राहुल गांधी की नागरिकता पर याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में खारिज

राहुल गांधी की नागरिकता पर केंद्र हुआ विफल

रिपोर्ट के इंतजार में याचिका पेंडिंग नहीं रख सकते-इलाहाबाद हाईकोर्ट

कर्नाटक के एक भाजपा कार्यकर्ता ने राहुल गांधी की नागरिकता पर दायर की थी याचिका

प्रादेशिक डेस्क

लखनऊ। राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर किया गया केस कोर्ट ने बंद कर दिया। याचिकाकर्ता की मांग पर केंद्र सरकार द्वारा कोई स्पष्ट रिपोर्ट न देने से नाराज अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि वह अब और इंतजार नहीं कर सकती और याचिकाकर्ता को अन्य वैधानिक उपाय अपनाने की छूट दे रही है। कोर्ट ने कहा कि जब भी रिपोर्ट केंद्र सरकार को प्राप्त होती है, तो याचिकाकर्ता को उसकी एक प्रति उपलब्ध कराएं और उसे कोर्ट में भी प्रस्तुत करें।

राहुल गांधी की नागरिकता का विवाद वर्ष 2019 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी के उस आरोप से शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि राहुल गांधी ने ब्रिटेन की कंपनी बैकऑप्स लिमिटेड में निदेशक रहते हुए खुद को ब्रिटिश नागरिक घोषित किया था। इसके बाद गृह मंत्रालय ने भी राहुल गांधी को इस संबंध में एक नोटिस जारी किया था और उनसे स्पष्टीकरण मांगा था। यह विवाद कुछ समय के लिए शांत हो गया था, लेकिन पिछले साल कर्नाटक के एक भाजपा कार्यकर्ता एस. विग्नेश शिशिर ने इसी मुद्दे पर एक जनहित याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दायर की।

राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर दायर याचिका में कहा गया था कि राहुल गांधी ने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 9(2) का उल्लंघन किया है, जिसके तहत यदि कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करता है तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है। याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता को निरस्त किया जाए और चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह उनकी उम्मीदवारी रद्द करे।

rahul gandhi
राहुल गांधी

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राहुल गांधी की नागरिकता पर पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह दस दिनों के भीतर राहुल गांधी की नागरिकता की स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करे। अदालत ने यह भी कहा था कि यह मामला गंभीर है और इसमें सरकार को पारदर्शिता दिखानी चाहिए। लेकिन तय समय सीमा गुजरने के बावजूद केंद्र की ओर से कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई।

सोमवार को राहुल गांधी की नागरिकता पर हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की चुप्पी पर नाराजगी जताई और यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि न्यायालय किसी प्रशासनिक उदासीनता के कारण अनिश्चित काल तक याचिका को लंबित नहीं रख सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह नागरिकता विवाद से संबंधित किसी अन्य मंच पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।

इस निर्णय के बाद राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर बहस तेज हो गई है। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने पहले ही इन आरोपों को राजनीतिक प्रतिशोध बताया था और कहा था कि यह सब राहुल गांधी की लोकप्रियता और उनकी केंद्र सरकार की आलोचनाओं को रोकने के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस ने यह भी कहा था कि राहुल गांधी ने कभी भी विदेशी नागरिकता नहीं ली और उनके पास केवल भारतीय पासपोर्ट है।

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वहीं भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार की चुप्पी दुर्भाग्यपूर्ण है और उसे अदालत के निर्देशों का पालन करना चाहिए था। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार शायद इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं लेना चाहती क्योंकि मामला संवेदनशील है और इसका राजनीतिक असर पड़ सकता है। जबकि कुछ का यह भी कहना है कि अगर केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाए हैं तो वह कानूनी उलझनों से बचने के लिए रिपोर्ट दाखिल नहीं करना चाहती।

गौरतलब है कि राहुल गांधी का नाम पिछले कुछ वर्षों में लगातार विवादों में आता रहा है, चाहे वह मोदी उपनाम को लेकर की गई उनकी टिप्पणी हो या संसद सदस्यता रद्द होने का मामला। उनके खिलाफ राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक मोर्चों पर विरोध की स्थिति बनी रहती है। लेकिन इसके बावजूद वे कांग्रेस पार्टी की सबसे प्रमुख आवाज बने हुए हैं और 2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी एकता के केंद्र बिंदु भी माने जा रहे हैं।

राहुल गांधी की नागरिकता विवाद के इस फैसले के बाद यह तय माना जा रहा है कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं या फिर गृह मंत्रालय में दोबारा अपील दाखिल कर सकते हैं। इस बीच यह भी देखा जाना बाकी है कि केंद्र सरकार राहुल गांधी की नागरिकता पर रिपोर्ट कभी पेश करती है या नहीं। अदालत ने कहा है कि यदि केंद्र सरकार भविष्य में कोई रिपोर्ट तैयार करती है तो उसे याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराना होगा।

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कुल मिलाकर, राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर विवाद फिलहाल थमता नजर आ रहा है, लेकिन इसकी कानूनी गूंज आगे भी सुनाई दे सकती है। केंद्र की ओर से चुप्पी और अदालत की सख्ती ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनावी माहौल में यह मुद्दा फिर किस रूप में उभरता है और राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी इसके राजनीतिक प्रभाव से कैसे निपटती है।

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भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी

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