अहमदियों को चेतावनी : कुर्बानी करने पर जुर्माना और गिरफ्तारी तय
इंटरनेशनल डेस्क
इस्लामाबाद। ईद कुर्बानी। जी हां, इस्लामिक कैलेंडर का सबसे बड़ा त्यौहार ईद-उल-अजहा अब पाकिस्तान में एक समुदाय के लिए डर का प्रतीक बन गया है। खासकर अहमदिया मुस्लिमों के लिए यह पर्व अब बंदिशों और डर के साए में बीतने वाला है। पंजाब और सिंध की प्रांतीय सरकारों ने साफ आदेश जारी कर दिए हैं कि अगर अहमदिया समुदाय के किसी भी सदस्य ने ईद पर कुर्बानी दी, तो न सिर्फ पांच लाख रुपये का जुर्माना लगेगा बल्कि उसे गिरफ्तार भी किया जाएगा।
ईद है, पर इबादत नहीं!
हालांकि पाकिस्तान ईद कुर्बानी मनाने की इजाजत तो देता है, लेकिन अहमदिया समुदाय को कुर्बानी करने का कोई हक नहीं दिया गया है। यही नहीं, सरकार की ओर से समुदाय के लोगों को एक हलफनामा भरने पर मजबूर किया जा रहा है, जिसमें उनसे यह लिखवाया जा रहा है कि वे कुर्बानी, नमाज़ या किसी सार्वजनिक धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा नहीं लेंगे। यह कदम न केवल समुदाय की धार्मिक आजादी पर सीधा हमला है, बल्कि संविधान और मानवाधिकार सिद्धांतों की भी खुली अवहेलना है।
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कानून का बहाना, उत्पीड़न की हकीकत
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने वर्ष 1974 में संविधान में संशोधन कर अहमदियों को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया था। इसके बाद से समुदाय के धार्मिक अधिकारों को योजनाबद्ध तरीके से कुचला जा रहा है। पाकिस्तान ईद कुर्बानी पर लगे ताज़ा प्रतिबंध उसी प्रक्रिया की अगली कड़ी है। अहमदिया समुदाय न तो खुद को मुस्लिम कह सकता है, न ही मस्जिद जैसी इमारतें बना सकता है। अजान देना और कुरान पढ़ना भी अपराध की श्रेणी में आता है।
अहमदियों से लिया जा रहा जबरन हलफनामा
रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और सिंध की स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों ने अहमदियों को एक फॉर्म पर दस्तखत करने के लिए बाध्य किया है, जिसमें यह कहा गया है कि वे किसी भी इस्लामिक रिवाज, जैसे कि पाकिस्तान ईद कुर्बानी, नमाज़ या सार्वजनिक धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा नहीं लेंगे। यह हलफनामा धर्मिक स्वतंत्रता की बुनियादी अवधारणा के खिलाफ जाता है।
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बुनियादी अधिकारों की अनदेखी
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के साथ यह व्यवहार नया नहीं है। वर्ष 1984 में जनरल जिया-उल-हक के शासन में ’ऑर्डिनेंस ग्ग्’ के तहत समुदाय पर और भी सख्त प्रतिबंध लगाए गए। तब से लेकर अब तक पाकिस्तान ईद कुर्बानी जैसे अवसरों पर भी अहमदियों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित कर दिया जाता है। मस्जिद जैसा कोई ढांचा बनाने, इस्लामी ग्रीटिंग्स कहने, या इस्लामी प्रतीकों के इस्तेमाल पर सजा तय है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा
ब्रिटिश संसद, अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट और यूरोपीय यूनियन की कई रिपोर्ट्स में बार-बार पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के उत्पीड़न को ‘गंभीर चिंता’ बताया गया है। पाकिस्तान ईद कुर्बानी पर लगा यह नया प्रतिबंध न केवल अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन करता है, बल्कि पाकिस्तान के संविधान की भी अवमानना है, जो धर्म की स्वतंत्रता का दावा करता है।
समाज में डर का माहौल
स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे पाकिस्तान के इतिहास का सबसे काला अध्याय बता रहे हैं। उनका कहना है कि समुदाय को अलग-थलग करना, उन्हें सार्वजनिक धार्मिक स्थलों से दूर रखना और पाकिस्तान ईद कुर्बानी जैसे रिवाजों में भाग लेने से रोकना, सीधे तौर पर धार्मिक नफरत को बढ़ावा देता है।
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