Saturday, July 12, 2025
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प्रेरणादायक कहानी : कृत्रिम अंग ने बदल दी किस्मत!

जन्म से बिना पैरों की बच्ची को केजीएमयू ने दिए हौसलों के पंख

KGMU की सस्ती तकनीक से लगा कृत्रिम अंग, सामान्य बच्चों की तरह दौड़ रही है 10 वर्षीय मासूम

प्रादेशिक डेस्क

लखनऊ। कृत्रिम अंग की मदद से अब वह बच्ची भी दौड़ सकती है, जिसके बारे में डॉक्टरों ने गर्भ में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि उसके पैर नहीं हैं। रिश्तेदारों ने गर्भपात की सलाह दी, परिवार अवसाद में चला गया, लेकिन एक मां ने उम्मीद नहीं छोड़ी। महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली जीनत के लिए कृत्रिम अंग जीवन का वरदान बनकर आए हैं, जो किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) के पीएमआर विभाग में साल-दर-साल उसकी ऊंचाई के साथ-साथ उसके हौसलों को भी नई उड़ान दे रहे हैं।

जन्म से दोनों पैर न होने की स्थिति में जीनत आज दस साल की उम्र में न सिर्फ स्कूल जाती है, बल्कि नृत्य और दौड़ प्रतियोगिताओं में भी भाग लेती है। यह सब संभव हो पाया कृत्रिम अंग तकनीक और केजीएमयू की समर्पित टीम की बदौलत, जो पिछले 50 वर्षों से दिव्यांगों के लिए एक नई जिंदगी गढ़ रही है।

अल्ट्रासाउंड में हुआ था खुलासा, मां ने ठुकरा दी थी गर्भपात की सलाह
जीनत जब मां की कोख में थी, तभी अल्ट्रासाउंड में उसके दोनों पैर न होने का खुलासा हुआ था। रिश्तेदारों ने गर्भपात की सलाह दी, लेकिन मां तरन्नुम ने यह फैसला ठुकरा दिया। उसने वादा किया था कि चाहे जो भी हो, वह अपनी संतान को जन्म देगी और उसे दुनिया की हर खुशी देगी। बच्ची के जन्म के बाद परिवार पर निराशा का पहाड़ टूटा लेकिन नाना मोहम्मद यूनुस के प्रयासों से कृत्रिम अंग की जानकारी मिली और वह केजीएमयू आ पहुंचे।

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सिर्फ उम्र नहीं, लंबाई भी बढ़ा रहा केजीएमयू
केजीएमयू के पीएमआर विभाग की प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक यूनिट की प्रभारी शगुन सिंह ने बताया कि बच्ची के इलाज की शुरुआत एक वर्ष की उम्र से हुई थी। घुटने के नीचे दोनों पैर नहीं थे, लेकिन कृत्रिम अंग की मदद से खड़ा किया गया। अब उम्र के साथ लंबाई भी बढ़ रही है, इसलिए हर साल नए माप के कृत्रिम अंग लगाए जाते हैं।

प्रेरणादायक कहानी : कृत्रिम अंग ने बदल दी किस्मत!

पहले स्कूलों ने किया इनकार, अब सभी शिक्षकों की है चहेती
जीनत के नाना यूनुस बताते हैं कि शुरुआत में किसी स्कूल ने उसका दाखिला नहीं लिया। लेकिन अब वही जीनत क्लास थ्री की छात्रा है और इतनी मेधावी है कि अपने सीनियर्स का भी होमवर्क कराने में मदद करती है। आज वह शिक्षकों की प्रिय बन चुकी है। कृत्रिम अंग के सहारे चलने वाली यह बच्ची दिव्यांग नहीं, प्रेरणा है।

दिव्यांग बोर्ड भी रह गया था दंग, चलकर गई थी प्रमाण लेने
जब जीनत को दिव्यांग प्रमाणपत्र के लिए सीएमओ कार्यालय में प्रस्तुत किया गया, तो वह अपने कृत्रिम अंग के सहारे खुद चलकर अधिकारियों के सामने पहुंच गई। आवेदन में दोनों पैरों के अभाव की बात थी, लेकिन बच्ची को चलता देख अधिकारी हैरान रह गए। बाद में प्रमाणपत्र जारी हुआ।

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1972 से दिव्यांगों की सेवा में है केजीएमयू, 90þ तक सस्ते हैं कृत्रिम अंग
पीएमआर विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल गुप्ता ने बताया कि केजीएमयू के लिंब सेंटर में 1972 से कृत्रिम अंग बनाए जा रहे हैं। जहां निजी कंपनियां एक अंग के लिए 50-60 हजार रुपए वसूलती हैं, वहीं यहां मात्र 4-6 हजार में उपलब्ध कराए जाते हैं। गरीबों के लिए यह सुविधा कई बार निशुल्क भी दी जाती है। पिछले साल 11 महीनों में 372 कृत्रिम अंग और 2604 कैलिपर्स लगाए गए।

मरीजों की लंबी कतारें, हर साल बनते हैं 150 से अधिक कृत्रिम अंग
डॉ. गुप्ता के मुताबिक हर साल 150 से अधिक कृत्रिम अंग तैयार किए जाते हैं, जबकि सहायक उपकरणों की संख्या 7000 से ज्यादा है। विभाग में 50 हजार से अधिक मरीजों का एक्स-रे, फिजियोथैरेपी और ऑक्यूपेशनल थैरेपी की जाती है। कृत्रिम अंग की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है।

मुफ्त या बेहद सस्ते में जीवन की वापसी
डॉ. गुप्ता ने बताया कि कुछ मरीजों को सरकारी फंड या निजी संस्थाओं के माध्यम से कृत्रिम अंग निशुल्क भी लगाए जा रहे हैं। केजीएमयू पूरे प्रदेश के मरीजों के लिए आशा का केंद्र बन गया है।

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