One nation one election राष्ट्रहित में-KK
वरिष्ठ अधिवक्ता ने बार-बार चुनावों को बताया राष्ट्र के लिए नुकसानदेह
Powerful Call for Reform : One nation one election
संवाददाता
गोंडा। वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. श्रीवास्तव ने ‘one nation one election’ की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि यह सिर्फ राजनीतिक सुधार नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संसाधनों के समुचित उपयोग की दिशा में ‘एक शक्तिशाली और निर्णायक कदम’ होगा।
दीन दयाल शोध संस्थान के सभागार में आयोजित One nation one election संगोष्ठी में उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि बार-बार चुनाव होने से केवल प्रशासनिक मशीनरी ही बाधित नहीं होती, बल्कि देश का आर्थिक व्यय भी अत्यधिक बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, ‘हर छह महीने पर चुनाव आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे विकास कार्य रुक जाते हैं। इससे शासन की निरंतरता भंग होती है।’

One nation one election विषयक संगोष्ठी में उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि देशभर में एक साथ चुनाव कराए जाएं तो एक स्थिर, दक्ष और उत्तरदायी प्रशासनिक व्यवस्था बनाई जा सकती है। श्रीवास्तव ने ऐतिहासिक सन्दर्भ देते हुए बताया कि स्वतंत्र भारत के आरंभिक वर्षों में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे और वह प्रणाली काफी हद तक सफल रही थी। उन्होंने कहा, ‘यदि हम संविधान और लोकतंत्र को सशक्त बनाना चाहते हैं तो हमें चुनाव प्रणाली में सुधार करना ही होगा। यह सिर्फ नेताओं या राजनीतिक दलों का विषय नहीं है, यह आम जनता की भागीदारी और राष्ट्रहित का मामला है।’
वरिष्ठ अधिवक्ता ने युवाओं से भी One nation one election में वैचारिक मंथन करने और जागरूकता बढ़ाने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस विचार को केवल राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि एक व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है।
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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दीन दयाल शोध संस्थान के प्रधानाचार्य हनुमत लाल पांडे ने भी इस विचार का समर्थन किया और कहा कि ‘one nation one election’ से चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी, संसाधनों की बर्बादी रुकेगी और प्रशासनिक ढांचे पर बार-बार दबाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में चुनावी चक्र बहुत अधिक छोटा हो गया है। इससे न सिर्फ नीति निर्माण प्रभावित होता है, बल्कि जनता का ध्यान भी भटकता है।’
हनुमत लाल पांडे ने जोर देते हुए कहा कि क्षेत्रीय असंतुलन और जातीय समीकरण की राजनीति के बजाय, देश को एक राष्ट्रीय सोच की ओर ले जाना होगा और उसके लिए ‘One nation one election’ जैसी अवधारणा जरूरी है। इस अवसर पर अनेक अधिवक्ताओं, शिक्षकों, विद्यार्थियों और नागरिकों ने इस विचार पर अपने विचार व्यक्त किए।
One nation one election संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह भी कहा कि संसद और सभी विधानसभाओं के कार्यकाल को समायोजित कर एक चुनावी कैलेंडर बनाना जरूरी है। इसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी, लेकिन यह राष्ट्रहित में एक साहसिक कदम होगा। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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