Tuesday, July 15, 2025
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इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी ने धरा बहरुपिया का भेष

कभी सिख, पठान तो कभी पुजारी बनकर बचाई लोकतंत्र की सांसें?

हाल ही में प्रकाशित किताब में दर्ज है इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी की कहानी

नेशनल डेस्क

नई दिल्ली। इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर दशकों से कई कहानियां सुनी जाती रही हैं, लेकिन हाल ही में प्रकाशित एक नई किताब ’द इमरजेंसी डायरीज़ः इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर’ ने इन सभी अटकलों को ठोस दस्तावेज में बदल दिया है। इस किताब में इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाए गए अनेक छद्म वेशों, गुप्त ठिकानों और रणनीतियों का विस्तार से उल्लेख है, जो न केवल चौंकाते हैं बल्कि उस समय के राजनीतिक प्रतिरोध की एक अभूतपूर्व तस्वीर पेश करते हैं।

25 जून, 1975 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, तो विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं और सामान्य नागरिकों की स्वतंत्रता पर ताला लग गया। लोकतांत्रिक संस्थाएं दबाव में थीं और संविधान का मूल स्वरूप ठहर गया था। इसी माहौल में उस समय 25 वर्ष के नरेंद्र मोदी संघ कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय थे। लेकिन इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी ने जो साहस और रणनीति दिखाई, वह अब जाकर पूरी तरह उजागर हो रही है।

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इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी ने धरा बहरुपिया का भेष
इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी का छद्मवेश

किताब के अनुसार, इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी ने गिरफ्तारी से बचने और भूमिगत आंदोलन को संचालित करने के लिए अनेक बार भेष बदले। वह कभी पठान बनकर निकले, तो कभी सिख का रूप धर लिया। एक बार वह अगरबत्ती बेचने वाले का वेश पहनकर गुप्त बैठक में पहुंचे। कई बार पुजारी या स्वामीजी बनकर वे अन्य राज्यों में संघ कार्यकर्ताओं से संपर्क में बने रहे। इस दौरान उन्होंने ऐसी जगहों पर डेरा डाला, जिनमें दो या अधिक निकास द्वार हों ताकि किसी भी छापेमारी के समय बचा जा सके।

पुस्तक में एक प्रसंग में उल्लेख है कि इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी ‘चंदन कार्यक्रम’ नामक गुप्त बैठकों का आयोजन करते थे। इन बैठकों के लिए उन्होंने ऐसा निर्देश दिया था कि घर के बाहर जूते-चप्पल करीने से न रखें, बल्कि बिखेर दें ताकि पुलिस को शक न हो कि भीतर कोई बैठक चल रही है। उनके निर्देश इतने सावधानीपूर्वक थे कि किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगते।

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इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी ने धरा बहरुपिया का भेष

इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी द्वारा अपनाए गए भेष इतने विश्वसनीय होते थे कि उनके करीबी साथी भी उन्हें पहचान नहीं पाते थे। एक बार जब वे स्वामीजी के भेष में जेल में बंद कार्यकर्ता से मिलने पहुंचे तो वह भी भ्रमित हो गया। यह चतुराई और राष्ट्रहित की भावना उस युवा मोदी की थी, जो अब देश के प्रधानमंत्री हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा द्वारा लिखी प्रस्तावना के अनुसार, इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी केवल संगठनात्मक रणनीतिकार नहीं थे, बल्कि वे अपने जीवन को जोखिम में डालकर लोकतंत्र की रक्षा करने वाले योद्धा के रूप में उभरे। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकार्पित इस किताब में यह भी दर्ज है कि इमरजेंसी में नरेंद्र मोदी का चरित्र एक गुप्त सिपाही की तरह था, जो ना केवल सत्ता से लड़ा बल्कि रणनीति और विवेक के बल पर लोकतांत्रिक मूल्य बचाने में योगदान दिया।

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