मुख्यमंत्री के आगमन से एक दिन पूर्व प्रशासन ने ढ़हाया मजार
चमन शाह, भंवर शाह और शहंशाह बाबा की मजार पर भी हुई कार्रवाई
संवाददाता
बहराइच। जिले में कतर्निया घाट वन क्षेत्र के अंदर स्थित चार ऐतिहासिक मजारों को वन विभाग और जिला प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई में ध्वस्त कर दिया गया। इस घटना के बाद बहराइच मजार विवाद ने धार्मिक आस्था, कानूनी अधिकारों और प्रशासनिक सख्ती को लेकर गहरी बहस छेड़ दी है। इस कार्रवाई में मुख्य रूप से लक्कड़ शाह बाबा की 700 साल पुरानी मजार को बुलडोजर से गिरा दिया गया। इसके अतिरिक्त चमन शाह, भंवर शाह और शहंशाह बाबा की मजार भी हटाई गईं, जो 100 साल से भी अधिक पुरानी बताई जाती हैं।
लक्कड़ शाह मजार पर वर्षों से होता था उर्स
लक्कड़ शाह बाबा की मजार को लेकर प्रबंध समिति का दावा है कि 16वीं सदी से इस स्थान पर उर्स का आयोजन होता रहा है, जहां न सिर्फ मुस्लिम बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू श्रद्धालु भी आस्था प्रकट करते रहे हैं। यह स्थान धार्मिक आयोजन के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता रहा है। हर वर्ष यहां आयोजित होने वाले मेले में लगभग 40 फीसद मुस्लिम और 60 फीसद हिंदू श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।
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सीएम योगी के दौरे से पहले चली बुलडोजर कार्रवाई
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बहराइच दौरा 11 जून को प्रस्तावित है। इसी के दो दिन पहले, 8 जून की रात को मजारों को गिराने की संवेदनशील कार्रवाई की गई। वन विभाग द्वारा पांच जून को मजार प्रबंधन समिति को नोटिस जारी किया गया था, जिसमें निर्माण को अवैध बताया गया था और स्वयं हटाने की चेतावनी दी गई थी। जब समिति की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो रात में पीएसी और जिला प्रशासन की टीम ने संयुक्त रूप से बुलडोजर की मदद से मजारें गिरा दीं।
प्रशासन की दलील : जमीन का कोई वैध दस्तावेज नहीं
कतर्नियाघाट के प्रभागीय वन अधिकारी बी. शिवशंकर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि मजार प्रबंधन समिति ने भूमि को वक्फ संपत्ति बताया था, लेकिन इसके समर्थन में कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जा सके। उन्होंने कहा कि मजार की संरचना वन भूमि पर अवैध कब्जा थी और सभी दावों को ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद खारिज कर दिया गया।
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मेले पर पहले से ही प्रशासन की पाबंदी
प्रशासन ने कुछ माह पहले ही सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए कई मजारों पर लगने वाले मेलों पर रोक लगा दी थी। इसमें लक्कड़ शाह बाबा की मजार पर लगने वाला मेला भी शामिल था। हालांकि प्रशासन ने यह स्पष्ट किया था कि धार्मिक क्रियाकलापों और जियारत पर कोई रोक नहीं है, लेकिन सार्वजनिक मेलों पर भीड़ की आशंका को देखते हुए प्रतिबंध लगाया गया था। इस प्रतिबंध के समय भी मेला आयोजकों ने नाराजगी जाहिर की थी।
श्रद्धालुओं को पहले ही हटाया गया
मजार प्रबंध समिति के सचिव इसरार ने बताया कि प्रशासन ने रविवार रात अचानक मजार परिसर में घुसकर कार्रवाई शुरू कर दी। उस समय कुछ श्रद्धालु और कर्मचारी वहां मौजूद थे, जिन्हें पहले ही हटा दिया गया था। इसरार ने यह भी बताया कि समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन प्रशासन ने 5 जून के ट्रिब्यूनल आदेश को दिखाकर रात में ही कार्रवाई को अंजाम दिया।
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विरोध में सामने आए स्थानीय लोग और धार्मिक प्रतिनिधि
मजार समिति के अध्यक्ष रईस अहमद ने कहा कि लक्कड़ शाह बाबा की मजार कोई आम ढांचा नहीं थी, बल्कि ये लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक थी। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। स्थानीय लोग भी इस कार्रवाई से दुखी हैं। उनका कहना है कि सदियों से चली आ रही परंपरा को एक झटके में तोड़ देना उचित नहीं है।
कानून बनाम आस्थाः अब क्या?
प्रशासनिक कार्रवाई कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई या नहीं, इस पर अब अदालत निर्णय करेगी। लेकिन इस कार्रवाई ने साफ कर दिया कि बहराइच मजार विवाद सिर्फ जमीन का नहीं, बल्कि धार्मिक सहिष्णुता, सांस्कृतिक विरासत और राजनीतिक संवेदनशीलता से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है। इस कार्रवाई से लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं, जो आने वाले दिनों में सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को प्रभावित कर सकती हैं।
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