अपना दल बगावत में अनुप्रिया पटेल के खिलाफ नेताओं का इस्तीफा

अपना दल में बगावत, अनुप्रिया पटेल की मुश्किलें बढ़ीं

पार्टी के कई बड़े नेताओं ने दिया सामूहिक इस्तीफा, लगाए गंभीर आरोप

नेतृत्व पर अपना दल के कई नेताओं ने लगाया कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप

प्रादेशिक डेस्क

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल देखने को मिल रही है। अपना दल (एस), जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी पार्टी है, में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के खिलाफ बगावत के सुर तेज हो गए हैं। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं, जिनमें प्रदेश अध्यक्ष और सचिव शामिल हैं, ने सामूहिक रूप से अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। इस घटनाक्रम ने न केवल अपना दल (एस) की आंतरिक एकता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत में नए समीकरणों को भी जन्म दिया है। इस लेख में हम इस बगावत के कारणों, इसके प्रभाव और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

अनुप्रिया पटेल पर उपेक्षा का आरोप
अपना दल में बगावत की शुरुआत तब हुई, जब पार्टी के कई नेताओं ने अनुप्रिया पटेल और उनके पति आशीष पटेल पर संगठन में उपेक्षा और एकतरफा निर्णय लेने का आरोप लगाया। सूत्रों के अनुसार, इस्तीफा देने वाले नेताओं का कहना है कि अनुप्रिया ने पार्टी के संस्थापक सोनेलाल पटेल और बाबा साहेब आंबेडकर की विचारधारा को दरकिनार कर दिया है। नेताओं का आरोप है कि उनकी आवाज को सुना नहीं जा रहा और संगठन में उनकी भागीदारी को नजरअंदाज किया जा रहा है।

प्रदेश अध्यक्ष और सचिव सहित कई नेताओं ने अपने इस्तीफे में यह स्पष्ट किया कि वे पार्टी के इस रवैये से आहत हैं। एक नेता ने कहा, पार्टी अब केवल कुछ लोगों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है। कार्यकर्ताओं की मेहनत और समर्पण को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा। यह बयान पार्टी में बढ़ते असंतोष को दर्शाता है।

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नेताओं का इस्तीफाः कौन-कौन शामिल?
अपना दल बगावत ने पार्टी की संरचना को गहरे तक प्रभावित किया है। इस्तीफा देने वालों में कई प्रमुख चेहरे शामिल हैंः
प्रदेश अध्यक्षः संगठन के शीर्ष नेतृत्व में से एक, जिन्होंने पार्टी की नीतियों से असहमति जताई।
प्रदेश सचिवः जो लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे थे।
अन्य वरिष्ठ नेताः जिनमें जिला स्तर के कई पदाधिकारी शामिल हैं।

इन नेताओं का कहना है कि वे पार्टी छोड़ने को मजबूर हुए, क्योंकि उनकी बातों को अनसुना किया गया। कुछ नेताओं ने यह भी संकेत दिया कि वे जल्द ही अन्य राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन या नई रणनीति पर विचार कर सकते हैं। यह स्थिति अनुप्रिया पटेल के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि अपना दल (एस) का आधार मुख्य रूप से कुर्मी समुदाय और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बीच है, जो उत्तर प्रदेश की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल पर बढ़ता दबाव
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और उनके पति आशीष पटेल, जो उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, इस बगावत के केंद्र में हैं। नेताओं का आरोप है कि दोनों ने पार्टी को अपने नियंत्रण में रखने के लिए संगठनात्मक ढांचे को कमजोर किया है। हाल ही में, आशीष पटेल पर उनकी बहन और अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे।

पल्लवी ने तकनीकी शिक्षा विभाग में नियुक्तियों में अनियमितता का दावा किया, जिसके बाद आशीष ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। अनुप्रिया ने इन आरोपों को साजिश करार देते हुए कहा, किसी भी कार्यकर्ता के खिलाफ साजिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हम इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। लेकिन पार्टी के भीतर बढ़ता असंतोष और नेताओं का सामूहिक इस्तीफा उनके लिए चुनौती बन गया है।

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अपना दल (एस) में विद्रोह की लहर
आशीष पटेल

अपना दल में पहले भी रही है कलह
अपना दल बगावत कोई नई घटना नहीं है। पार्टी के इतिहास में पहले भी कई बार आंतरिक कलह सामने आई है। 2014 में अनुप्रिया पटेल को उनकी माँ कृष्णा पटेल ने राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया था। उस समय कृष्णा ने अनुप्रिया पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाया था। इसके अलावा, अनुप्रिया और उनकी बहन पल्लवी पटेल के बीच भी लंबे समय से विवाद चल रहा है।

पल्लवी, जो अपना दल (कमेरावादी) की नेता हैं, ने अपनी माँ के साथ मिलकर अनुप्रिया के खिलाफ कई बार मोर्चा खोला है। सोनेलाल पटेल की विरासत को लेकर यह पारिवारिक और राजनीतिक विवाद समय-समय पर सुर्खियों में रहा है। अनुप्रिया ने अपने पिता की विचारधारा को आगे बढ़ाने का दावा किया है, लेकिन उनकी माँ और बहन का कहना है कि अनुप्रिया ने पार्टी को निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया। यह ताजा बगावत उसी पुराने विवाद की एक कड़ी मानी जा रही है।

उत्तर प्रदेश में बनेंगे नए समीकरण
अपना दल बगावत का असर उत्तर प्रदेश की सियासत पर पड़ना तय है। अपना दल (एस) भाजपा की महत्वपूर्ण सहयोगी रही है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज सीटें जीती थीं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी उसने भाजपा के साथ गठबंधन में 12 सीटें हासिल की थीं। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा, जब उसने दो में से एक सीट गँवा दी।

इस बगावत से भाजपा और एनडीए के लिए भी चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं। कुर्मी समुदाय, जो उत्तर प्रदेश की लगभग 9 फीसदी आबादी का हिस्सा है, कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। यदि अपना दल (एस) का आधार कमजोर होता है, तो इसका सीधा असर भाजपा के वोट बैंक पर पड़ सकता है। इसके अलावा, इस्तीफा देने वाले नेता यदि समाजवादी पार्टी (सपा) या अन्य विपक्षी दलों के साथ जुड़ते हैं, तो यह अनुप्रिया और भाजपा के लिए और बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है।

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क्या होगा अगला कदम?
अपना दल बगावत ने अनुप्रिया पटेल के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या वे पार्टी में एकता बहाल कर पाएँगी? या यह बगावत और गहराएगी? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अनुप्रिया को संगठन में सुधार और कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। दूसरी ओर, इस्तीफा देने वाले नेताओं के अगले कदम पर भी नजर रहेगी। क्या वे नई पार्टी बनाएँगे या किसी अन्य दल के साथ जाएँगे? पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, यह समय अनुप्रिया के लिए आत्ममंथन का है। यदि वे कार्यकर्ताओं की भावनाओं को नहीं समझेंगी, तो पार्टी का आधार और कमजोर हो सकता है।

अनुप्रिया के लिए चुनौतीपूर्ण समय
अपना दल बगावत ने उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नया मोड़ ला दिया है। अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण है। नेताओं का सामूहिक इस्तीफा और पार्टी में बढ़ता असंतोष उनके नेतृत्व पर सवाल उठा रहा है। दूसरी ओर, यह बगावत उत्तर प्रदेश की राजनीति में नए समीकरण बना सकती है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस घटनाक्रम पर नजर रखें, क्योंकि आने वाले दिन अपना दल (एस) और उत्तर प्रदेश की सियासत के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

अपना दल बगावत में अनुप्रिया पटेल के खिलाफ नेताओं का इस्तीफा
अपना दल बगावत: अनुप्रिया पटेल के सामने नेतृत्व की चुनौती

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