चीन पर कब कार्रवाई करेगा डब्ल्यूएचओ?

डॉक्टर ऋषिकेश सिंह

स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना वायरस, जिससे कोविड-19 नाम की बीमारी अपने विभिन्न वैरिएंट के साथ पूरे दुनिया भर में फैली हुई है और जिससे मरने वालों की संख्या आधिकारिक रूप से लाखों में नहीं, बल्कि वास्तव में करोड़ों में है, चीन के वुहान लैब से ही फैली है। यह कोई पहला मामला नहीं है, जब चीन से कोई वायरस दुनिया भर में फैला हो और तबाही मचाई हो। यदि हम विश्व में फैली महामारियों की जड़ से पड़ताल करें तो पता चलता है कि इससे पहले भी 1957 का एशियन फ्लू, 1968 का हांगकांग फ्लू और 1977 का रशियन फ्लू जैसी इन्फ्लूएंजा महामारियों की शुरुआत भी चीन से ही हुई थी। इतना ही नहीं, 1918 में लगभग 5 करोड़ लोगों की जान लेने वाला स्पेनिश फ्लू भी चीन से ही फैलना शुरू हुआ था। 2002 में 21वीं सदी की पहली महामारी सार्स भी चीन से फैली और अब वर्तमान स्थिति यह है कि चीन के वुहान इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी से कोरोना वायरस के लीक होने की अवधारणा पुख्ता होती जा रही है। अब यह स्पष्ट रूप से जाना जा चुका है कि चीन के वुहान लैब में चमगादड़ में मौजूद सार्स वायरस पर शोध के दौरान तीन वैज्ञानिक गंभीर रूप से बीमार हुए थे और टाइफाइड तथा सांस संबंधी समस्याओं के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। सामान्यतः यह समझा जा सकता है कि यह तीनों वैज्ञानिक जब अस्पताल में भर्ती हुए होंगे और जिस तरह से कोरोना वायरस फैल रहा है, उसी तरह से पहले अस्पताल के कर्मचारियों में फैला होगा। फिर उनके परिवार वालों में फैला होगा और फिर धीरे-धीरे यह पूरे वुहान शहर में फैल गया और वहां से यह धीरे-धीरे पूरे दुनिया भर में फैल गया है।

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ऐसे कई वैज्ञानिक हैं जो इस वायरस के प्राकृतिक रूप से पैदा होने की बात से सहमत नहीं है। इसके पीछे मुख्य तर्क यह है कि सामान्यतया वायरस जब किसी जानवर से मनुष्य में पहुंचता है तो कोई न कोई जीव बिचौलिए संवाहक के रूप में होता है। जैसे सन् 2002 के सार्स वायरस में सिवेट कैट एक बिचौलिए के रूप में था। सार्स वायरस चमगादड़ से सिवेट कैट में पहुंचा और फिर सिवेट कैट के माध्यम से इंसान में पहुंचा। जो वर्तमान कोरोना वायरस है जिससे कोविड-19 नाम की बीमारी फैली है। यह चमगादड़ के वायरस से 96 फीसद समान है, परन्तु इतनी समानता से इंसान में संक्रमण नहीं फैल सकता और ऐसे किसी संवाहक जीव की खोज अभी तक नहीं हो पाई है, जिससे कि यह मनुष्य में फैला हो। इसके अलावा एक प्रमुख जानकारी यह भी है कि वुहान लैब में चीनी वैज्ञानिक चमगादड़ में पाए गए कोरोना वायरस में रिवर्स इंजीनियरिंग कर रहे थे और इस रिवर्स इंजीनियरिंग के दौरान यह खतरनाक होता गया और इसी रिवर्स इंजीनियरिंग के दौरान ही यह लीक भी हुआ, जिसके लपेटे में वे तीन वैज्ञानिक आए जिनको अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनसे पहले अस्पताल के कर्मचारियों को, फिर अस्पताल कर्मचारियों के परिवार वालों को, फिर वुहान शहर को और फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया को यह महामारी लग गई। लेकिन इस तरह का प्रयोग कोई वैक्सीन या टीका बनाने के लिए किया गया होगा, उचित नहीं प्रतीत होता। इसलिए शंका जैविक हथियार बनाने के प्रयोग की तरफ ही जाती है। सभी लोग जानते हैं कि इस तरह के शोध को नैतिक मान्यता नहीं है। इसीलिए कोरोना वायरस वुहान इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी से निकलने की बात को चीन लगातार छुपाता रहा है।
एक और प्रमुख तथ्य है जो वायरस के अप्राकृतिक होने की तरफ इशारा करता है क्योंकि प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ कोई भी वायरस अलग-अलग तापमान में एक ही तरह की संक्रमण क्षमता नहीं रख सकता। दुनिया के कई प्रतिष्ठित वायरोलॉजिस्ट यह मानते हैं कि यह प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ वायरस नहीं है क्योंकि अफ्रीका के अधिक गर्म तापमान में भी यह उतना ही प्रभावी है जितना कि एवरेस्ट के अधिक ठंडे तापमान में। स्पष्टतः इस वायरस का संक्रमण और प्रसार का पैटर्न एक आइडियल इफेक्टिव वायरस से मिलता है जो प्राकृतिक रूप से संभव नहीं लगता। इसीलिए चीन लगातार इस मामले में लीपापोती करता रहता है। सन 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के साथ वैश्विक स्वास्थ्य संस्था के रूप में विश्व स्वास्थ संगठन की स्थापना हुई है, जिसका प्रमुख काम महामारी नियंत्रण क्वारंटाइन उपाय और दवा मानकीकरण जैसे विशिष्ट कार्य करना है। डब्ल्यूएचओ संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य मुद्दों पर काम करती है। कोविड-19 महामारी से निपटने में अपनी भूमिका को लेकर यह संस्था लगातार चर्चा के केंद्र में रही है। महामारी फैलने के बाद इस वायरस के उद्गम स्थल को लेकर जो जांच इस संगठन द्वारा की गई है, वह भी पूरी तरह से अविश्वसनीय है। डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों ने इस साल 14 जनवरी से 10 फरवरी के बीच चीन के वुहान शहर का दौरा कर 30 मार्च 2021 को जो रिपोर्ट जारी की उसकी अमेरिका जापान जैसे देशों के समूह ने आलोचना की और उन्होंने रिपोर्ट को पूरी तरह से अविश्वसनीय करार दिया। विश्व के विभिन्न बड़े छोटे देश अपने स्वार्थ में चाहे जो कहें लेकिन सच यह है कि कोरोना वायरस की पूरी कुंडली समझना बहुत आवश्यक है ताकि भविष्य में ऐसी किसी महामारी से निपटने की पर्याप्त तैयारी की जा सके और वर्तमान महामारी कोविड-19 से बचाव की कोई विशेष वैक्सीन बनाई जा सके तथा संक्रमित लोगों के इलाज के लिए कोई विशेष दवाई बनाई जा सके। चीन अपना दामन बचाने की कोशिश में जुटा है लेकिन उस पर से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का विश्वास लगातार उठ रहा है।

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मूल प्रश्न यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जिसके ऊपर विश्व के समस्त मानव को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी है, महामारी से बचाने की विशेष जिम्मेदारी है, चीन को इस बीमारी को फैलाने के लिए उत्तरदाई क्यों नहीं ठहरा पा रहा है? सब कुछ जानते बोलते हुए भी चीन के ऊपर कोई दंडात्मक कार्यवाही क्यों नहीं कर रहा है? चीन पर किसी प्रकार का कोई जुर्माना क्यों नहीं लगा पा रहा है? विश्व मानव समाज से चीन माफी मांगे इसका दबाव क्यों नहीं बना पा रहा है? चीन से जैविक हथियारों से संबंधित समस्त प्रयोग बंद करने के लिए क्यों नहीं कह रहा है? इसको जानने के लिए हमें विश्व स्वास्थ्य संगठन की संरचना पर ध्यान देना होगा। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की संरचना की बात करें तो डब्ल्यूएचओ के संविधान का अनुच्छेद एक सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर के लक्ष्य को परिभाषित करता है। वही अनुच्छेद दो संगठन के कार्यों पर प्रकाश डालता है। इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय मानकों और महामारी से निपटने के लिए कदम उठाने का कोई उल्लेख नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि डब्ल्यूएचओ के पास ठोस दंडात्मक कार्यवाही करने का अधिकार नहीं है। लेकिन मैं यहां पर कहना चाहूंगा कि किसी भी वैश्विक संस्था में इस तरह का पावर नहीं होता है, लेकिन विश्व के देशों के समर्थन और मांग से ही वैश्विक संस्थाओं में इस तरह की शक्ति उत्पन्न होती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 में दस्तक देने वाली सार्स महामारी के बाद डब्ल्यूएचओ ने सदस्य देशों के लिए इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन नाम से एक नियमावली जारी की थी। उसके अनुच्छेद 6 में चीन सहित प्रत्येक सदस्य देश के लिए बाध्यकारी प्रावधान है कि किसी देश को अपने क्षेत्र में वैश्विक जोखिम बढ़ाने वाली स्वास्थ समस्या को लेकर सूचनाएं एकत्र कर डब्ल्यूएचओ को 24 घंटों के भीतर सूचित करना होगा। फिर भी चीन ने इस नियम का उल्लंघन किया है। डब्ल्यूएचओ के अंतरराष्ट्रीय पैनल ने एक हालिया रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि संगठन को वुहान में कोविड-19 के बारे में पहली बार सूचना ताइवान में छपी खबर और एक ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम से मिली जिसने एक अजीबोगरीब निमोनिया के बारे में बताया था।

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इस बात से जो स्पष्ट होता है, उस पर मैं स्पष्ट रूप से कहूंगा कि चीन अपनी प्रतिष्ठा और छवि पर ध्यान देने वाला देश नहीं है। वह साम्यवादी सिद्धांतों को भी अजीब तरीके से उमेठने वाला देश बन गया है। यदि हम साम्यवाद की बात करें तो इसमें सबसे ज्यादा जोर मनुष्य की स्वतंत्रता पर ही दिया जाता है जबकि चीन के नागरिक और वहां रहने लाने लोग दुनिया में सबसे ज्यादा परतंत्र है। वहां एक राजनीतिक दल और अंततः एक व्यक्ति का शासन हो गया है। सबसे बेशर्मी वाली बात यह है कि चीन पूरी दुनिया में या तो इस बीमारी से सबसे कम प्रभावित हुआ है या तो अपने यहां के बीमार होने वाले नागरिकों के साथ उसने कुछ ऐसा किया है जिसको व्यक्त करना उसके लिए संभव नहीं है। इसलिए विश्व भर के देशों को मिलकर संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अध्याय 7 के अनुप्रयोगों का तत्काल विस्तार करने की जरूरत है। इसके अभाव में डब्ल्यूएचओ एक निष्प्रभावी संस्थान ही बना रहेगा। समय की मांग है कि डब्ल्यूएचओ को सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जैसी शक्तियां प्रदान की जाएं। ऐसा न किए जाने से डब्ल्यूएचओ अपने समक्ष उत्पन्न गंभीर चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं हो सकेगा। अंतिम रूप से मैं कहना चाहूंगा कि विश्व के सारे देशों को आपसी गुटबंदी छोड़ करके एकजुट हो जाना चाहिए और चीन को इस वायरस के उद्गम को स्पष्ट करने के लिए दबाव डालना चाहिए ताकि इस महामारी से वैज्ञानिक तरीके से निपटा जा सके और भविष्य में इस तरह का संकट मानवता पर उपस्थित न हो।

(लेखक एलबीएस पीजी कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)

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