किसान ने मेहनत के बल पर बंजर भूमि पर की बागवानी

चंबल के बीहड़ में बदलाव का नया दौर

– लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन रहा सेगनपुर के किसान

औरैया (हि. स.)। चंबल का बीहड़ जो डकैतों की शरण स्थली के रूप में जाना जाता था जहां डकैतों की गोलियों की गूंज से चंबल घाटी का सीना कांप जाता था। आज चंबल के उन्हीं बीहडों मे एक नये दौर की शुरुआत हो गयी है।

आज चंबल के बीहड मे बदलाव आ चुका है, डकैतों का सफाया हो चुका है। अब यहां के किसान बागवानी करके रोजगार के एक नये दौर की शुरुआत कर चुके हैं। यहां के किसान अनार, केला, आम जैसे फलों की पैदावार कर नये रोजगार के अवसर ढूंढ चुके है। सदर ब्लाक के सेंगनपुर गांव के इस किसान ने बीहड मे फलों की अच्छी पैदावार कर एक नये दौर को जन्म दिया है।

पंचनद के बीहड़ के रहने वाले उन्नतशील किसान विजय सिंह राजपूत ने बीहड़ को एक नई राह दिखाई है। उन्हें एक भूमि का पट्टा लेखपाल द्वारा किया गया था जो पूरी तरह से बंजर थी। मगर उन्होंने मेहनत और लगन से उस भूमि को उपजाऊ बना दिया और उस पर बागवानी शुरू कर दी। विजय सिंह का कहना है लगातार वायु में हो रहे प्रदूषण और पेड़ों की कटान के चलते वायु प्रदूषण को दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने बागवानी करने का फैसला लिया। यही नहीं उन्होंने बागवानी करने के साथ ही उन्हें पौधों से फल भी उगाने शुरू कर दिये हैं जिन से वह अब अपने परिवार का भरण पोषण भी कर रहे हैं।

बबूल की कंटीली छाती को चीरकर उगाये मौसमी फल

हौसला हो तो आसमां में भी सुराख हो जाए, गर एक पत्थर तो उछालो यारो किसी शायर की यह पक्तियां बीहड़ी किसान विजय सिंह राजपूत पर सटीक बैठती है। जिन्होंने अपने बागवानी के शौक के लिए बीहड़ के दुर्गम कंटीली, पथरीली, उबड़ खाबड़ जमीन को चीरकर मौसमी फलों को उगा डाला। असम्भव को सम्भव कर दिखाने वाले विजय ने किसानों में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया। चम्बल यमुना की घाटी में बसे गांव सेंगनपुर में जन्मे विजय राजपूत की शिक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई। शुरू से ही नए नए प्रयोगों का जुनून ने बागवानी का शौक उनके मन में जगा। विषम हालातो और प्रतिकूल मौसम की परवाह किये बिना विजय ने पट्टे की भूमि जो कि बिलायती बबूल और झाड़ियो को साफ कर केला, अनार, नीबू, सन्तरा और मौसमी के रोपित ही नही किया बल्कि रात दिन की कड़ी मेहनत के बल पर कम समय मे ही फलों को उगा कर साबित कर दिया कि मेहनत और लगन से सब सम्भव है। उनकी उम्मीदों को सफलता का मूर्त रूप है। बताते है कि चम्बल, यमुना, सिंध, पहुज और क्वारी नदियों के संगम किनारे फैले दुर्गम बीहड़ कभी भी खेती के लिए मुफीद नही रहे।

कारण स्पष्ट है कि भौगोलिक विषमताएं और विलायती सहित कंटीली झड़ियाँ जमीन की उर्वरा शक्ति के अत्यधिक दोहन ने हालातों को और जटिल बना दिया था। वहीं पूर्व में दस्युओं के आतंक ने यहां किसानों का खेती से मोहभंग सा कर दिया। परिणामस्वरूप जरूरतों को पूरा करने लोग शहरों की ओर पलायन कर गए। ऐसे में बंजर होती जा रही जमीनों पर बागवानी का सफल प्रयोग किसानों में उम्मीद जगा रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग से 6 किलोमीटर दूरी पर सेंगनपुर गांव के समीप स्थित बीहड़ में विजय अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। यह कहानी उन किसानों के लिए एक सबक है जो प्रतिकूल मौसम का बहाना बनाकर खेती को दर किनार कर देते हैं।

सुनील

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