निकिता शर्मा
आजकल फेक वेडिंग या नकली शादी का चलन शुरू हुआ है। यह शादी के थीम पर आधारित पार्टी है, जिसमें शादी के सभी ताम-झाम जैसे मेहंदी, संगीत, बारात, नाच-गाना, फोटोशूट और पारंपरिक सजावट आदि मौजूद होते हैं। लेकिन असलियत में कोई वास्तविक विवाह नहीं होता है। दिल्ली के महरौली में बीते 25 अप्रैल को Zylo रेस्तरां में आयोजित एक ऐसी ही ‘फेक संगीत’ पार्टी में लगभग 100 लोग शामिल हुए। इस आयोजन में युवा, विशेष रूप से Gen-Z और 40 साल से अधिक उम्र के लोग भी उत्साह से हिस्सा लेते देखे गए। मात्र 550 रुपये की एंट्री फीस देकर लोग इस उत्सव का हिस्सा बने। इसके आयोजक ‘Jumma Ki Raat’ अब तक ऐसी दो पार्टियां आयोजित कर चुके हैं।
यह ट्रेंड केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। वैश्विक स्तर पर भी इसकी समानताएं देखी जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना में ‘फाल्सा बोडा’ (नकली शादी) 21वीं सदी के प्रारंभ से ही लोकप्रिय है, जहां लोग टिकट खरीदकर स्टेज्ड शादियों में शामिल होते हैं। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन काउंसिल ने एक दो-दिवसीय मॉक शादी आयोजित की, जिसमें हल्दी, मेहंदी और जूता चुराई जैसी रस्में शामिल थीं। ये आयोजन भारतीय संस्कृति को आधुनिक और मनोरंजक तरीके से जीवंत रखने का प्रयास है। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, ‘ये पार्टियां न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि युवाओं को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का एक नया तरीका भी हैं’ लेकिन क्या इस ट्रेंड के केवल सकारात्मक पहलू हैं या फिर यह सामाजिक परंपराओं का मजाक बना रहा है?
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इस ट्रेंड की लोकप्रियता के कारण:
फेक वेडिंग की लोकप्रियता के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी कारण हैं-
सोशल मीडिया: आज का युवा अपने अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा करना चाहता है। फेक वेडिंग में देसी परिधानों में रील्स और तस्वीरें बनाना इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रहा है। यह ट्रेंड डिजिटल युग की उस प्रवृत्ति को दर्शाता है, जहां अनुभवों का प्रदर्शन उनकी वास्तविकता से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
मनोरंजन: असली शादियों में पारिवारिक जिम्मेदारियां, सामाजिक दबाव और आर्थिक बोझ होता है। फेक वेडिंग में लोग बिना किसी ड्रामे या दबाव के शादी का मजा लेते हैं।
किफायती और समावेशी: 550 रुपये की मामूली फीस के साथ, यह ट्रेंड सभी वर्गों के लिए सुलभ है। यह विभिन्न उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को एक मंच पर लाता है, जिससे सामाजिक समावेशिता बढ़ती है।
आधुनिकता और स्वतंत्रता: यह ट्रेंड व्यक्तिवाद और स्वतंत्रता की बढ़ती भावना को दर्शाता है, खासकर युवाओं में, जो सामाजिक अपेक्षाओं से मुक्त होकर अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहते हैं।
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समाज पर प्रभाव:
फेक वेडिंग ट्रेंड समाज में बदलते मूल्यों और प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं-
विवाह की पवित्रता पर सवाल: विवाह एक पवित्र बंधन है और यह ट्रेंड एक तरह से सांस्कृतिक मूल्यों का मखौल है। यह ट्रेंड विवाह को एक मनोरंजक इवेंट में बदल सकता है, जिससे इसके भावनात्मक और सामाजिक महत्व पर असर पड़ सकता है।
परंपराओं का क्षरण: ऐसे आयोजन सांस्कृतिक मूल्यों को मॉनिटाइज कर रहे हैं। आयोजक मुनाफे के लिए इस ट्रेंड का उपयोग कर रहे हैं, जो परंपराओं की मौलिकता को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ आयोजकों ने प्रीमियम पैकेज पेश किए हैं, जिनमें विशेष फोटो बूथ और डीजे शामिल हैं।
बनावटी रिश्ते: फेक वेडिंग में लोग अक्सर सोशल मीडिया कंटेंट के लिए इकट्ठा होते हैं, जिससे गहरे सामाजिक बंधन कमजोर हो सकते हैं। यह समाज और रिश्तों के मायने बदल सकता है, जहां लोग केवल “वायरल” होने के लिए हिस्सा लेते हैं।
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समाज किस दिशा में जा रहा है?
फेक वेडिंग ट्रेंड यह दर्शाता है कि हमारा समाज परंपराओं और आधुनिकता के बीच संतुलन खोज रहा है। लोग अब सामाजिक अपेक्षाओं से अधिक अपनी व्यक्तिगत खुशी और स्वतंत्रता को प्राथमिकता दे रहे हैं। फेक वेडिंग इस स्वतंत्रता का प्रतीक है, जहां लोग अपनी शर्तों पर उत्सव मना सकते हैं। सोशल मीडिया के कारण आजकल लोग अनुभवों को डिजिटल प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सांस्कृतिक मूल्यों की महत्ता बदल रही है। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, ‘यह ट्रेंड डिजिटल युग में सांस्कृतिक पहचान को नए रूप में पेश करता है’। यह ट्रेंड परंपराओं को रचनात्मक तरीके से पुनर्जनन करता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को केवल मनोरंजन तक सीमित कर रहे हैं।
निष्कर्ष
फेक वेडिंग ट्रेंड एक रचनात्मक सामाजिक प्रयोग है, जो आधुनिक समाज की बदलती प्राथमिकताओं को दर्शाता है। यह लोगों को तनावमुक्त माहौल में सांस्कृतिक उत्सव मनाने और अपनी संस्कृति को नए तरीके से जीने का अवसर देता है। लेकिन, यह ट्रेंड हमें यह सोचने पर भी मजबूर करता है कि क्या हम विवाह जैसे पवित्र संस्थानों को केवल मनोरंजन और सोशल मीडिया कंटेंट के लिए कमतर कर रहे हैं। समाज को इस बदलाव को अपनाने के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति संवेदनशील रहने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि परंपराएं केवल मनोरंजन का साधन न बनें, बल्कि उनकी गंभीरता और महत्व बरकरार रहे।

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