UP News : कोरोना से जंग हार गए पूर्व मंत्री

प्रादेशिक डेस्क

लखनऊ। समाजवादी पार्टी से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव के बाद नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी तथा विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह यादव ’साजन’ कोरोना वायरस संक्रमित होने के बाद अपना इलाज करा रहे हैं, लेकिन पूर्व मंत्री घूरा राम इस वैश्विक महामारी से जंग हार गए। मायावती सरकार में मंत्री रहे बलिया के घूरा राम का लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया। उन्हें 14 जुलाई को सांस लेने में दिक्कत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, कल उनकी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। घूरा राम के पुत्र संतोष कुमार ने बताया कि गुरुवार को उनके पिता का लखनऊ की किंगजार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में निधन हो गया। वह 63 वर्ष के थे। उन्होंने बताया कि घूरा राम को गत 14 जुलाई की देर रात कफ व सांस लेने में दिक्कत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बुधवार को उनकी मेडिकल जांच की रिपोर्ट आयी, जिसमें उनके कोविड-19 से पीड़ित होने की पुष्टि हुई। उन्होंने बताया कि कल से कफ व ब्लड प्रशेर की परेशानी बढ़ी और उनकी हालत बिगड़ गई थी।
बसपा संस्थापक कांशी राम के विश्वस्त सहयोगी रहे घूरा राम 1993 , 2002 व 2007 में बलिया की रसड़ा सुरक्षित सीट से विधायक रहे और मायावती सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे। इसके बाद हाल ही में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। इसके बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने घूरा राम को दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया था। बसपा संस्थापक कांशीराम के विश्वस्त सहयोगी तथा पूर्वांचल में दलितों के दिग्गज नेता घूरा राम के निधन की सूचना मिलते ही बलिया में शोक की लहर दौड़ गई। पूर्वी उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति पर मजबूत पकड़ रखने वाले घूरा राम ने बलिया जिले के बिल्थरारोड विधानसभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर 1991 में पहला चुनाव लड़ा था। भाजपा के हरिनारायण राजभर से वह पराजित हो गए थे। सपा के शारदा नन्द अंचल दूसरे स्थान पर रहे थे। इसके बाद उन्होंने रसड़ा को कर्म भूमि बना ली। उन्होंने रसड़ा सुरक्षित सीट से पहली बार 1993 में चुनाव जीता। इसके बाद वह रसड़ा सुरक्षित सीट से ही 2002 व 2007 में विधायक रहे। वह मायावती सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रहे। बसपा सुप्रीमो मायावती के कभी अत्यंत नजदीकी माने जाने वाले घूरा राम को वर्ष 2012 में मायावती ने टिकट से वंचित कर उमाशंकर सिंह को रसड़ा से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। तब घूरा राम ने बगावती तेवर अख्तियार करते हुए रसड़ा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंकी थी। वह चुनाव हार गए थे। बगावत करने के कारण इनको बसपा से बाहर कर दिया गया था। बाद में वह फिर बसपा में शामिल कर लिए गए थे। बसपा ने वर्ष 2017 में घूरा राम को बिल्थरारोड सुरक्षित सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था , लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे। लोकसभा के पिछले चुनाव के पूर्व घूरा राम को बसपा ने आजमगढ़ जिले के लालगंज सुरक्षित सीट पर प्रभारी बनाकर चुनाव लड़ने का संकेत दिया लेकिन चुनाव के ऐन वक्त बसपा सुप्रीमो ने इन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।

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