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वक्फ से जुड़ा भ्रम टूटा नहीं!

वक्फ संपत्ति विवाद क्या है और इसका इतिहास

भारत में वक्फ संपत्ति विवाद क्यों बढ़ रहा है?

वक्फ संपत्ति विवाद से जुड़ी कानूनी चुनौतियाँ

के. विक्रम राव

वक्फ संपत्ति विवाद भारत में लंबे समय से चर्चा का विषय बना हुआ है। वक्फ संपत्तियों को लेकर कई तरह के कानूनी और सामाजिक मुद्दे सामने आते रहे हैं। उर्दू शब्दकोश के अनुसार वक्फ़ का अर्थ है अल्लाह को समर्पित संपत्ति। हालांकि भारत में वक्फ़ के तहत भूमि अधिकतर छिपे तरीके से निजी हित में कब्जियाकर इस्तेमाल होती रही। यह गंभीर पहलू कल के (02 अप्रैल 2025) संसदीय बहस में सुनाई नहीं दिया। बात 1955 की है, जब हैदराबाद सरकार ने पहला वक्फ़ बोर्ड गठित किया था, तभी एक साल बीते थे नेहरू सरकार को केंद्रीय वक्फ़ अधिनियम लागू किये। मगर महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने औरंगाबाद मंडलायुक्त का प्रशासक नियुक्त कर इस पहले वक्फ़ बोर्ड को भंग कर दिया था।

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वक्फ की अवधारणा इस्लाम के प्रारंभिक दौर में शुरू हुई। इसे धार्मिक और सामाजिक प्रयोजनों के लिए संपत्तियों को समर्पित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया। समय के साथ, वक्फ संस्थाएं बनीं, जिनका उद्देश्य समुदाय की भलाई को बढ़ावा देना तथा वक्फ सम्पत्ति विवाद होने की दशा में उनका निपटारा करना था। एक कहानी और प्रचलित है कि एक बार खलीफा उमर ने खैबर में एक जमीन खरीदी। उन्होंने पैगंबर मोहम्मद से पूछा कि इस जमीन का सबसे अच्छा उपयोग कैसे किया जा सकता है। पैगंबर ने उन्हें सलाह दी कि इस जमीन को रोक लेना चाहिए। इसे बेचने, उपहार में देने या विरासत में देने के बजाय, इसके फायदे को लोगों की जरूरतों पर खर्च करना चाहिए। इस तरीके से उस जमीन को ’वक्फ’ कर दिया गया, जिसका मतलब है कि उस जमीन से होने वाले लाभ सभी लोगों के लिए उपयोगी होंगे।

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कुछ इतिहास का संदर्भ देखें। वक्फ की संपत्ति की शुरुआत दो गांवों के दान से हुई थी, जो हमलावर मोहम्मद गोरी से जुड़ी हुई है। बारहवीं शताब्दी के अंत में जब मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया, तो उसने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए मुसलमानों की शिक्षा और इबादत के लिए कदम उठाए। उसने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गांव दान किए और इसे भारत में वक्फ का एक शुरुआती उदाहरण माना जाता है। मगर कालांतर में हिंदुओं की संपत्ति भी जबरन वक्फ़ के कब्जे में जाती रही! धीरे-धीरे वक्फ सम्पत्ति विवाद की शुरुआत यहीं से हो गई। गनीमत है कि मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद द्वारा कब्जियाई संपत्ति वक्फ़ नहीं बन पाई।

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इसी परिवेश में जानना जरूरी है कि भारत का नया संसद भवन यदि कांग्रेस शासन लौटा तो वक्फ़ संपत्ति घोषित की जा सकती है। हालांकि यह संभावना 2021 में सच साबित हो रही थी। न्यायिक निर्णय (हाईकोर्ट : 1 जून 2021) के बाद राजधानी के ’सेन्ट्रल विस्ता’ योजना का निर्माण कार्य निर्बाध रूप से चलेगा। किन्तु दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और ओखला क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के विधायक मियां मोहम्मद अमानतुल्ला खान ने (4 जून 2021) प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर आग्रह किया कि इस नयी राजधानी निर्माण क्षेत्र में आनेवाली मस्जिदों को बनी रहने दिया जाये। उन्होंने लिखा कि इंडिया गेट के पास के जलाशय के समीपवाली जाब्तागंज मस्जिद न तोड़ी जाये। इसी प्रकार कृषि भवन तथा राष्ट्रपति भवन की मस्जिद भी सुरक्षित रहें। उनकी लिस्ट में सुनहरी बाग रोड, रेड क्रास रोड की (संसद मार्ग), जामा मस्जिद (शाहजहांवाला नहीं) आदि भी शामिल हैं। ध्यान रहें कि ये सब वक्फ की संपत्ति नहीं हैं।

वक्फ संपत्ति विवाद से जुड़ी जानकारी
वक्फ संपत्ति विवाद

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एक दफा हरियाणा के चन्द जाट किसानों ने रायसीना हिल्स पर अपना दावा ठोका था। वे राष्ट्रपति को बेदखल कर खुद रहना चाहते थे (20 फरवरी 2017, दि हिन्दू )। इस जाट किसान महाबीर का कहना था कि उसके परदादा के पिता कल्लू जाट रायसीना भूभाग पर हल चलाते थे। उनके पुत्र नत्थू भी यहीं जोताई करता था। मगर 1911 में नयी राजधानी निर्माण पर ब्रिटिश राज ने उन्हें बेदखल कर दिया था। विधायक खान ने दस दिन की नोटिस भारत सरकार को दिया है। वे नहीं चाहते कि अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े। इसकी पूरी रपट चैन्नई के वामपंथी अंग्रेजी दैनिक ’दि हिन्दू’ में (5 जून 2021, पृष्ठ-3, कालम : 4-6 में) छपी है। यूं तो नयी दिल्ली के कई चौराहों पर के उद्यानों में मस्जिदों को असलियत में बिना नक्शे को पारित कराये बनी इमारतें ही कहा जायेगा।

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यहां मजहबी मुसलमानों को वक्फ़ से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत हो जाना चाहिए। मक्का में डेढ़ सौ से अधिक पुरानी मस्जिदों को गत वर्षों में साउदी बादशाह के हुक्म से तोड़ा गया था ताकि हज के लिये आनेवाले जायरीनों के आवास, भोजन और दर्शन हेतु पर्याप्त व्यवस्था हो सके। मक्का-मदीना इस्लाम का पवित्रतम तीर्थस्थल है। ’साउदी गजट’ समाचार पत्र के अनुसार 126 मस्जिदें तथा 96 मजहबी इमारतें जमीनदोज कर दी गयीं थीं, ताकि विशाल पुनर्निर्माण कार्य हो सके। इस पर बीस अरब डालर (चौदह खरब रुपये) खर्च किये गये। उमराह तथा हज एक ही समय संभव हो, इस निमित्त से यह ध्वंस तथा पुनर्निर्माण कार्य हुआ। ओटोमन तुर्को द्वारा निर्मित संगमरमर के भवनों को पवित्र काबा के समीप से हटाया गया ताकि विशाल मस्जिद चौड़ी की जा सके। बीस लाख यात्रियों को इससे सहूलियत मिली। राजधानी की 98 प्रतिशत ऐतिहासिक इमारतें तोड़ी गयीं ताकि साउदी अरब की राजधानी (ठीक नयी दिल्ली की भांति) समुचित रुप से निर्मित हो सके। यह 1985 की बात है। मगर यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि सेकुलर संविधान के तहत धर्म हो पर आधारित संपत्ति संबंधी कानून अवाइत हैं हालांकि संसद में हुए भाषणों में इस तथ्य से सदस्य अनभिज्ञ थे। इसका परिणाम अगली पीढ़ी को भुगतना होगा। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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