भाजपा जिलाध्यक्षों की घोषणा को लेकर कार्यकर्ताओं में असमंजस

UP : भाजपा जिलाध्यक्षों की अधूरी सूची से बढ़ी बेचैनी

भाजपा जिलाध्यक्षों की नई सूची से पहले संगठनात्मक समीकरणों की सघन पड़ताल

भाजपा जिलाध्यक्षों के चयन में पिछड़े वर्ग का वर्चस्व संभव, दिल्ली की रणनीति प्रभावी

प्रादेशिक डेस्क

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संगठनात्मक ढांचे को पूर्णता की ओर ले जाने की कवायद अब निर्णायक दौर में पहुंच गई है। राज्य के 98 संगठनात्मक जिलों में से 70 जिलाध्यक्षों की घोषणा हो चुकी है, लेकिन भाजपा जिलाध्यक्षों की घोषणा अभी 28 जिलों में बाकी है, जिससे पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच असमंजस और बेचैनी का माहौल देखा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने इन बचे हुए जिलों को लेकर अपनी प्रक्रिया तेज कर दी है और आधे दर्जन से अधिक जिलों के संभावित नामों को दिल्ली भेज दिया गया है। बाकी जिलों के लिए भी चर्चाएं अंतिम चरण में हैं और दिल्ली से हरी झंडी मिलने के बाद जल्द ही उनकी घोषणा कर दी जाएगी।

जल्द हो सकती है भाजपा जिलाध्यक्षों की घोषणा
वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा को नए जिलाध्यक्षों की आवश्यकता सिर्फ चुनावी तैयारी या सांगठनिक विस्तार के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए भी है। जिन जिलों में अब तक घोषणा नहीं हो पाई है, वहां की स्थिति राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद जटिल मानी जा रही है। मेरठ, अलीगढ़, हापुड़, लखीमपुर खीरी और देवरिया जैसे जिलों में या तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों के बीच आपसी खींचतान है या फिर जातीय समीकरणों के चलते निर्णय लेना टलता रहा है। पार्टी अब इन अटके जिलों में निर्णय लेने की ओर बढ़ रही है, ताकि प्रदेश स्तर पर संगठन की पूरी तस्वीर स्पष्ट हो सके।

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भाजपा जिलाध्यक्षों की नई सूची पर मंथन
सूत्रों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जिलाध्यक्षों की घोषणा को लेकर किसी तरह की देरी अब स्वीकार नहीं की जाएगी। राष्ट्रीय नेतृत्व का निर्देश है कि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कराने के लिए पहले सभी जिलों में चुनाव प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए। हालांकि यह माना जा रहा था कि बचे जिलों के अध्यक्षों की घोषणा नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम तय होने के बाद होगी, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने अब इसे उलटते हुए कहा है कि पहले जिलाध्यक्षों की घोषणा हो, जिससे पार्टी के निचले ढांचे को मजबूती मिले और राज्य इकाई की चुनाव प्रक्रिया जल्दी पूरी हो सके।

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पिछड़े वर्ग को वरीयता मिलने की संभावना
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा अब एक बार फिर सामाजिक संतुलन के फार्मूले पर काम कर रही है। खास तौर पर आगामी लोकसभा चुनाव 2024 की दृष्टि से पार्टी पिछड़े वर्गों और सामाजिक तौर पर उपेक्षित समूहों को जिलाध्यक्ष जैसे पदों पर अधिक प्रतिनिधित्व देना चाहती है। अगले सप्ताह तक नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा भी संभव मानी जा रही है, हालांकि अभी तक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की तारीखों पर अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है। 17-18 अप्रैल को बैंगलोर में कार्यकारिणी बैठक होने की चर्चा जरूर थी, पर अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा की जा रही है। उधर पार्टी के अंदरूनी सूत्र यह भी संकेत दे रहे हैं कि नए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पिछड़े वर्ग से आने वाले किसी वरिष्ठ नेता को मौका दिया जा सकता है, जिससे पार्टी अपनी सामाजिक इंजीनियरिंग को और धार दे सके।

संगठन को मजबूती देने की तैयारी
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति स्पष्ट है कि पहले संगठन के निचले स्तर को मजबूत किया जाए, फिर शीर्ष नेतृत्व की घोषणा की जाए। यही कारण है कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी जा रही है। पार्टी चाहती है कि लोकसभा चुनावों से पहले प्रत्येक जिले में एक प्रभावशाली और कार्यकर्ता आधारित नेतृत्व तैयार हो, जो जमीन पर कार्य कर सके। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इन बचे हुए 28 जिलों के अध्यक्षों की घोषणा अब सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है। पार्टी के भीतर मंथन पूरा हो चुका है और दिल्ली से अंतिम स्वीकृति मिलते ही यह सूची सार्वजनिक कर दी जाएगी।

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