UP News :कई पोषक तत्वों से भरपूर प्याज की खेती में होती है अच्छी कमाई, नर्सरी का है उपयुक्त समय

-प्रति बीघा साठ कुंतल तक आसानी से निकल जाती है प्याज

लखनऊ (हि.स.)। केलिसिन, रायबोफ्लेविन (विटामिन-बी) और विटामिन ए, विटामिन सी से भरपूर प्याज की खेती का उपयुक्त समय आ गया है। किसानों को यदि प्याज की नर्सरी अभी तक नहीं लगी है तो उसे जल्द लगा देना चाहिए। प्याज की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। एक बीघा में औसतन साठ कुंतल तक हो जाती है। यदि सही प्याज हो गयी तो सौ कुंतल तक हो जाती है।

इस संबंध में कानपुर कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. मुनीष कुमार का कहना है कि किसी भी सब्जी के वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन में उसके प्रभेदों का अधिक महत्व है। हमारी मिट्टी के लिए कौन सा अनुशंसित प्रभेद हैं इसका ध्यान रखना अधिक आवश्यक है। प्याज की कई नस्ले हैं। पूसा रेड, पूसा रत्नार, पूसा माधवी, पंजाब सेलेक्शन, अरका निकेतन, अरका कल्याण, अरका बिंदु, हिसार आदि प्रमुख हैं।

उप निदेशक उद्यान अनीस श्रीवास्तव ने बताया कि प्याज की बागवानी हेतु भूमि का चयन भी आवश्यक है, क्योंकि कंद का विकास भूमि की संरचना पर भी निर्भर करती है। जीवांशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। अधिक अम्लीय मिट्टी सर्वथा अनुपयुक्त है। जमीन की जुताई अच्छी के साथ-साथ खाद एवं उर्वरक जुताई के समय डालकर अच्छी तरह मिला दिया जाय। उन्होंने बताया कि नर्सरी में पानी न लगे, इसका विशेष ध्यान देना चाहिए। पौधशाला को छोटी क्यारियों में बांट दें। पौधशाला अपनी आवश्यकता अनुसार बनावें। साधारणतया एक हेक्टेयर प्याज की खेती हेतु 1/12 हें. में बीज लगाते हैं।

उप निदेशक ने बताया कि सीधे बीज डालकर: इसे बलुआही मिट्टी में उपयोग करते हैं। इस विधि में मिट्टी को अच्छे ढंग से तैयार कर बीज खेत में छोड़ देते हैं। इस विधि में बीज की मात्रा 7-8 किलो प्रति हेक्टेयर लगाते हैं।  गांठों से प्याज लगाना छोटे प्याज के गांठों को अप्रैल-मई में लगायी जाती है। प्याज की 12-14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गांठ लगते हैं।

उन्होंने बताया कि पौधशाला में बोआई का उपयुक्त समय: अक्टूबर-नवम्बर होता है। इसकी रोपाई दिसम्बर से जनवरी के बीच हो जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि प्याज की खेती में कम्पोस्ट 10 टन, 150 किलो नेत्रजन, 60 किलो  फास्फोरस एवं 30 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नेत्रजन का प्रयोग तीन बार करें और वह भी सिंचाई के बाद। स्फूर एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय ही दी जाय।

डॉ. मुनीष ने बताया कि प्याज के खेत में दरार न आये इसका विशेष ध्यान देना चाहिए। आरम्भ में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। पुन: गर्मी आने पर 5-7 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए। हर दो-तीन सिंचाई के साथ घास-पात की निकासी आवश्यक है। इससे पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व एवं प्रकाश मिलता रहता है। खरपतवार के नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी टोक ई 25 का छिड़काव 5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।

प्याज के रोगों में प्रमुख रूप से आंगमारी, मृदुरोमिल फफूंदी, गले का गलन आदि है। आंगमारी के लिए .15 प्रतिशत डायथेन जेड-78 का छिड़काव करना चाहिए। वहीं मृदुरोमिल फफूंदी के लिए .35 प्रतिशत तांबा जनित फफूंदी नाशक दवा का छिड़काव करें। थ्रिप्स रोग में कीटनाशी दवा (मालाथियान) का छिड़काव करना चाहिए।

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