Saturday, June 14, 2025
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लक्कड़ शाह बाबा मेला पर भी लगा ग्रहण!

बहराइच के मुर्तिहा रेंज में प्रति वर्ष लगता था दरगाह लक्कड़ शाह बाबा मेला

जानकी शरण द्विवेदी

गोंडा (उप्र)। ऐतिहासिक दरगाह लक्कड़ शाह बाबा मेला इस वर्ष स्थगित कर दिया गया है। बहराइच जनपद में नेपाल सीमा से सटे मुर्तिहा रेंज के जंगलों में स्थित दरगाह पर यह पारंपरिक मेला हर वर्ष लगता था। वन विभाग की सख्ती और प्रशासनिक निर्देशों के कारण इस सदियों पुरानी परंपरा पर पहली बार विराम लगा है। मेला रद्द होने से इलाके के श्रद्धालुओं, स्थानीय दुकानदारों और धार्मिक भावनाओं से जुड़े लोगों में गहरी निराशा है। हर वर्ष जेठ माह में सैकड़ों श्रद्धालु उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल और तराई क्षेत्र से जंगलों के रास्ते लक्कड़ शाह बाबा की दरगाह तक पहुंचते थे। इस बार जब श्रद्धालु दरगाह पहुंचे तो उन्हें जगह-जगह बनाए गए बैरियर पर रोक दिया गया।

वन विभाग का आदेश और प्रशासनिक तर्क
मुर्तिहा रेंज के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में लक्कड़ शाह बाबा दरगाह के चारों ओर घना जंगल है, जो वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास है। वन विभाग के रेंजर रत्नेश यादव ने बताया कि दरगाह तक वाहनों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है। उनका कहना है कि इस प्रतिबंध का उद्देश्य पर्यावरण और वन्यजीव सुरक्षा को प्राथमिकता देना है। हालांकि श्रद्धालुओं को पैदल चलकर दरगाह तक जाने की सीमित अनुमति दी गई है, लेकिन मेला जैसे बड़े आयोजन को अनुमति नहीं दी गई। प्रशासन का तर्क है कि लक्कड़ शाह बाबा मेला स्थल पर कोई स्थायी संरचना नहीं है, जल स्रोत की व्यवस्था नहीं है, और जंगल में भीड़ नियंत्रण असंभव है। इसके अलावा, मेले में आने वाले अधिकांश लोग बिना किसी पूर्व सूचना के आते हैं जिससे सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर खतरा बढ़ता है।

श्रद्धालुओं का गुस्सा और भावनात्मक प्रतिक्रिया
स्थानीय निवासी और श्रद्धालु इस निर्णय से खासे आहत हैं। लखीमपुर खीरी जिले के गजियापुर गांव से अपने बेटे का मुंडन कराने आए संजय पासवान निशानगाड़ा वन बैरियर पर रोके गए। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा-‘लक्कड़ शाह बाबा के दरबार में आना हमारी परंपरा है, आस्था है। हमें जंगल के रास्ते भी आने दिया जाता था, लेकिन इस बार हमें जबरन रोक दिया गया।’ ऐसी ही नाराजगी गोंडा, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती और नेपालगंज से आए कई श्रद्धालुओं में देखी गई। कई श्रद्धालु लक्कड़ शाह बाबा दरगाह से 2-3 किलोमीटर दूर ही बैठ गए और बाबा की जय-जयकार करते हुए मेला बहाल करने की मांग करने लगे।

स्थानीय व्यापार पर असरः आर्थिक नुकसान
लक्कड़ शाह बाबा मेले के आयोजन से स्थानीय ग्रामीणों और दुकानदारों को साल में एक बार आय का बड़ा स्रोत मिलता था। मेला स्थल के आसपास छोटे-छोटे दुकानें लगती थीं गुड़, जलेबी, मिट्टी के खिलौने, पूजा सामग्री और देसी खाद्य पदार्थों की बिक्री से कई ग्रामीणों को रोज़गार मिलता था। स्थगन के कारण इन सभी दुकानदारों को बड़ा आर्थिक झटका लगा है। बहराइच जिले के कैसरगंज क्षेत्र से आए रामअवतार कहते हैं, ‘हम पूरे साल इसी मेले में कमाई के लिए तैयारी करते हैं। अब घर चलाना मुश्किल हो जाएगा।’

लक्कड़ शाह बाबा मेला सुरक्षा के चलते रद्द
वन विभाग के बैरियर पर रोका जा रहा मेले में जा रहा वाहन

इतिहास और मान्यताः गुरु नानक से जुड़ा प्रसंग
लक्कड़ शाह बाबा की दरगाह को लेकर कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि 16वीं शताब्दी में एक सूफी फकीर, सैयद शाह हुसैन, जंगल में आकर फूस की झोपड़ी बनाकर तपस्या करने लगे थे। उनका शरीर इतना कठोर हो गया कि वे लकड़ी जैसे दिखाई देने लगे, इसलिए उन्हें ’लक्कड़ फकीर’ कहा जाने लगा। एक कथा के अनुसार गुरु नानक देव भी यहां आए थे। उन्होंने संत की तपस्या देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया था और कहा था-‘तू लक्कड़ सा हो गया है, लोग तुझे अब लक्कड़ शाह कहेंगे।’ इसी स्थल पर एक गुरुद्वारा ‘गुरुमल टेकरी’ भी है, जहां सिख श्रद्धालु हर साल मत्था टेकने आते हैं। यह स्थान हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदायों के लिए श्रद्धा का केन्द्र है।

सामाजिक समरसता का प्रतीक रहा है लक्कड़ शाह बाबा मेला
लक्कड़ शाह बाबा मेला न केवल धार्मिक आस्था बल्कि सामाजिक समरसता का प्रतीक भी रहा है। इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य समुदायों के लोग एक साथ शामिल होकर श्रद्धा प्रकट करते हैं। सांस्कृतिक विविधता और सौहार्द का यह उदाहरण अब संकट में है। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि अंग्रेज़ी शासनकाल में भी यह मेला नहीं रुका था, लेकिन अब जब शासन-प्रशासन स्वयं रोक लगा रहा है, तो यह परंपरा के प्रति गंभीर चिंता का विषय है।

जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
इस निर्णय पर जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी प्रतिक्रियाएं आई हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज आलम का कहना है ‘पर्यावरण और सुरक्षा का हवाला देकर अगर हर परंपरा को खत्म किया जाएगा तो धीरे-धीरे हमारी पहचान ही मिट जाएगी।’ वहीं कुछ अन्य संगठनों ने सुझाव दिया कि मेला को नियंत्रित रूप में सीमित संख्या में लोगों के साथ, पूर्व अनुमति प्रक्रिया और दिशा-निर्देशों के साथ आयोजित किया जा सकता है। प्रशासन की कठोरता के स्थान पर लचीली योजना होनी चाहिए थी।

परंपरा बनाम व्यवस्था का टकराव
लक्कड़ शाह बाबा मेला का स्थगन एक ऐसा निर्णय है, जिसमें व्यवस्था और आस्था आमने-सामने हैं। वन विभाग का निर्णय पर्यावरण और सुरक्षा के लिए आवश्यक हो सकता है, लेकिन इसे लागू करने के तरीकों में पारदर्शिता और संवाद की कमी रही। श्रद्धालुओं को अचानक रोक देना, बिना वैकल्पिक योजना के परंपरा को विराम देना यह प्रशासन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
आने वाले वर्षों में यदि ऐसे आयोजन प्रतिबंधित किए जाते रहेंगे तो इससे न केवल परंपराओं का क्षरण होगा, बल्कि लोगों का शासन में विश्वास भी डगमगा सकता है। जरूरत है कि प्रशासन, वन विभाग और धार्मिक संगठनों के बीच समन्वय स्थापित कर एक सुरक्षित, नियंत्रित और सम्मानजनक व्यवस्था बनाई जाए, ताकि परंपरा और सुरक्षा दोनों का संरक्षण हो सके।

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