादतन हत्या नहीं
अभियोजन पक्ष के तर्कों को प्रधान न्यायाधीश ने सिरे से किया खारिज
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में ऑनर किलिंग के एक जघन्य मामले में बेहद सख्त रुख अपनाते हुए न्यायपालिका की संवेदनशीलता और जवाबदेही का परिचय दिया है। इस मामले में पहले केवल गैर-इरादतन हत्या यानी IPC की धारा 304 के तहत आरोप तय किए गए थे, जिससे मृतक के परिजनों और न्याय के पैरोकारों में भारी असंतोष था। लेकिन अब शीर्ष अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस मामले में हत्या की धारा 302 के तहत कठोर आरोप तय किए जाएं।
ऑनर किलिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को लगाई फटकार
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने इस केस में निचली अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हल्के रुख को खारिज करते हुए तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह सीधा-सीधा ऑनर किलिंग का मामला है, जिसे गैर-इरादतन हत्या बताना न्याय की गंभीर अवहेलना है। अदालत ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह मृतक के पिता अय्यूब अली की सहमति से विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करें।
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जानिए धारा 302 और 304 के बीच अंतर
IPC की धारा 302 हत्या के लिए प्रयुक्त होती है, जिसमें आरोपी ने जानबूझकर किसी की जान ली हो। इसमें सजा उम्रकैद या फांसी हो सकती है। वहीं धारा 304 तब लागू होती है, जब हत्या इरादतन न होकर गलती या परिस्थितियोंवश हुई हो। इसमें अधिकतम सजा उम्रकैद, लेकिन न्यूनतम 10 साल की जेल हो सकती है।
ऑनर किलिंग के इस मामले में आरोपी परिवार ने पीड़ित युवक को लाठी, लोहे की छड़ों से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि इसके बावजूद भी स्थानीय अदालत ने इसे धारा 304 का मामला मानकर हल्के आरोप तय किए।
सीजेआई ने जताई तीखी नाराजगी
सीजेआई संजीव खन्ना ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह ऑनर किलिंग है और इसे किसी भी तरह से हल्के आरोपों के जरिए नहीं देखा जा सकता। उन्होंने कहा, ‘आपने सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि वह व्यक्ति दूसरे धर्म का था। यह सीधे हत्या का मामला है, जिस पर धारा 302 लगनी चाहिए थी।’
कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष का यह तर्क कि घटना में कोई हथियार नहीं था, पूरी तरह से अस्वीकार्य है। लाठी और लोहे की छड़ें भी घातक हथियार हैं, और जब दस गंभीर चोटें आई हों, तो इरादा और मंशा स्पष्ट हो जाती है।
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सुप्रीम कोर्ट ने दिए विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने के निर्देश
कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि अय्यूब अली से राय लेकर एक विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति की जाए, जो मामले की निष्पक्ष और प्रभावी सुनवाई सुनिश्चित कर सके। साथ ही कोर्ट ने आरोपी परिवार को निर्देश दिया कि वे नए आरोपों के तहत फिर से जमानत याचिका दायर करें। तब तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक नई याचिका पर फैसला न हो जाए।
निचली अदालत और हाईकोर्ट के आदेशों को किया दरकिनार
इससे पहले सहारनपुर के अतिरिक्त जिला न्यायालय ने 27 फरवरी 2024 को और फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 अगस्त 2024 को अय्यूब अली की याचिका को खारिज कर दिया था। याचिका में आरोपियों नेशर, मनेशर, प्रियांशु और शिवम पर हत्या की धारा 302 लगाने की मांग की गई थी।

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ऑनर किलिंग : समाज पर कलंक
ऑनर किलिंग हमारे समाज की एक विकृति है, जो प्रेम, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों की हत्या करती है। यह मामला केवल एक युवक की हत्या नहीं, बल्कि सामाजिक कट्टरता और धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है कि कानून धर्म, जाति या मान्यता के आधार पर भेद नहीं करता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्याय के लिए मील का पत्थर
ऑनर किलिंग जैसी घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हल्के आरोपों के सहारे दोषियों को बचाने की कोशिश को न्यायपालिका ने नकारते हुए साफ संदेश दिया है कि कानून सबके लिए बराबर है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह फैसला आने वाले समय में ऐसे मामलों के लिए नजीर बनेगा और पीड़ितों को जल्द न्याय मिलेगा।
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