सुप्रीम कोर्ट में उठा संवैधानिक संकट का खतरा
वक्फ कानून पर विपक्षी दल सरकार को घेरने में जुटे, कर रहे सर्वत्र विरोध
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। वक्फ कानून को लेकर देशभर में उठा विवाद बुधवार को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचने वाला है, जब सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ इस संवेदनशील और विधायी प्रकृति के मुद्दे पर दोपहर दो बजे सुनवाई करेगी। संवेदनशीलता से घिरे इस मसले पर सरकार और याचिकाकर्ता आमने-सामने हैं, और न्यायपालिका के दखल को लेकर आशंका खुलकर सामने आई है।
याचिकाएं बनीं संवैधानिक बहस का कारण
वक्फ कानून को चुनौती देने वाली करीब दो दर्जन याचिकाएं विभिन्न संगठनों और राजनीतिक हस्तियों द्वारा दायर की गई हैं। इनमें प्रमुख रूप से एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के अमानतुल्ला खान, राजद नेता मनोज झा, धर्म गुरु मौलाना अरशद मदनी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शामिल हैं। इसके अलावा जमीयत-ए-उलमा-ए-हिंद और अन्य कई मुस्लिम संगठनों ने भी मिलकर अदालत का रुख किया है। इन याचिकाओं में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है।
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अदालत विधायी क्षेत्र में दखल न दे-केंद्र
मंगलवार को इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक मर्यादाओं पर पूरा भरोसा है। उनका कहना था कि वक्फ कानून जैसे विधायी मामलों में अदालत को दखल देने से बचना चाहिए।
रिजिजू ने कहा, ’संविधान में शक्तियों का विभाजन स्पष्ट है। अगर कल सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप करती है, तो यह उचित नहीं होगा। हमें एक-दूसरे की भूमिका और अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।’ उनकी टिप्पणी स्पष्ट रूप से इस ओर इशारा करती है कि सरकार वक्फ कानून को संसद द्वारा पारित एक वैध विधेयक मानती है, और इसका न्यायिक पुनरावलोकन लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा माना जा सकता है।
भाजपा शासित राज्यों का पक्ष भी सुप्रीम कोर्ट में
केंद्र सरकार के साथ ही भाजपा शासित राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और असम की सरकारों ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है। इन राज्यों का मानना है कि वक्फ कानून के प्रावधान राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र को बाधित करते हैं और इससे सरकारी जमीनों पर अवैध दावे को बल मिल सकता है। इन राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले उन्हें सुना जाए, जिससे उनकी चिंताओं को ठीक से सामने रखा जा सके।
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चर्चा में क्यों है वक्फ कानून?
वक्फ कानून का विवादित हिस्सा वह है, जिसमें वक्फ संपत्तियों की परिभाषा, प्रबंधन और विवाद निपटान से संबंधित प्रावधानों में संशोधन किया गया है। आलोचकों का कहना है कि यह संशोधन स्थानीय प्रशासन की भूमिका सीमित करता है और अल्पसंख्यकों को असमान अधिकार देने का रास्ता खोलता है। कुछ याचिकाओं में यह भी दावा किया गया है कि वक्फ बोर्डों को अतिरिक्त अधिकार देकर दूसरे समुदायों की जमीनों पर दावे को वैध ठहराने की कोशिश की गई है।
क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट की पीठ?
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ आज दोपहर दो बजे इन याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई शुरू करेगी। यह देखना अहम होगा कि क्या अदालत इन याचिकाओं को संवैधानिक समीक्षा के दायरे में लाते हुए सुनवाई को आगे बढ़ाती है या फिर इसे विधायी क्षेत्र का विषय मानकर हस्तक्षेप से बचती है।
राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण के केंद्र में वक्फ कानून
वक्फ कानून अब सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं रहा, बल्कि यह राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण का मुद्दा बन चुका है। विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बता रहा है, जबकि सरकार इसे राष्ट्रीय संसाधनों की रक्षा का माध्यम कह रही है। अदालत का रुख ही अब यह तय करेगा कि कानून की वैधता का मूल्यांकन किस दिशा में आगे बढ़ेगा।
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