UP News: नाटी इमली का विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप, अयोध्या भवन में परंपरा का हुआ निर्वहन

-कोरोना ने छीन ली लक्खा मेले की रौनक, 475 साल पहले मेघा भगत ने की थी शुरूआत
वाराणसी (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोरोना ने मंगलवार को नाटी इमली के विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप मेले की रौनक भी छीन ली। 475 सालों से चली आ रही परंपरा भी कोरोना के चलते टूट गई। रामलीला नाटी इमली के ऐतिहासिक मैदान की जगह बड़ागणेश स्थित अयोध्या भवन में प्रतीक रूप से सम्पन्न हुई। परम्परा के निर्वहन में भवन के छत पर प्रभु श्रीराम समेत चारों भाइयों को गले मिलते देख मौजूद लोगों की आंखे नम हो गयी। राजा रामचंद्र की जय,जयश्री राम और हर-हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष फिजाओं में गूंज उठा।
अपराह्न तीन बजे अयोध्या भवन के छत पर बने चित्रकूट (प्रतीक) से अयोध्या में प्रभु श्रीराम के आने का संदेश लेकर हनुमान जी भरत जी के पास पहुंचे। संदेश मिलते ही भरत जी छत पर बने चित्रकूट और अयोध्या की सीमा पर छोटे भाई शत्रुघ्न के साथ गये। निर्धारित समय पर भगवान श्रीराम, भाई लक्ष्मण, सीता, सुग्रीव, विभिषण, अंगद के साथ पुष्पक विमान से छत पर उतरे। कुछ देर बाद काशी राज परिवार के महाराज अनंत नारायण सिंह परम्परा के निर्वहन में लीला स्थल पर पहुंचे। इसके बाद अस्ताचंलगामी सूर्य की लालिमा में 4.40 पर चारों भाइयों का मिलन मिलन हुआ। भरत मिलाप को देखने के लिए अयोध्या भवन के आसपास के भवनों के छतों पर भी श्रद्धालु मौजूद रहे। 
गौरतलब हो, दशहरा के दूसरे दिन चित्रकूट रामलीला समिति की ओर से आयोजित ऐतिहासिक भरत मिलाप को देखने के लिए लाखों की भीड़ नाटी ईमली मैदान में जुटती है। लगभग 475 पहले गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन संत मेधा भगत ने इसकी शुरूआत की थी। गोस्वामी तुलसी दास के निधन के बाद मान्यता है की मेधा भगत को स्वप्न में तुलसीदास जी ने दर्शन दिया था । उन्हीं के प्रेरणा से भगत ने रामलीला की शुरुआत की थी। मेले में काशीराज परिवार की उपस्थिति अनिवार्य रहती हैं। बिना काशी नरेश परिवार के लीला स्थल पर आये लीला शुरू नहीं होती। सबसे पहले काशी नरेश परिवार के सदस्य रामलीला स्थल पर पहुँचते है। शाम को लगभग चार बजकर चालीस मिनट पर जैसे ही अस्ताचल गामी सूर्य की किरणें भरत मिलाप मैदान के एक निश्चित स्थान पर पड़ती हैं। तब लगभग पांच मिनट के लिए माहौल थम सा जाता है। मैदान के एक छोर पर भरत और शत्रुघ्न अपनें भाईयों के स्वागत के लिए जमीन पर साष्टांग लेट जाते है। तो दूसरी तरफ प्रभु राम और लक्ष्मण 14 वर्ष का वनवास ख़त्म करके अयोध्या की धरती पर उतर दोनों भाइयोें से मिलने दौड़ पड़ते हैं। 

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