नवरात्र : बुधवार को मां बुद्धा देवी में सब्जी की डालियां चढ़ाने से कटते है कष्ट

कानपुर (हि. स.)। कानपुर शहर के बीचोबीच खोया की थोक बाजार स्थित बुद्धा देवी महत्वता शहर की सिद्धपीठ मंदिरों में मानी जाती है। लोगों की मान्यता है कि बुधवार का व्रत कर बुद्धा देवी की पूजा अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है। वैसे तो प्रतिदिन ही भक्तों की आवाजाही रहती है। किंतु बुधवार को देवी का दिन होने से ज्यादा भीड़ उमड़ती है। नवरात्रि में पड़ने वाले बुधवार को तो भक्तों का सैलाब रहता है बल्कि लोगों का रास्ता चलना मुश्किल हो जाता है। इस मंदिर में बुद्धा देवी अपनी पांच बहनों के साथ विराजमान है।

कोविड 19 के चलते भक्तों की भीड़ में कोई कमी नहीं हुई है। इस दिन हजारों की संख्या में भक्त गण साक्षात अन्नपूर्णा बुद्धि प्रदायनी बुद्धा देवी के दर्शन मात्र करने को दूर दूर से बुधवार के दिन दर्शन करने 12 मास आते है। लेकिन वर्ष के चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां कुछ ज्यादा ही भीड़ होती है। इस मंदिर की खास मान्यता है कि माता बुद्धा देवी को बुद्धि की देवी माना गया है। भक्तों की माने तो मैया का यह स्वरूप साक्षत अन्नपूर्णा शाकुम्भरी का ही रूप है। यहां मन्नत के अनुसार भक्तिपूर्वक मैया को प्रसाद में सब्जी कि डलिया भेंट करने से ये शीघ्र ही हर मनोकामना पूर्ण करती है। इसके साथ ही माता को नारियल संग चुनरी भी भेंट की जाती है। मैया की इस दरबार मे 3 समय आरती होती है नवरात्र में विशेष भंडारा होता है। मंदिर की स्थापना वर्ष 1936 में जनरलगंज के लाला बद्री प्रसाद अग्रवाल ने कराई थी। मंदिर का रखरखाव श्री बुद्धा देवी महारानी ट्रस्ट के जिम्मेदारी में है।
बताया जाता है कि जिस जगह पर मंदिर है किसी समय यहां बगीचा व आसपास तालाब हुआ करता था। इस बगीचे को जनरलगंज के ख्याति लब्ध व्यवसाई लाला बद्री प्रसाद अग्रवाल ने खरीद लिया था और देखभाल के लिए बुद्धू नामक माली को जिम्मेदारी सौंपी थी। माली कहीं से एक मूर्ति लाया था और बगीचे के मध्य में रखकर पूजा करता था। इस मूर्ति को देखकर लाला बुद्धि प्रसाद अग्रवाल भी नियमित पूजा करने लगे उनके कोई संतान नहीं थी इस बीच उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसके बाद मां बुद्धा देवी के प्रति उनकी श्रद्धा और बढ़ गई। एक दिन देवी ने उन्हें स्वप्न में आकर मंदिर बनवाने को कहा। देवी के आदेशानुसार उन्होंने वर्ष 1936 में बगीचे में मंदिर की स्थापना की। कुछ ही दिनों में मंदिर बनकर तैयार हो गया। लाला बद्री प्रसाद अग्रवाल के पौत्र व ट्रस्ट का काम देख रहे विनीत कुमार अग्रवाल बताते हैं कि बगीचे के माली बुद्धू द्वारा लाई गई मूर्ति से यह सब चमत्कार हुआ था। इसलिए उनके बाबा बद्री प्रसाद अग्रवाल ने भवन पर अपना व बुद्धू दोनों का नाम लिखवाया और मंदिर का नाम बुद्धा देवी रखा गया।
इस मंदिर में पांच बहनों सहित बुद्धा देवी मां मंदिर में विराजती हैं। मंदिर के प्रवेशद्वार में पूर्व की ओर है। मां का मुख्य उत्तर की ओर है। मां के मंदिर के अलावा शंकर जी का मंदिर, ठाकुर जी का मंदिर, हनुमान जी का मंदिर एवं गुरुद्वारा भी है। नवरात्रि में हवन, पूजन, श्रृंगार और कन्या भोज होता है। क्षेत्रीय लोगों में इस मंदिर की विशेष ख्याति है।

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