निर्देशक ने माफी मांगकर कहा-नहीं था भावनाएं आहत करने का इरादा
26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या के विरोध में भारत ने शुरू किया है आपेरशन सिंदूर
मनोरंजन डेस्क
नयी दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर की पावर पैक्ड घोषणा ने जैसे ही सोशल मीडिया पर दस्तक दी, आलोचना की लहर दौड़ गई। फिल्म निर्देशक उत्तम माहेश्वरी द्वारा इस संवेदनशील सैन्य कार्रवाई पर फिल्म निर्माण की सूचना सार्वजनिक करते ही विरोध की आवाजें तेज हो गईं। देश की रक्षा और शहादत से जुड़ी भावनाओं के साथ फिल्म इंडस्ट्री द्वारा जल्दबाजी में लाभ कमाने की कोशिश को लेकर लोग सोशल मीडिया पर भड़के। इसी के चलते निर्देशक को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी।
निर्देशक माहेश्वरी ने शुक्रवार रात सोशल मीडिया पर ऑपरेशन सिंदूर नामक फिल्म की घोषणा की थी। यह फिल्म निकी विक्की भगनानी फिल्म्स और द कंटेंट इंजीनियर के सहयोग से बनाई जा रही है। फिल्म के पहले पोस्टर में एक महिला सैनिक को सिंदूर लगाते हुए हथियार के साथ दिखाया गया है, जो दर्शाता है कि यह विषय महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रभक्ति के मिश्रण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
हालांकि, ऑपरेशन सिंदूर की घोषणा के समय ने ही विवाद की चिंगारी भड़का दी। गौरतलब है कि फिल्म की घोषणा उस वक्त की गई, जब भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमलों की कार्रवाई को लेकर जनता में भावनात्मक उबाल था। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान गई थी। इसके प्रतिशोध में भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर में 9 आतंकी अड्डों पर मिसाइल हमले किए थे, जिसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया गया।
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इन्हीं ताजातरीन घटनाओं के बीच फिल्म की घोषणा को लेकर लोगों ने इसे भावनात्मक मुद्दे का व्यवसायीकरण करार दिया। एक यूजर ने कहा’ शर्म करो यार, जंग शुरू है। दूसरे ने लिखा-सिंदूर या ऑपरेशन सिंदूर का लाभ के लिए इस्तेमाल नैतिक रूप से शर्मनाक है। इसी तरह कई अन्य सोशल मीडिया पोस्ट्स में फिल्म टीम को ‘देश की छवि को धूमिल करने’ और ‘जिम्मेदारियों से विमुख’ कहा गया।
भारी विरोध के बीच निर्देशक उत्तम माहेश्वरी ने इंस्टाग्राम पर माफीनामा जारी किया। उन्होंने लिखा कि ऑपरेशन सिंदूर फिल्म की घोषणा हालिया सैन्य कार्रवाई से प्रेरित थी, जिसका उद्देश्य हमारे जवानों की वीरता और त्याग को सम्मान देना था, न कि भावनाओं को आहत करना। माहेश्वरी ने यह भी स्वीकार किया कि फिल्म की घोषणा का समय कुछ लोगों को असहज कर सकता है, लेकिन इसका आशय लाभ कमाना नहीं बल्कि सैनिकों को श्रद्धांजलि देना था। निर्देशक ने यह स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर कोई साधारण फिल्म नहीं बल्कि राष्ट्रीय भावना और सामाजिक छवि को दर्शाने वाला माध्यम है। उन्होंने लिखा, “यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह पूरे देश की भावना है और वैश्विक स्तर पर देश की सामाजिक छवि है।”
फिल्म के पोस्टर पर भी कई लोगों ने आपत्ति जताई। सिंदूर, जो हिंदू विवाहिता महिलाओं की पहचान है, को हथियार के साथ जोड़ने को कुछ लोगों ने ‘अनुचित सांस्कृतिक प्रतीकवाद’ कहा। उन्होंने कहा कि फिल्म मेकर्स को इस प्रकार की संवेदनशीलता को समझते हुए ही कोई रचनात्मक निर्णय लेना चाहिए। इस विवाद के बीच बॉलीवुड में ऑपरेशन सिंदूर जैसे शीर्षकों की होड़ मच गई है। दो दिनों में 30 से अधिक फिल्म टाइटल पंजीकरण के लिए जमा किए गए हैं जिनमें ‘मिशन सिंदूर’, ‘सिंदूर : द रेवेंज’ आदि शामिल हैं। इसका तात्पर्य है कि फिल्म जगत इस मुद्दे को सिनेमाई मंच पर उतारने के लिए तत्पर है, भले ही वह विवाद का कारण बन जाए।
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भारत द्वारा किए गए सैन्य हमलों में जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर और लश्कर-ए-तैयबा के मुरीदके स्थित ठिकानों को नष्ट किया गया। यह कार्रवाई ऑपरेशन सिंदूर के नाम से भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हो गई है। इस पूरे घटनाक्रम ने एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा कर दिया है दृ क्या संवेदनशील राष्ट्रीय घटनाओं पर फिल्म बनाना उचित है? और यदि हां, तो क्या समय और प्रस्तुति का चुनाव इतना नाजुक नहीं कि वह राष्ट्र की भावनाओं को ठेस पहुंचा दे? ऑपरेशन सिंदूर अब केवल एक सैन्य कार्रवाई भर नहीं, बल्कि एक बहस का विषय बन गया है जहां राष्ट्रवाद, सिनेमा और नैतिकता एक-दूसरे से टकरा रहे हैं।
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