Thursday, July 10, 2025
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बैरगिया नाला जुलुम जोर, तहं साधु वेश में रहत चोर…

हेमंत शर्मा

मित्रवर शंभूनाथ शुक्ल जी की एक पोस्ट में बैरगिया नाले का ज़िक्र आया। तो बचपन याद आ गया। इस लम्बी कविता की दो-दो लाइनें हम अलग-अलग सन्दर्भो में सुनते रहे हैं। ‘बैरगिया नाला जुलुम जोर, तहं साधु वेश में रहत चोर।’ या ‘जब तबला बजे धीन-धीन, तब एक-एक पर तीन-तीन।’ बैरगिया नाला की कहानी बेहद रोचक है। यह बात उस समय की है जब यात्रा बहुत कठिन हुआ करती थी। लोग़ अक्सर पैदल या बैलगाड़ी से यात्रा करते थे। तब बैलगाड़ी भी वैभव का हिस्सा होती थी। आम लोग़ खाने पीने का सामान लेकर पैदल ही यात्रा करते थे। इलाहाबाद और बनारस दो ऐसी जगहें थीं, जहाँ तीर्थ यात्री बहुत आते थे। बैरगिया नाला इलाहाबाद से कोई 35 किमी दूर वाराणसी की तरफ रामनाथपुर और सैदाबाद के बीच आज भी जीटी रोड पर मौजूद है। हमारे मित्र और पूर्व मंत्री राकेशधर त्रिपाठी इसी नाले के पास के पास के रहने वाले हैं और यहीं से विधायक भी चुने जाते रहे। इस नाले को पार किये बिना तब इलाहाबाद के लोग़ बनारस नहीं जा सकते थे, न ही बनारस के लोग़ इलाहाबाद जा सकते थे। यहीं पिण्डारी गिरोह सक्रिय थे। जो आने जाने वालों को लूटते थे। आज की तरह तब भी लूटने वाले ज्यादातर वैरागियों के भेष में रहते थे। इसलिए नाले का नाम बैरगिया पड़ा।

कथक सम्राट बिरजू महाराज के पूर्वज ईश्वरी प्रसाद यहीं हंडिया तहसील के किसकिला गांव के रहने वाले थे। उन्होने कत्थक पर नटवरी पुस्तक भी लिखी थी और उन्हें लखनऊ घराने के नर्तकों को पैदा करने का गौरव प्राप्त है। इलाक़ा कत्थक का केन्द्र था। इसलिए कत्थक की डॉंस पार्टी यहॉं से आया ज़ाया करती थी। एक बार रात में कत्थक डांस पॉर्टी के नौ सदस्य नाले के पास से गुजर रहे थे। पिण्डारी गिरोह ने उन्हें लूट के इरादे से पकड़ लिया। और उन्हें बंधक बना नृत्य का मज़ा लेना शुरू किया। फिर मरता क्या न करता, उन लोगों ने बेमन भी नाचना गाना जारी रखा, किन्तु लुटेरों के चंगुल से मुक्त कैसे हों, मन ही मन यह छटपटाहट और मंथन भी जारी था। नाचते-नाचते नर्तकों को आत्मग्लानि हुई। कि ‘नव पथिक नचावें तीन चोर।’ तब उनमें से एक ने संकेत दिया कि ‘जब तबला बाजे धीन-धीन, तब एक-एक पर तीन-तीन।’ और तभी नौ नर्तकों ने तीनों लुटेरे की पिटाई शुरू की। और वे मुक्त हुए। 1911 में जब जार्ज पंचम भारत आए, तो यह कविता उनकी प्रशस्ति में लिखी गयी। आप भी इस इतिहास के इतिहास को जानते हुए अब पूरी कविता का आनंद ले :

बैरगिया नाला जुलुम जोर।
तहं साधु भेष में रहत चोर।
वैरगिया से कछु दूर जाय।
एक ठग बैठा धुनी रमाय।
कछु रहत दुष्ट नाले के पास।
कछु किए रहत नाले में वास।
सो साधु रूप हरिनाम लेत।
निज साथिन को संकेत देत।
जब जानत एहिकै पास दाम।
तब दामोदर को लेत नाम।
जब बोलत एक ठग वासुदेव।
तेहिं बांस मार सब छीन लेव।
लगि जात पथिक नाले की राह।
पहिलो ठग बैठेहिं डगर माह।
सबु देहु बटोरी धन थमाय।
नहिं तो होइ जाई बुरा हाल।
हम मालिक तुमसे कहें सांच।
है काम हमारो गान नाच।
नाचै गावै का कार बार।
तबला तम्बूरा धन हमार।
ठग बोले नाचौ गावौ गान।
हम खुशी होवै तब देहि जान।
चट नाच गान तहं होन लाग।
ठग भए मस्त सुन मधुर राग।
एक चतुर पथिक मन भए सोच।
हम नवजन हैं ये तीन चोर।
बैरगिया नाला जुलुम जोर।
नव पथिक नचावत तीन चोर।
अस सोचत मन उपजी गलानि।
तब लागे गावै समय जानि।
जब तबला बाजे धीन-धीन।
तब एक-एक पर तीन-तीन।
दीनी सबकी ठगही भुलाय।
सुख सोवै अपने गांव जाय।
आज जार्ज पंचम सुराज।
नहिं ठग चोरन को रह्यो राज।
छंटि गए दुष्ट हटि गए चोर।
पटगा बैरगिया अजब शोर।।

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