जातिगत जनगणना में मुसलमानों की जातियां — अरजाल, अजलाफ और अशराफ

मुस्लिम जाति जनगणना से उजागर हो सकती है अनदेखी असमानता

अरजाल और अजलाफ को नई ताकत दे सकती है मुस्लिम जाति जनगणना

जानकी शरण द्विवेदी

भारत में शीघ्र ही शुरू होने जा रही मुस्लिम जाति जनगणना से न सिर्फ आंकड़ों की दुनिया में बदलाव की उम्मीद है, बल्कि यह ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित मुस्लिम समुदायों अरजाल और अजलाफ के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। मुस्लिम विद्वानों का मत है कि इस्लाम का मूल सिद्धांत समानता पर आधारित है। पैगंबर मोहम्मद ने मक्का में दिए गए अपने अंतिम भाषण में स्पष्ट किया था कि कोई अरब गैर-अरब पर, और न कोई गोरा काले पर श्रेष्ठ है। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के प्रसार के साथ-साथ जातीय संरचना भी समाज में जड़ें जमाने लगी। मुस्लिम जाति जनगणना इसी संरचना के आकलन का प्रयास है।

सिद्धांत और सामाजिक यथार्थ में फर्क
इस्लाम में जाति का कोई स्थान नहीं है, फिर भी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में मुसलमान सामाजिक तौर पर जातियों में बंटे हुए हैं। डाॅ शाहनवाज कुरैशी और मौलाना तहजीब जैसे विद्वान इस फर्क को ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से जोड़ते हैं। इनके मुताबिक भारत में इस्लाम धर्मांतरण के दौरान लोगों ने मजहब तो बदल लिया, लेकिन जातिगत पहचान को बनाए रखा। इसीलिए आज मुस्लिम जाति जनगणना के तहत जब आंकड़े सामने आएंगे, तो यह जातिगत असमानता की ठोस तस्वीर सामने रखेगी। इन विद्वानों के अनुसार, मुस्लिम जाति जनगणना में प्रमुख तीन वर्ग सामने आएंगे:

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  1. अशराफ (Ashraf) – ऊंची जातियां
    सैय्यद (Sayyid): पैगंबर मुहम्मद के वंशज
    शेख (Sheikh): अरब मूल का दावा करने वाले
    पठान (Pathan): अफगान या पश्तून मूल
    मुगल (Mughal): मध्य एशियाई तुर्किक मूल के मुगलों से संबंधित
    खान (Khan): सामान्यतः पठान या अन्य उच्च समूहों से संबंधित
    मिर्जा (Mirza): मुगल या मंगोल मूल का दावा करने वाले
    रिजवी (Rizvi): शिया समुदाय से संबंधित, अक्सर सैय्यद परिवारों से.
    सिद्दीकी (Siddiqui): प्रथम खलीफा अबू बकर के वंशज माने जाते हैं.
    कायस्थ (Muslim Kayastha): उच्च शिक्षित प्रशासनिक समूह
    भरसैया/भरसो (Bharsaiya/Bharso): कुछ क्षेत्रों में सामाजिक रूप से उच्च माने जाते हैं.
  2. अजलाफ (Ajlaf) – मध्यम और पिछड़ी जातियां
    अंसारी (Ansari): जुलाहा या बुनकर समुदाय
    कुरैशी (Qureshi): पशु व्यापार से जुड़े, पैगंबर के कुरैश कबीले से संबंध का दावा.
    नाई (Nai): नाई या हज्जाम समुदाय.
    तेली (Teli): तेल निकालने का कार्य करने वाले.
    धोबी (Dhobi): कपड़े धोने का कार्य करने वाले.
    बढ़ई (Badhai): बढ़ईगीरी से जुड़े लोग
    मनिहार (Manihar): चूड़ियां बनाने या बेचने वाले.
    दरजी/दंजी (Darzi/Danzi): दर्जी या सिलाई का काम करने वाले.
    मंसूरी (Mansuri): कुछ क्षेत्रों में बागवानी या अन्य व्यवसाय से जुड़े.
    इदरीसी (Idrisi): कुछ क्षेत्रों में रंगाई या अन्य हस्तशिल्प से जुड़े.
    धुनिया (Dhunia): कपास धुनने वाले.
    चिकवा (Chikwa): मांस प्रसंस्करण से जुड़े.
    गुनिया (Gunia): कुछ क्षेत्रों में स्थानीय व्यवसाय से जुड़े.
    बेहंग (Behng): कुछ क्षेत्रों में स्थानीय समूह.
    दरवेश (Darvesh): सूफी परंपराओं से जुड़े या अन्य व्यवसाय.
  3. अरजाल (Arzal) – निम्न सामाजिक स्थिति वाली जातियां
    हलालखोर (Halalkhor): सफाई कार्य से जुड़े लोग
    लालबेगी (Lalbegi): सफाई या अन्य निम्न कार्य करने वाले.
    मेहतर (Mehtar): सफाई कर्मी.
    बखो (Bakho): कुछ क्षेत्रों में सफाई कार्य से जुड़े लोग.
    जैसा कि हिंदू समाज में सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित समाज है, लगभग उसी पैटर्न पर मुसलमानों में भी जातियां विभाजित हैं. समानता की बातें तो जरूर होती हैं, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि शादी-विवाह और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में जातियां मैटर करती हैं. मुस्लिम जाति जनगणना में अनेक प्रकार की विसंगतियां दूर होने की उम्मीद है।
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मुस्लिम जाति जनगणना से जुड़ी उम्मीदें
1931 के बाद भारत में जाति आधारित (मुस्लिम जाति जनगणना) कोई व्यापक जनगणना नहीं हुई है। अब मुस्लिम जाति जनगणना के जरिए यदि इन समुदायों की सही संख्या और स्थिति सामने आती है, तो सरकार ‘जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के सिद्धांत पर योजनाएं बना सकती है। डाॅ शाहनवाज कुरैशी का मानना है कि जब तक आंकड़ों के रूप में जातियों की सामाजिक स्थिति स्पष्ट नहीं होगी, तब तक समान अवसर और आरक्षण जैसी योजनाओं का न्यायसंगत वितरण संभव नहीं है। मौलाना तहजीब इसे ऐतिहासिक सुधार की दिशा में एक जरूरी कदम मानते हैं।

आरक्षण और विकास योजनाओं से जुड़ी संभावनाएं
वर्तमान में कुछ पिछड़े मुस्लिम समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत आरक्षण का लाभ मिलता है। इनमें गद्दी मुसलमान, मोमिन, कसाई, हलालखोर, भाट जैसे नाम प्रमुख हैं। लेकिन बिना व्यापक आंकड़ों के यह लाभ सीमित दायरे में सिमट जाता है। मुस्लिम जाति जनगणना से यह दायरा व्यापक हो सकता है। सरकारी योजनाओं की पहुंच तभी सुनिश्चित हो सकती है जब यह स्पष्ट हो कि किस जाति या समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है। अरजाल और अजलाफ समुदायों को लंबे समय से उपेक्षा झेलनी पड़ी है, अब उनके लिए एक समानता की ओर बढ़ने का मौका है।

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क्या केवल जनगणना से हल हो जाएगी समस्या?
यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या केवल मुस्लिम जाति जनगणना से सामाजिक भेदभाव समाप्त हो जाएगा? मौलाना तहजीब इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि नीयत और नीति के बीच की खाई को पाटना भी जरूरी है। आंकड़े तो दिशा दिखा सकते हैं, लेकिन जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होगी, तब तक बदलाव अधूरा रहेगा।

मुस्लिम समाज में नई सामाजिक समझ की शुरुआत
मुस्लिम जाति जनगणना केवल आंकड़ों की कवायद नहीं है, यह एक सामाजिक दस्तावेज है जो सदियों से दबी हुई असमानता को सामने लाने का माध्यम बन सकता है। यह उन समुदायों की आवाज बन सकता है, जिन्हें अब तक न तो पूरी पहचान मिली है, न ही बराबरी का हक।

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