सुप्रीम कोर्ट दहेज प्रताड़ना फैसला

दहेज प्रताड़ना पर सर्वोच्च फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना में फंसे रिश्तेदारों को दी बड़ी राहत

दहेज प्रताड़ना मामले में कहा-पति के रिश्तेदारों को बेवजह घसीटा गया

नेशनल डेस्क

नई दिल्ली। दहेज प्रताड़ना के एक बेहद संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पति के रिश्तेदारों को इस मामले से बरी कर दिया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उन रिश्तेदारों को बिना किसी ठोस आधार के दहेज प्रताड़ना के आरोप में फंसाया गया, जो न केवल कानून का दुरुपयोग है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था को भी अनावश्यक रूप से उलझाता है।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत दर्ज यह मामला केवल परेशान करने के लिए दायर किया गया प्रतीत होता है, न कि वास्तविक उत्पीड़न के आधार पर।

सुप्रीम कोर्ट ने उठाए महत्वपूर्ण सवाल
दहेज प्रताड़ना के फैसले में कहा गया कि महिला और उसके पति की शादी जून 2010 में हुई थी। कुछ समय तक दोनों कोटा में साथ रहे, लेकिन अक्टूबर 2010 में महिला अपने मायके चली गई और फिर कभी ससुराल नहीं लौटी। इसके बाद पति ने तलाक के लिए याचिका दायर की और मई 2012 में फैमिली कोर्ट ने एकतरफा तलाक मंजूर कर लिया, क्योंकि महिला कोर्ट में हाजिर नहीं हुई।

तलाक के करीब तीन साल बाद, अगस्त 2015 में महिला ने अचानक एक आपराधिक शिकायत दर्ज करवाई। उसने आरोप लगाया कि उसके पति के पांच रिश्तेदार घर आए और दहेज की मांग करते हुए उसे धमकाया और प्रताड़ित किया। इस शिकायत पर मजिस्ट्रेट ने तुरंत संज्ञान लेते हुए रिश्तेदारों को समन जारी कर दिया।

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हाईकोर्ट ने भी नहीं दी थी राहत
दहेज प्रताड़ना से पीड़ित रिश्तेदारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस समय की घटना बताई जा रही है, उस समय तक पति-पत्नी का कानूनी रिश्ता समाप्त हो चुका था। ऐसे में रिश्तेदारों का महिला से मिलने जाना और दहेज प्रताड़ना करना, संदेह के घेरे में आता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि 498ए जैसी गंभीर धाराएं केवल ठोस और तर्कसंगत आधार पर ही लगाई जानी चाहिए, न कि किसी को मानसिक रूप से परेशान करने के लिए।

दहेज प्रताड़ना कानून के दुरुपयोग पर हाईकोर्ट की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दहेज प्रताड़ना कानून का मूल उद्देश्य विवाहिता महिलाओं की सुरक्षा है, लेकिन इसके दुरुपयोग की घटनाएं भी सामने आती रही हैं। अदालत ने कहा कि यह देखा गया है कि कई मामलों में केवल पति से नाराज़गी के चलते उसके पूरे परिवार को कानूनी पचड़े में डाल दिया जाता है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब देश में दहेज प्रताड़ना के मामलों में बढ़ती फर्जी शिकायतों पर लगातार बहस चल रही है। इस निर्णय से यह संदेश भी गया है कि अदालतें केवल भावनात्मक आरोपों के आधार पर सज़ा नहीं देंगी।

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दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करने से पहले साक्ष्य जरूरी
दहेज प्रताड़ना मामले में यह फैसला देकर अदालत ने एक बार फिर से यह स्थापित किया है कि आरोपों की जांच पूरी निष्पक्षता और सावधानी से की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि केवल आरोप लगने भर से किसी व्यक्ति को आरोपी नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य न हों।

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