हाईकोर्ट के आदेश के बाद निभाई गई जियारत की औपचारिकता
सालार मसूद गाजी मेला में प्रतिवर्ष जुटते थे देश भर के लाखों जायरीन
संवाददाता
बहराइच। सालार मसूद गाजी मेला इस बार पहले जैसा नहीं रहा। बहराइच में सदियों से चली आ रही जेठ महीने की पहली चौथी की भीड़भाड़ वाली परंपरा इस साल पूरी तरह बदल गई। वर्षों से जिस रास्ते पर पैर रखने की जगह नहीं रहती थी, वहां इस बार सन्नाटा पसरा रहा। चार से पांच लाख की भीड़ की जगह केवल 8-10 हजार लोग ही दरगाह में जियारत के लिए आए। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इस ऐतिहासिक मेले की शक्ल-सूरत ही बदल गई। सुरक्षा के सख्त इंतजाम और भीड़ पर नियंत्रण के प्रयासों ने मेले को एक सीमित, शांत आयोजन में तब्दील कर दिया।
बारात, कव्वाली, गोला तमाशा सब रहा नदारद
सदियों से सालार मसूद गाजी की दरगाह पर जेठ महीने के हर रविवार को आने वाली प्रतीकात्मक बरात इस बार न आई। यह वह बारात होती थी जो बिना दूल्हे के गाजे-बाजे के साथ आती थी और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अद्भुत प्रदर्शन होती थी। बारात के साथ आने वाले त्रिशूल, लाल कपड़े में लिपटे नारियल और ध्वज (निशान) भी इस बार नदारद रहे। गोला तमाशा, कव्वाली, रातभर का उत्सव कुछ भी नहीं हुआ। जायरीन ने केवल सादगी के साथ जियारत की और चले गए।
हिंदू श्रद्धालुओं की रही बड़ी भागीदारी
सालार मसूद गाजी मेले की खास बात यह होती थी कि यहां मुस्लिम श्रद्धालुओं की तुलना में हिंदू मेलार्थी अधिक संख्या में आते थे। कोई संतान प्राप्ति के लिए, कोई बीमारी से मुक्ति के लिए, तो कोई मानसिक शांति की कामना लिए यहां आता था। मुस्लिम जहां सिन्नी आदि चढ़ाते थे, वहीं हिंदू त्रिशूल, नारियल और लाल कपड़े चढ़ाकर मन्नतें मांगते थे। इस बार भी सीमित संख्या में आए श्रद्धालुओं में बड़ी संख्या हिंदू श्रद्धालुओं की ही रही, लेकिन परंपरागत भाव और उत्सव का माहौल गायब था।

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मेला स्थल पर भारी पुलिस तैनात
सालार मसूद गाजी मेला क्षेत्र पूरी तरह से पुलिस छावनी में तब्दील रहा। करीब 1,500 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। भगदड़ और अव्यवस्था से बचने के लिए दरगाह में रात रुकने की अनुमति नहीं थी। प्रति वर्ष जिस क्षेत्र में लाखों लोग जमा होते थे, वहां मात्र कुछ हजार लोग दिख रहे थे। जंजीरी गेट से ही प्रवेश की अनुमति दी गई और उसी मार्ग से जायरीन को बाहर निकलने की व्यवस्था की गई। कव्वालों द्वारा किसी स्थान पर जब भीड़ जुटाने का प्रयास हुआ, तो पुलिस ने तत्काल हस्तक्षेप किया और आयोजन रोक दिया।
प्रशासन और प्रबंधन समिति की अपील
प्रशासन की ओर से एएसपी नगर रामानंद कुशवाहा ने कहा कि श्रद्धालुओं को सालार मसूद गाजी मेला क्षेत्र में आने से नहीं रोका गया है, लेकिन उन्हें सीमित संख्या में आने और भीड़ से बचने की सलाह दी गई है। दरगाह प्रबंध समिति के वकाउल्ला ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए ही यह सीमित आयोजन किया गया है। सभी से अपील है कि वे श्रद्धा के साथ परंतु अनुशासन में रहकर जियारत करें।
बिना दूल्हे के क्यों आती थी बारात?
बहराइच के दरगाह मेले में हर साल बिना दूल्हे की बारात आने की परंपरा सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह से जुड़ी है और लगभग 800-1000 वर्ष पुरानी मानी जाती है। यह परंपरा जोहरा बीवी (या जोहरा बेगम) की कहानी से शुरू हुई। कहा जाता है कि बाराबंकी के रुदौली की रहने वाली जोहरा बीवी ने अपनी पूरी जिंदगी गाजी की दरगाह की सेवा में बिता दी। एक मान्यता के अनुसार, जोहरा बीवी अंधी थीं और सैय्यद सालार मसूद गाजी की कृपा से उनकी आंखों की रोशनी लौट आई थी। इसके बाद उन्होंने मन ही मन गाजी को अपना पति मान लिया, लेकिन यह इच्छा कभी जाहिर नहीं की।

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पहली बार जोहरा बीबी पहुंची थीं बारात लेकर
जनश्रुति के अनुसार, सालार मसूद गाजी के देहांत के बाद, जोहरा बीवी अपने परिवार के साथ बारात लेकर बहराइच की दरगाह पहुंचीं और वहां दहेज का सामान चढ़ाया, जिसमें पलंग, पीढ़ी, कपड़े, गहने, फल, मेवा आदि शामिल थे। तभी से यह परंपरा शुरू हुई, जिसमें श्रद्धालु बिना दूल्हे और दुल्हन के बारात लेकर दरगाह पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। इस मेले में देश भर से, खासकर उत्तर भारत और पूर्वांचल से श्रद्धालु बारात के रूप में आते हैं। ये बारातें मन्नत पूरी होने पर दहेज के रूप में सामान जैसे साफा, शेरवानी, मुकुट, पलंग आदि लाती हैं और दरगाह पर चढ़ाती हैं।
सदियों पुरानी आस्था को आधुनिक कानून का संतुलन
बहराइच का सालार मसूद गाजी मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव था। यह स्थल व्यापारिक रूप से भी समृद्ध होता था दुकानों के ठेके से लेकर दान-दक्षिणा तक करोड़ों का कारोबार होता था। इस बार वह सब कुछ थम सा गया। हाईकोर्ट का आदेश, प्रशासन की सख्ती और लोगों की समझदारी ने इस साल परंपरा को नए ढंग से निभाने के लिए मजबूर किया। हालांकि आस्था अब भी कायम है, लेकिन उत्सव का रूप अब सिमट गया है।

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