Saturday, June 14, 2025
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ममता बनर्जी : राष्ट्रीय हितों पर नकारात्मक पक्ष

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रमुख ममता बनर्जी हमेशा से एक विवादास्पद व्यक्तित्व रही हैं। उनके निर्णय और नीतियाँ अक्सर राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में सवालों के घेरे में आती हैं, खासकर जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा और केंद्रीय पहलों में सहयोग की हो। पहलगाम हमले के बाद दुनिया भर में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का पोल खोलने के लिए भेजे जाने वाले सांसदों के सात प्रतिनिधिमंडल में नामित पार्टी के सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान को उन्होंने विदेश जाने से रोक दिया है। पढ़िए ममता बनर्जी के नकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालती जानकी शरण द्विवेदी की यह रिपोर्ट :

ऑपरेशन सिंदूर और ममता बनर्जी का रुख
22 अप्रैल 2025 को कश्मीर में हुए पहलगाम हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान की अकल ठिकाने लगा दी। इसके बाद कूटनीतिक रूप से दुनिया भर में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का पोल खोलने के लिए भारत के रुख को वैश्विक मंचों पर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दुनिया के विभिन्न देशों में भेजने का निर्णय लिया, ताकि वे सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत का मजबूत पक्ष रख सकें। इन सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों को शामिल किया गया था, जिसमें तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान भी थे।

हालांकि, ममता बनर्जी ने इस अभियान में भाग लेने से साफ इनकार कर दिया और यूसुफ पठान को भी इस विदेश दौरे पर जाने से रोक दिया। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का कहना था कि केंद्र सरकार ने सांसदों को चुनने से पहले पार्टी नेतृत्व से कोई परामर्श नहीं किया, जिसके चलते वे इस कदम से असहमत थे। इस निर्णय के पीछे उनका तर्क था कि यह एकतरफा फैसला था, और इसलिए उन्होंने इस राष्ट्रीय पहल का हिस्सा बनने से मना कर दिया। ममता बनर्जी का यह रुख न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सहयोग की कमी को दर्शाता है, बल्कि ममता बनर्जी की प्राथमिकताओं को भी उजागर करता है, जो अक्सर राष्ट्रीय हितों के बजाय राजनीतिक हितों को तरजीह देती हैं।

राष्ट्रीय हितों पर नकारात्मक प्रभाव

  1. राष्ट्रीय सुरक्षा का राजनीतिकरण
    सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का विदेश जाना एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा है, जिसका लक्ष्य पाकिस्तान के आतंकवाद को उजागर करना और वैश्विक समुदाय को भारत के पक्ष में एकजुट करना है। इस संदर्भ में, ममता बनर्जी का इस अभियान से दूरी बनाना राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर राजनीतिकरण का स्पष्ट उदाहरण है। ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर देश के हित में काम करना चाहिए, लेकिन ममता बनर्जी ने इसे अपनी पार्टी के राजनीतिक स्टैंड के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की। यह रवैया न केवल उनके तुष्टिकरण नीति को उजागर करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की एकजुटता और संकल्प को भी प्रभावित करता है। एक संघ के रूप में राष्ट्रहित पर जुड़े किसी मुद्दे पर ममता बनर्जी का यह रुख किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा है।
  2. केंद्र-राज्य संबंधों में बढ़ता तनाव
    ममता बनर्जी का यह निर्णय केंद्र-राज्य संबंधों में सहयोग की कमी को भी उजागर करता है। केंद्र सरकार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को गठित कर राष्ट्रीय एकता और सहयोग का संदेश देने की कोशिश की थी, लेकिन ममता बनर्जी ने इस पहल से इनकार कर दिया। उनका यह कदम केंद्र और राज्य के बीच पहले से मौजूद तनाव को और गहरा करता है। राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय आवश्यक है, लेकिन ममता बनर्जी का विरोधी रवैया इस समन्वय को नुकसान पहुँचाता है। इससे नीतिगत असंगतियाँ और प्रशासनिक अक्षमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो देश की सुरक्षा और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।
  3. अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर
    विदेश जा रहे प्रतिनिधिमंडलों का उद्देश्य वैश्विक समुदाय को भारत के पक्ष में लामबंद करना है। ममता बनर्जी का इस अभियान से दूरी बनाना भारत की एकता और संकल्प को कमजोर कर सकता है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को प्रभावित कर सकता है और पाकिस्तान जैसे देशों को भारत के खिलाफ प्रचार करने का मौका दे सकता है। एक प्रमुख राज्य की मुख्यमंत्री के रूप में, ममता बनर्जी का यह रुख वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को कमजोर करता है, जो राष्ट्रीय हितों के लिए नुकसानदायक है।
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  5. पार्टी के भीतर असंतोष की संभावना
    ममता बनर्जी के इस फैसले से तृणमूल कांग्रेस के भीतर भी असंतोष पैदा हो सकता है। यूसुफ पठान जैसे सांसद को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था। लेकिन ममता बनर्जी के निर्णय के कारण उन्हें इससे वंचित रहना पड़ रहा है। यह स्थिति पार्टी के भीतर असहमति और असंतोष को बढ़ावा दे सकती है, जो टीएमसी की एकता और स्थिरता के लिए हानिकारक हो सकती है। इससे पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं और आंतरिक कलह की संभावना बढ़ सकती है।
  6. पश्चिम बंगाल में सुरक्षा नीतियों पर सवाल
    ममता बनर्जी का यह निर्णय पश्चिम बंगाल में आतंकवाद और सुरक्षा के मुद्दों पर उनकी सरकार की नीतियों को भी उजागर करता है। राज्य में आतंकवादी गतिविधियों और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उनकी नीतियों पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। “ऑपरेशन सिंदूर“ से दूरी बनाकर ममता बनर्जी ने एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया है, जो राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं दिखतीं। यह राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को सामने लाता है और उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करता है।
  7. राजनीतिक अस्थिरता का जोखिम
    पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है, और ममता बनर्जी की इस तरह की नीतियाँ विपक्षी दलों को सरकार पर हमला करने का अवसर दे सकती हैं। यह राज्य में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है, जो विकास और प्रगति के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसके अलावा, केंद्र सरकार के साथ तनावपूर्ण संबंध राज्य के लिए केंद्रीय योजनाओं और वित्तीय सहायता को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ सकता है।

ममता बनर्जी की नीतियों का व्यापक प्रभाव
ममता बनर्जी का इस अभियान से दूरी बनाना केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह उनके शासन के दौरान केंद्र-राज्य संबंधों के प्रति उनके नकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। उनकी सरकार और केंद्र सरकार के बीच अक्सर टकराव देखा गया है, और यह निर्णय इस तनाव को और बढ़ाने वाला है। राष्ट्रीय हितों के लिए केंद्र और राज्य के बीच सहयोग बेहद जरूरी है, लेकिन ममता बनर्जी का रवैया इस सहयोग को कमजोर करता है।

इसके अलावा, यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उनकी समझ और प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाता है। ऐसे अभियान देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, और इसमें भाग लेने से इनकार करना उनकी प्राथमिकताओं को संदिग्ध बनाता है। यह राष्ट्रीय हितों को नजरअंदाज करने का संकेत देता है और उनकी नीतियों को संकीर्ण राजनीतिक दायरे में सीमित कर देता है। ममता बनर्जी का प्रतिनिधिमंडल में भाग लेने से इनकार और यूसुफ पठान को इस दौरे पर जाने से रोकना राष्ट्रीय हितों के लिए नकारात्मक है। प्रत्येक बुद्धिजीवी द्वारा इसकी आलोचना की जानी चाहिए क्योंकि उनकी नीतियाँ और निर्णय राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं हैं।

ममता बनर्जी के साथ पार्टी सांसद व क्रिकेटर यूसुफ पठान
ममता बनर्जी के साथ पार्टी सांसद व क्रिकेटर यूसुफ पठान

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