पाकिस्तान समर्थन को लेकर दुनिया भर के मुस्लिम देशों ने दूरी बना ली है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद सिर्फ तुर्किये और अजरबैजान ही पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए।

पाकिस्तान समर्थन में नहीं उतरे विश्व के अधिकांश देश!

दुनिया के 50 मुस्लिम देशों में से तुर्किये और अजरबैजान ने ही किया पाकिस्तान समर्थन

आपरेशन सिंदूर पर पाकिस्तान को लगा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का तगड़ा झटका, पड़ा अगल-थलग

नेशनल डेस्क

नई दिल्ली। पाकिस्तान समर्थन की वैश्विक कोशिशों को उस समय तगड़ा झटका लगा जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद 50 से ज्यादा मुस्लिम देशों में से सिर्फ तुर्किये और अजरबैजान ही उसके साथ खड़े नजर आए। रूस, चीन, अमेरिका और यूरोप जैसे प्रभावशाली देशों ने खुलकर भारत का समर्थन किया, जबकि इस्लामाबाद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद-51 के उल्लंघन का रोना रोता रह गया। इससे एक बार फिर यह सवाल गहराया कि शेष मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान समर्थन से दूरी क्यों बनाई?

विशेषज्ञ मानते हैं कि अब अधिकतर मुस्लिम देश पाकिस्तान की असलियत समझ चुके हैं, जो मजहब के नाम पर आतंकवादी नेटवर्क को पालता है और भारत समेत पड़ोसी देशों में हिंसा फैलाता है। इस बार के संघर्ष के दौरान दुनिया ने धर्म से ऊपर उठकर कूटनीति और आर्थिक हितों को तरजीह दी।

पाकिस्तान समर्थन से मुस्लिम देशों की चौंकाने वाली दूरी
पाकिस्तान समर्थन के लिए इस्लामिक दुनिया में इस बार कोई उत्साह नहीं दिखा। सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, कतर, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे शक्तिशाली मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान की ओर एक शब्द तक नहीं कहा। इन देशों ने भारत को उकसाने के पाकिस्तान के दावों पर भी चुप्पी साधे रखी। विश्लेषकों के मुताबिक, यह स्थिति इस्लामाबाद के लिए कूटनीतिक पराजय से कम नहीं है।

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मजहब नहीं, कूटनीति और अर्थव्यवस्था बनी पैमाना
इस बार मुस्लिम देशों ने भारत-पाक तनाव को मजहब की बजाय कूटनीति और आर्थिक दृष्टिकोण से देखा। भारत आज दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उसके साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने की होड़ है। वहीं पाकिस्तान आतंकवाद, आर्थिक कंगाली और कूटनीतिक अलगाव के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में भारत के विरोध में खड़ा होना अब इन देशों के लिए घाटे का सौदा है।

सऊदी और यूएई का पाकिस्तान समर्थन से किनारा
एक वक्त था जब सऊदी अरब और यूएई पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने वालों में सबसे आगे थे। लेकिन अब ये देश तेजी से भारत के करीब आते दिख रहे हैं। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूएई के शासक मोहम्मद बिन जायद ने भारत के साथ द्विपक्षीय निवेश और रक्षा सहयोग बढ़ाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन दोनों देशों ने अब यह समझ लिया है कि पाकिस्तान कश्मीर का मुद्दा हल नहीं करना चाहता, बल्कि उसे राजनीतिक अस्त्र के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को नहीं मिला मुस्लिम देशों का समर्थन
सिर्फ तुर्किये और अजरबैजान ही पाकिस्तान के साथ नजर आए

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तुर्किये की महत्वाकांक्षा और पाकिस्तान समर्थन
तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन की महत्वाकांक्षा है कि वह खुद को इस्लामी दुनिया का अगुवा बनाए। इसी सोच के चलते अर्दोआन लगातार पाकिस्तान का समर्थन करते रहे हैं। उन्होंने पाकिस्तान को ड्रोन और हथियार दिए। ओआईसी (इस्लामिक सहयोग संगठन) में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए तुर्किये एक मुस्लिम राष्ट्र के साथ खड़ा दिखना चाहता है। तुर्किये को लगता है कि भारत विरोध का रुख अपनाकर वह सऊदी अरब और ईरान के वर्चस्व को चुनौती दे सकता है। लेकिन कूटनीतिक हलकों में इसे खाली महत्वाकांक्षा माना जा रहा है जो तुर्की की स्थिति को और जटिल बना सकता है।

अजरबैजानः तुर्किये का पिट्ठू या पाकिस्तान का नया साथी?
अजरबैजान ने सीधे तौर पर पाकिस्तान समर्थन का ऐलान नहीं किया लेकिन तुर्किये से उसकी घनिष्ठता ने उसे भारत विरोधी पाले में खड़ा कर दिया। 2020 की आर्मेनिया-अजरबैजान जंग के दौरान पाकिस्तान ने अजरबैजान को खुला समर्थन दिया था। उसी दौरान दोनों देशों के रिश्ते मजबूत हुए। आज अजरबैजान को अंकारा का ‘उपग्रह राष्ट्र’ तक कहा जा रहा है। राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव के भारत विरोधी बयान इसी दिशा की ओर संकेत करते हैं।

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इस्लामी देशों ने अब समझ लिया है कि पाकिस्तान इस्लाम की आड़ में अपनी राजनीतिक और फौजी जरूरतों को पूरा करता है। वह धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल कर आतंकी संगठनों को बढ़ावा देता है। ऐसे में अब मुस्लिम देश भारत के खिलाफ खड़ा होकर अपनी वैश्विक छवि को दांव पर नहीं लगाना चाहते।

पाकिस्तान समर्थन अब बीते कल की बात
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को मिले सीमित समर्थन ने साफ कर दिया है कि उसका इस्लामी कार्ड अब पुराना हो चुका है। तुर्किये और अजरबैजान जैसे गिने-चुने सहयोगी उसकी आवाज को वैश्विक मंचों पर मजबूती नहीं दे सकते। भारत के साथ आर्थिक, कूटनीतिक और रणनीतिक संबंधों को तरजीह देने वाले मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान को यह साफ संदेश दे दिया है कि आतंकवाद और मजहबी उन्माद की राजनीति अब नहीं चलेगी।

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