इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा-निजी स्वार्थ के लिए एकाधिक शादी कर रहे हैं मुस्लिम
कुरान में दी गई शर्तों की मनमानी व्याख्या कर रहे हैं देश के अधिकांश मुसलमान-इलाहाबाद हाईकोर्ट
प्रादेशिक डेस्क
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि इस्लाम कुछ परिस्थितियों में और कुछ शर्तों के साथ एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है, लेकिन मुस्लिम पुरुष स्वार्थ के कारण इसका दुरुपयोग करते हैं। इतिहास में एक समय ऐसा था जब बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो गईं और बच्चे अनाथ हो गए। इनकी रक्षा के लिए कुरान में बहु विवाह की सशर्त अनुमति दी गई थी, लेकिन अब इसका दुरुपयोग पुरुषों द्वारा ’स्वार्थी उद्देश्यों’ के लिए किया जा रहा है।’ यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने फुरकान नाम के मुस्लिम युवक की याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
हाईकोर्ट का अहम रुख, कुरान और आईपीसी दोनों पर दी टिप्पणी
दरअसल, फुरकान ने पहले से शादीशुदा होने के बावजूद दूसरी शादी कर ली थी। दूसरी पत्नी ने उस पर यह गंभीर आरोप लगाया कि उसने अपनी पहली शादी की जानकारी छिपाई और झांसा देकर उससे निकाह किया, जो बलात्कार के दायरे में आता है। इन्हीं आरोपों के आधार पर फुरकान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके खिलाफ फुरकान ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका में आरोप-पत्र, मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान और समन आदेश को निरस्त करने की मांग की गई थी।

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इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में फुरकान की ओर से वकील ने कुरान का हवाला देते हुए तर्क दिया कि चूंकि मुस्लिम पुरुष को एक से अधिक शादी की अनुमति है, इसलिए यह मामला बलात्कार का नहीं बनता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि कोई मुस्लिम पुरुष इस्लामी कानून के अनुसार पहली शादी करता है, तो उसकी दूसरी, तीसरी या चौथी शादी को शून्य नहीं माना जा सकता। साथ ही, विपरीत पक्ष को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने आवेदक के खिलाफ किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी। अब यह मामला 26 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाएगा।
दूसरी शादी कब अपराध की श्रेणी में आएगी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति ने पहली शादी विशेष विवाह अधिनियम 1954, विदेशी विवाह अधिनियम 1969, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 या हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत की है, और इसके बाद वह इस्लाम धर्म अपना कर मुस्लिम विधि के अनुसार दूसरी शादी करता है, तो यह विवाह अमान्य माना जाएगा। ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (पुनर्विवाह) के तहत अपराध बनता है।
इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी जोड़ा कि फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7 के अंतर्गत फैमिली कोर्ट को यह अधिकार है कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत हुए विवाह की वैधता का निर्धारण कर सके। फुरकान के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में महिला का आरोप था कि उसने बिना यह बताए कि वह पहले से विवाहित है, उससे शादी की और इस शादी के दौरान उसके साथ बलात्कार किया।
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महिला की स्वीकृति और फुरकान का बचाव
फुरकान की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रस्तुत तर्क में कहा गया कि महिला ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि वे एक रिश्ते में थीं और उसके बाद विवाह किया गया। वकील ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 494 या 376 के तहत उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि शरीयत अधिनियम 1937 और इस्लामिक कानून के अनुसार एक मुस्लिम पुरुष को चार विवाह तक करने की अनुमति है। साथ ही यह भी जोड़ा गया कि विवाह और तलाक से जुड़े सभी मामले शरीयत अधिनियम 1937 के अंतर्गत ही तय किए जाने चाहिए, जिसमें पति को अपने जीवनकाल में एक से अधिक विवाह करने की अनुमति प्राप्त है।
कुरान की अनुमति का आज हो रहा दुरुपयोगः इलाहाबाद हाईकोर्ट
फुरकान के बचाव में पेश दलीलों पर विचार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लामिक कानून में विवाह (निकाह) की व्यवस्था स्पष्ट है, लेकिन इसमें पति को बिना शर्त बहुविवाह का अधिकार नहीं दिया गया है। अदालत ने आगे कहा कि कुरान में बहुविवाह की अनुमति उचित और न्यायसंगत कारणों के अधीन है। वर्तमान समय में पुरुष इस प्रावधान का उपयोग अपने निजी स्वार्थों के लिए कर रहे हैं, जो धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
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कुरान में बहुविवाह की अनुमति का ऐतिहासिक संदर्भ
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहुविवाह को लेकर कुरान की भावना को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस अनुमति के पीछे ऐतिहासिक परिस्थितियां थीं। उस दौर में अरब में कबीलों के बीच संघर्ष के कारण भारी संख्या में पुरुष मारे जाते थे, जिससे बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा और बच्चे अनाथ हो जाते थे। मदीना जैसे क्षेत्रों में नवजातों की रक्षा और महिलाओं को सामाजिक-सुरक्षा देने की दृष्टि से बहुविवाह की व्यवस्था कुरान में दी गई। इस्लाम ने इन सामाजिक संकटों से निपटने के लिए ही सशर्त बहुविवाह को मान्यता दी थी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया दो दृष्टांत
1.स्वार्थ या वासना के लिए बहुविवाह की मनाही
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य (2015) के निर्णय का हवाला दिया। इस फैसले में यह स्पष्ट किया गया था कि यदि किसी पुरुष का उद्देश्य केवल वासना या स्वार्थ की पूर्ति है, तो कुरान बहुविवाह की अनुमति नहीं देता। अदालत ने कहा कि मौलवियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कुरान की शिक्षाओं का दुरुपयोग न हो और लोग बहुविवाह को अपने हित के लिए न जायज़ ठहराएं। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने यह भी माना कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत किया गया विवाह अमान्य नहीं होता, इसलिए इसे धारा 494 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
2.मुस्लिम पुरुष अधिकतम चार विवाह कर सकता है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य निर्णय कलीम शेख मुनाफ व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य (2022) का भी उल्लेख किया, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहा था कि एक मुस्लिम पुरुष अधिकतम चार विवाह कर सकता है। इस प्रकार, मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार किया गया दूसरा विवाह अमान्य नहीं है और न ही भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
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