कार्यकाल को लेकर उठे गंभीर सवाल, न्यायिक स्वतंत्रता को लेकर नई उम्मीदें
मुख्य न्यायाधीश गवई के छोटे कार्यकाल ने न्यायपालिका की स्थिरता पर नई बहस छेड़ दी
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई आज अपना पदभार ग्रहण कर रहे हैं। वे भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश बने हैं। इस नियुक्ति को लेकर न्यायिक स्वतंत्रता और सामाजिक प्रतिनिधित्व के नए विमर्श शुरू हो गए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित सादे समारोह में उन्हें शपथ दिलाई। मुख्य न्यायाधीश गवई का कार्यकाल 65 दिनों का रहेगा और वे 24 जून 2025 को सेवानिवृत्त होंगे। इस अल्पकालिक कार्यकाल को लेकर भी न्यायिक क्षेत्र में प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में 2000 से अधिक लंबित मामलों और संवैधानिक पीठों की जरूरत के बीच न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति को निर्णायक माना जा रहा है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसे ‘सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर’ बताया है। न्यायमूर्ति गवई 14 नवम्बर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे। उनके पिता रमेश गवई भी दलित नेता और महाराष्ट्र के मंत्री रहे। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री ली और 1985 में वकालत शुरू की।
2003 में वे बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने, फिर 2019 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए। उनकी न्यायिक दृष्टिकोण को लेकर अब तक मिली-जुली प्रतिक्रियाएं रही हैं। कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं का मानना है कि वे ‘संविधान की आत्मा को समझने वाले न्यायाधीश’ हैं, जबकि कुछ ने अल्प कार्यकाल में व्यापक सुधारों की उम्मीद को लेकर संदेह जताया है।

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कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति को न्यायपालिका में ‘समावेशी प्रतिनिधित्व’ की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। वहीं सोशल मीडिया पर कुछ हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि इतनी बड़ी संस्था को मात्र दो महीने के लिए नेतृत्व सौंपना न्यायसंगत नहीं है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित ने कहा, ‘न्यायमूर्ति गवई का दृष्टिकोण बेहद संतुलित और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित है।’
इस बीच, कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने न्यायपालिका में दलित प्रतिनिधित्व के बढ़ने को ‘प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व से आगे का कदम’ बताया है। प्रो. फहीम उद्दीन (जामिया मिल्लिया इस्लामिया) ने कहा, ‘यह नियुक्ति महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन यह भी देखना होगा कि क्या इससे दलित समुदाय की न्यायपालिका तक वास्तविक पहुँच बढ़ती है या नहीं।’ न्यायमूर्ति गवई के सामने सुप्रीम कोर्ट की पारदर्शिता, केस आवंटन प्रणाली, जजों की नियुक्ति में विविधता और लंबित मामलों की संख्या जैसे कई बड़े मुद्दे होंगे।
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उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब न्यायपालिका को कार्यपालिका से स्वतंत्र रखने की मांगें तेज हो रही हैं। हाल के वर्षों में कई मामलों में सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद सामने आए हैं। न्यायमूर्ति गवई ने शपथ के तुरंत बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘मेरी प्राथमिकता न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखना और न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना रहेगा।’
मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे हैं जिसने राजनीतिक दलों की वित्तीय जवाबदेही, चुनावी बॉन्ड और धर्मांतरण से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई की। विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही कार्यकाल छोटा हो, लेकिन न्यायमूर्ति गवई के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की दिशा और धार का संकेत मिल सकता है। वे अपने फैसलों और वक्तव्यों से न्यायिक विमर्श को नई दिशा दे सकते हैं।

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