सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं

वक्फ संशोधन कानून पर केंद्र की न्यायिक पराजय आसान नहीं

सुप्रीम कोर्ट में लंबित वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की उम्मीद

नेशनल डेस्क

नई दिल्ली। वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर देश में कानूनी और संवैधानिक बहस तेज हो गई है। संसद के दोनों सदनों से बहुमत के साथ पारित होकर राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त करने के बाद यह कानून लागू हो गया है, लेकिन इसके साथ ही इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। अब तक कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं, जिनमें इसे संविधान विरोधी और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन वाला बताया गया है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को पूरी तरह खारिज कराना आसान नहीं होगा, क्योंकि अदालत का दायरा कानूनों की समीक्षा के मामले में सीमित होता है। अदालत किसी भी कानून की वैधता को तीन मुख्य कसौटियों पर परखती है—विधायी सक्षमता, संवैधानिक उल्लंघन और मनमानेपन का आधार।
फोकस में आया वक्फ संशोधन कानून 2025
वक्फ संशोधन कानून 2025 संसद से पारित होने के तुरंत बाद कानूनी चुनौती का सामना कर रहा है। इसके प्रावधानों को लेकर मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों में असंतोष देखा जा रहा है। खासकर उन प्रावधानों पर आपत्ति जताई जा रही है जो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी, संपत्ति प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप और धार्मिक स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में प्रमुख तर्क यह दिया गया है कि नया कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता और अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित करता है।

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क्या हैं सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा की कसौटियां?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट किसी कानून की वैधता पर विचार करते समय तीन प्रमुख बिंदुओं को देखता है —
विधायी सक्षमता (Legislative Competence): क्या वह संस्था या व्यक्ति जिसे यह कानून बनाने का अधिकार मिला है, उसके पास वह अधिकार वास्तव में था या नहीं।
संविधान का उल्लंघन: क्या यह कानून मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
मनमाना कानून (Arbitrariness): क्या कानून बिना तर्क या उचित प्रक्रिया के पारित किया गया है।
इन बिंदुओं पर अगर वक्फ कानून को परखा जाए तो पहली कसौटी — विधायी सक्षमता — पर यह कानून संसद से पर्याप्त बहस के बाद पारित हुआ है, इसलिए यह चुनौतीपूर्ण नहीं लगता। दूसरी कसौटी — संवैधानिक उल्लंघन पर याचिकाएं केंद्रित हैं, जिनमें धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाया गया है। तीसरी कसौटी यानी मनमानेपन पर भी सुप्रीम कोर्ट विस्तार से विचार करेगा।

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सरकार का पक्ष: पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए लाया गया कानून
सरकार का दावा है कि यह कानून मुस्लिम धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है, बल्कि वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता लाने के लिए आवश्यक है। केंद्र सरकार के मुताबिक, वक्फ बोर्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार, संपत्तियों के दुरुपयोग और अनियमितताओं को दूर करने के लिए एक ठोस कानूनी ढांचे की आवश्यकता थी। सरकार यह भी तर्क देती है कि इस संशोधन से संपत्तियों का विधिसम्मत और उद्देश्यपूर्ण उपयोग सुनिश्चित होगा, और वक्फ संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर निगरानी बढ़ेगी जिससे जवाबदेही तय की जा सकेगी। यह कदम धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं, बल्कि प्रबंधन में सुधार की दिशा में है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तय होगा भविष्य
अब जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, देश की न्यायिक व्यवस्था एक बार फिर यह तय करने जा रही है कि धार्मिक मामलों में सरकार की भूमिका कहां तक सीमित होनी चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट कोई व्यापक आदेश या टिप्पणी करता है, तो यह धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति, उनके अधिकार और प्रबंधन को लेकर भविष्य के लिए एक दिशानिर्देशक सिद्ध हो सकता है।
संविधान की मूल भावना और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाना अदालत की बड़ी चुनौती होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट किस तरह धार्मिक आजादी और सरकारी नियंत्रण के बीच की रेखा खींचता है।

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