Saturday, June 14, 2025
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ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त में गूंजा शायरी का जादू

असगर गोंडवी फाउंडेशन की पहल से ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त का आयोजन

कल्बे आबिद ‘मोजिस’

गोंडा (उप्र)। ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त का 26वां आयोजन असगर गोंडवी फाउंडेशन के बैनर तले गोंडा के आई एम टावर, फैज़ाबाद रोड पर सफलता के साथ संपन्न हुआ। इस ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त में शायरी की गूंज, हुस्न-ए-तक़रीर और अदब की गर्मजोशी ने तमाम श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर नज़ीर गोंडवी ने की और संचालन का जिम्मा हास्य व्यंग्य के चर्चित कवि शौहर गोंडवी ने निभाया। नशिस्त के संरक्षक नजमी कमाल, मुख्य अतिथि अकील सिद्दीकी (मीडिया हेड, स्वराज एक्सप्रेस लखनऊ) और विशिष्ट अतिथि समाजसेवक ताबिश खान ज़ैद थे।

ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त की शुरुआत मुहम्मद नूरैन मीनाई और आमिल गोंडवी की नात-ए-पाक से हुई। इसके बाद एक के बाद एक शायरों ने दिल को छू लेने वाले कलाम प्रस्तुत किए।

नज़ीर गोंडवी ने कहा –
समंदर खुद ही प्यासा हो रहा है। बुझाए क्या हमारी तिश्नगी को।

जमील आज़मी ने फसानों की गहराई को यूं बयां किया –
वक्त मिल रहा सुनाने को। तूल देता रहा फ़साने को।

मुजीब सिद्दीकी ने फख्र ए हिंदुस्तान पर अपनी बात रखी –
हमीद, अशफाक और ब्रिगेडियर उस्मान होते हैं। यह हम हैं जो हमेशा फख्र ए हिंदुस्तान होते हैं।

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डॉ. असलम हाशमी की आवाज़ में दर्द था –
शेअर कहने की तमन्ना तो बहुत है दिल में। क्या करूं अपना जब अंदाज़े सुखन ज़ख्मी है।

उवैसुल क़ादरी ने शांति का संदेश दिया –
जो नफरत मुल्क में फैला रहे हैं उसको वह जानें। मेरे नज़दीक तो बस अमन का पैग़ाम बेहतर है।

अज़्म गोंडवी की पंक्तियाँ सामयिक थीं –
उसी के हाथ में पत्थर है आज नफरत का। कि जिसने पेश किया था मुझे गुलाब इक दिन।

नजमी गोंडवी ने रिश्तों की पीड़ा उकेरी –
रिश्ते नाते सब छूटे। जिस दिन से हो तुम रूठे।

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अफसर गोंडवी ने तीरे नज़र का बोझ दर्शाया –
घटता नहीं कभी मेरे दर्द ए जिगर का बोझ। मजरूह करता रहता है तीरे नज़र का बोझ।

आमिल गोंडवी की रचना सूफियाना अंदाज़ में थी –
अकीदत से जो रगड़ो एड़ियां तुम। तुम्हें सेहराओं में ज़म ज़म मिलेगा।

अभिषेक गोंडवी ने मलाल को शब्द दिए –
कितना मलाल होता है इस दिल से पूछिए। मुंह फेर ले जब अपना कोई बेरुख़ी के साथ।

कौसर सलमानी ने वाहवाही के नशे को यथार्थ में ढाला –
यह शायरी मेरे जब से दिले तबाह में है। दो बोतलों का नशा सिर्फ वाह वाह में है।

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अलहाज गोंडवी की शायरी में इश्क का तड़प था –
कुछ नहीं मुझको अब बाखुदा याद है। बस तेरी क़ातिलाना अदा याद है।

इस ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त में कई अन्य शायरों ने भी समां बांधा। सूफी शब्बीर अहमद, रशीद अहमद माचिस, शौहर गोंडवी, अफसर हुसैन, यासीन राजू, मुशीर मयकश, गुड्डू गोंडवी, जमशेद वारसी और अंजुम वारसी ने मंच को बेमिसाल रंग दिया।

ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त में जिन गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही, उनमें शबाहत हुसैन, जुनैद मीनाई, अशोक पाण्डेय, एज़ाज़, डॉ अज़हर खान, दिलीप मिश्रा, मोहम्मद अख़्तर, मेराजुद्दीन बुखारी, नवीन श्रीवास्तव, समीर खान, जन्मेजय वर्मा प्रमुख थे।

असगर गोंडवी फाउंडेशन की यह ग़ैर तरही शेअरी नशिस्त न सिर्फ साहित्यिक समर्पण का प्रतीक बनी, बल्कि इसने शायरी की ताक़त को नए अर्थ दिए। कठिन दौर में भी गोंडा जैसे शहर में ऐसी अदबी रौनक उम्मीदें जगाती है।

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