पाकिस्तान में अस्तित्व की जंग लड़ रहे कलश जनजाति : रहस्यमयी संस्कृति का चौंकाने वाला सच
इंटरनेशनल डेस्क
चित्राल (पाकिस्तान)। कलश जनजाति पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित हिंदूकुश पर्वत की गहराइयों में एक ऐसी जनजाति आज भी जीवित है, जिसे पाकिस्तान का ’अंतिम काफिर’ कहा जाता है। कलश जनजाति की नीली आंखों वाली महिलाएं विश्व की सबसे सुंदर और स्वतंत्र मानी जाती हैं। लेकिन आज यह अल्पसंख्यक समुदाय अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
इंडो-आर्यन संस्कृति की जीवित विरासत है कलश जनजाति
कलश जनजाति की पहचान उसकी बहुदेववादी संस्कृति से होती है। वे महादेव, इंद्र, अग्नि, ग्राम देवता, तालाब और नदियों तक की पूजा करते हैं। इनकी पूजा पद्धति प्राचीन वैदिक आर्यों जैसी मानी जाती है। कलश जनजाति के लोगों को आखिरी ऐसे समुदाय के रूप में देखा जाता है, जो इस्लामिक प्रभुत्व वाले पाकिस्तान में अब तक अपनी वैदिक परंपराओं के साथ जी रहा है।

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कलश जनजातिः हजारों वर्षों से चले आ रहे ऐतिहासिक वंशज
इतिहासकारों की मानें तो कलश जनजाति का संबंध वैदिक भारत से है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर माइकल विट्जल के अनुसार यह समुदाय प्राचीन वैदिक परंपराओं का पालन करता रहा है। हालांकि कुछ विद्वान इन्हें सिकंदर महान की सेना का वंशज भी मानते हैं। दोनों ही मत इस जनजाति के अद्वितीय ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हैं।
पर्वतों में सीमित रह गई है कलश जनजाति की आत्मा
एक समय था जब कलश जनजाति की आबादी लाखों में थी। वे चित्राल क्षेत्र के शासक हुआ करते थे। लेकिन विदेशी आक्रमणों और जबरन धर्मांतरण की लहरों के चलते इनकी संख्या घटकर अब मात्र 4000 के करीब रह गई है। हिंदू कुश पर्वत, जिसे कभी भारत के लिए प्राकृतिक द्वार कहा जाता था, वहीं आज कलश जनजाति धर्मांतरण के दबाव में जी रही है।
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कलश महिलाओं पर धर्मांतरण का दबाव, संस्कृति पर संकट
कलश जनजाति की महिलाएं स्वतंत्र और सशक्त रही हैं। लेकिन पाकिस्तान में प्रचलित कठोर इस्लामिक माहौल में अब इन पर भी जबरन धर्मांतरण का खतरा मंडरा रहा है। कई रिपोर्टों के अनुसार कलश लड़कियों का जबरन निकाह करवा कर उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा है, जबकि कलश समाज में यह परंपरा निषिद्ध है। इससे इनकी सांस्कृतिक विरासत को गहरी चोट पहुंच रही है।
यूनेस्को ने भी माना अनमोल, पर संरक्षण अधूरा
कलश जनजाति की सांस्कृतिक और मानवशास्त्रीय महत्ता को देखते हुए यूनेस्को ने इन्हें संरक्षित करने की पहल की है। हालांकि अभी तक न तो पाकिस्तानी सरकार ने कोई प्रभावी कदम उठाए हैं, न ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सक्रिय समर्थन दिया है। प्रकृति और परंपरा से जुड़ी कलश जनजाति का संघर्ष अभी जारी है। कलश जनजाति की अनूठी संस्कृति प्रकृति से जुड़ी है।
यहां के लोग पशुबलि, अग्नि पूजा, मौखिक परंपरा और तीज-त्योहारों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। लेकिन तेजी से बदलते पाकिस्तान में उनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। धर्मांतरण का दबाव, सांस्कृतिक दमन और सरकारी उपेक्षा से जूझती यह जनजाति एक बार फिर मानवता और विविधता की रक्षा की पुकार कर रही है।

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