(विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून पर विशेष)
घनश्याम अवस्थी
सिर्फ़ धन से ख़जाना भरा इसलिए,
मन-चमन यह नहीं है हरा इसलिए।
पेड़ काटे गये, ताल पाटे गये;
स्वार्थ ही के चरण चूमे-चाटे गये।
दी गयी है तिलांजलि यहाँ सूझ को,
ताप से जल रही है धरा इसलिए।।
भू-जल-स्तर घटा, दिल धरा का फटा;
मेघ दिखते नहीं, खोयी काली घटा।
हैं स्वयं इन्द्र प्यासे भटकते यहाँ,
कोई आती नहीं अप्सरा इसलिए।।
डींग-ही-डींग है, पींग-ही-पींग है;
शस्त्र के नाम पर सींग-ही-सींग है।
पूजता था प्रकृति, आज दुश्मन बना;
आदमी जा रहा है मरा इसलिए।।
हो न ऐसे मरण, चाहता यदि भरण;
पेड़-पौधे लगा, आ प्रकृति की शरण।
मान ले अन्यथा कुछ बचेगा नहीं,
कह रहा हूँ तजुर्बा खरा इसलिए।।
गोंडा, उत्तरप्रदेश
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